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नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला  नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला   (ANSA)

मलालाः शिक्षा के अधिकार हेतु साहसपूर्ण संघर्ष जरुरी

वाटिकन मीडिया के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला ने मलाला फंड के माध्यम से लड़कियों की शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बारे में बात की और युद्धग्रस्त देशों में बच्चों के स्कूल जाने के अधिकार पर अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने शिक्षा के वैश्विक अधिकार को बढ़ावा देने में अंतरधार्मिक संवाद के महत्व पर भी ज़ोर दिया।

वाटिकन सिटी

14 साल की मलाला यूसुफजाई ने, अपने देश पाकिस्तान में महिलाओं की शिक्षा के अधिकार हेतु संघर्ष किया, जिसके कारण उसे एक क्रूर तालिबान हमले का निशाना होना पड़ा, जहाँ वह लगभग मौत के मुंह में चली गई थी। लेकिन मलाला नहीं रुकी। उसने अपना संघर्ष जारी रखा जिसकी शुरूआत उसने महज 11 साल की उम्र में शुरू किया थी। बहुत ही कम समय में, वह दुनिया भर में महिलाओं की शिक्षा के अधिकार को बढ़ावा देने वाली एक वैश्विक शक्ति बन गईं। आज वह असंख्या लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, बहुत-सी महिलाओं और पुरुषों दोनों आज उनके अभियान में शामिल हुए हैं। 2014 में, केवल 17 साल की उम्र में, मलाला नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने वाली अब तक की सबसे कम उम्र की बालिका बनी। अपने पिता, स्कूल शिक्षक ज़ियाउद्दीन यूसुफजाई के साथ मिलकर उन्होंने मलाला फंड की स्थापना की है। वाटिकन मीडिया के संग विशेष साक्षात्कार में, मलाला ने लड़कियों की शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता, युद्ध के कारण स्कूली शिक्षा से वंचित लाखों बच्चों पर विचार रखे, साथ ही शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अंतर-धार्मिक संवाद के महत्व पर प्रकाश डाला।

स्वात घाटी में एक युवा ब्लॉगर से लेकर वैश्विक स्तर पर शिक्षा को बढ़ावा देने का आपका सफ़र विश्व भर में प्रेरणा का स्रोत है। पिछले कुछ वर्षों में आपके व्यक्तिगत अनुभव और शिक्षा के प्रति आपकी प्रतिबद्धता में क्या बदलाव आये हैं?

जब मैंने बालिकाओं की शिक्षा के बारे में बोलना शुरू किया, मैं काफी आशावान थी। मुझे विश्वास था कि जिन सरकारी और संस्थागत नेताओं ने मुझे समर्थन दिया, वे अपनी शक्ति का उपयोग युवा महिलाओं की दुनिया बदलने हेतु जल्द और निर्णायक कार्रवाई करेंगे। 28 वर्ष की उम्र में, अब, मैं एक और अधिक निराशाजनक सच्चाई को स्वीकार करती हूँ- परिवर्तन में समय लगता है। वर्षों की वकालत के बावजूद, 122 मिलियन से ज़्यादा लड़कियाँ अभी भी स्कूल से बाहर हैं। अपने अनुभव में इस बात को सीखा है कि प्रगति वादों से कहीं अधिक माँग करती है - इसके लिए रचनात्मक समाधान, निरंतर संसाधन और धैर्य की जरूरत होती है। लेकिन इन चुनौतियों ने लड़कियों के लिए एक बेहतर भविष्य बनाने में मेरे संघर्ष को कम नहीं किया है। यही मेरे जीवन का मिशन है और आगे भी हमेशा रहेगा।

सीरिया से लेकर यूक्रेन तक, गाज़ा से लेकर दक्षिण सूडान तक, संघर्ष और हिंसा लाखों बच्चों – खासकर लड़कियों – को स्कूल जाने में बाधा बनते हैं, जिससे वैश्विक साक्षरता संकट और गहरा रहा है। हम यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि ये बच्चे पीछे न छूट जाएँ, उन्हें न भूला दिया जायेॽ

इस बात की चिंता मुझे रात में जगा देती है। इस समय कितने बच्चे गोलियों की आवाज़ सुनकर सो रहे हैंॽ इस सप्ताह में कितने स्कूलों में बम बरसाये गयेॽ कितने परिवार हमेशा के लिए बिछड़ गए हैं और वे कभी मिल नहीं पाएँगेॽ गाज़ा में मारे गए बच्चों की संख्या चौंकाने वाली और भयावह है। जब हम इस तरह का नरसंहार देखते हैं, तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि स्थिति निराशाजनक है, जैसे हम कुछ नहीं कर सकते — लेकिन यह सच नहीं है। संघर्ष से प्रभावित बच्चों की मदद हेतु, हम आपात स्थिति में शिक्षा के लिए धन मुहैया करा सकते हैं और स्थानीय संगठनों को बच्चों के लिए ज़रूरी संसाधन, शिक्षण सामग्री और मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराने में मदद कर सकते हैं। बच्चों को स्कूल में रखना, या उन्हें जल्द से जल्द स्कूल वापस लाना, उनके मानसिक-सामाजिक कल्याण और सुरक्षा की भावना के लिए बेहद ज़रूरी है।

तालिबान शासन में अफ़ग़ान लड़कियों की स्थिति बहुत खराब बनी हुई है, उनकी शिक्षा पर कड़े प्रतिबंध हैं। अफ़ग़ानिस्तान में, महिलाओं की एक पूरी पीढ़ी का भविष्य खतरे में है। अफ़ग़ान लड़कियों की सहायता के लिए मलाला फंड क्या कदम उठा रहा है, और इन प्रयासों को जारी रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय क्या कर सकता है

तालिबान में उत्पीड़न की स्थिति लगभग अकल्पनीय है। महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा, काम और किसी भी प्रकार की सार्वजनिक व राजनीतिक भागीदारी पर रोक लगाया गया है। वे एक महिला के जीवन के हर पहलू को नियंत्रित कर रहे हैं, यहाँ तक कि क्या वह पार्क जा सकती है, उसकी आवाज़ कितनी ऊँची हो सकती है, वह कैसे कपड़े पहनती है। यह लैंगिक भेदभाव से कहीं अधिक, लैंगिक रंगभेद है। इस हफ़्ते, मलाला फंड ने घोषणा की कि हम अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों की तत्काल शिक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने और दीर्घकालिक न्याय व्यवस्था हेतु 30 लाख डॉलर के नए और बड़े अनुदान देने का संकल्प ले रहे हैं। घर-आधारित स्कूलों से लेकर सैटेलाइट टीवी और रेडियो, ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और ऑफलाइन ऐप तक, हम ऐसे नये, लचीले कार्यक्रमों का समर्थन करते हैं जो तालिबान शासन में लड़कियों के शिक्षण हेतु मददगार हैं। अपनी अफ़ग़ानिस्तान पहल के माध्यम से, हम महिला नेताओं और मानवाधिकार रक्षकों के साथ मिलकर एक वैश्विक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं- विश्व नेताओं पर लैंगिक रंगभेद को समाप्त करने और लड़कियों की शिक्षा के भविष्य को सुरक्षित करने का दबाव बना रहे हैं।

आपने कई बार इस बात पर ज़ोर दिया है - खासकर 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने के बाद - कि शिक्षा एक मौलिक मानव अधिकार है जिसकी रक्षा और बढ़ावा दिया जाना चाहिए। आपने इस अधिकार के लिए अपनी जान जोखिम में डाली। आप शिक्षा को लैंगिक समानता, आर्थिक विकास और शांति जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करने में, खासकर हाशिए पर पड़े समुदायों हेतु, किस तरह योगदान देते हुए देखते हैंॽ

शिक्षा एक अधिक शांतिपूर्ण और समान भविष्य की आशा उत्पन्न करती है। विद्यालय वह जगह है जहाँ बच्चे आलोचनात्मक सोच और समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं। यहीं वे दोस्त बनाते, करुणा में विकास होते और दूसरों के साथ मिलकर काम करना सीखते हैं। ये कौशल अन्याय से निपटने के लिए महत्वपूर्ण हैं - जैसे स्त्री-द्वेष और भेदभाव – तथा लोगों को साझा मानवता की याद दिलाते हैं।

मलाला फंड के ज़रिए आप स्थानीय शिक्षा समर्थकों को सशक्त बनाते हैं। क्या आप किसी ऐसे ज़मीनी कार्यकर्ता की कहानी साझा कर सकते हैं जिसके काम ने आपको प्रेरित किया हो, और उनका दृष्टिकोण समुदाय-आधारित साक्षरता पहलों की शक्ति को कैसे प्रदर्शित करता हैॽ

छोटी उम्र से ही, मैंने देखा है कि कैसे एक व्यक्ति सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। मेरे पिता, जो पाकिस्तान में हमारे गृहनगर में एक स्कूल शिक्षक थे, वे अक्सर घर-घर जाकर परिवारों को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते थे। उनके प्रयासों ने अनगिनत लड़कियों और उनके परिवारों के जीवन को बदल दिया। मेरे पिता और मैंने मलाला फंड की शुरुआत करते हुए परिवर्तन की चाह रखने वालों से इस कार्य को आगे बढ़ाने हेतु प्रोत्साहित किया। आज, हम अफ़ग़ानिस्तान, ब्राज़ॶल, इथियोपिया, नाइजॶरिया, पाकिस्तान और तंजानिया में स्थानीय संगठनों के साथ साझेदारी करते हैं जो लड़कियों की शिक्षा में प्रगति को बढ़वा दे रहे हैं। इस गर्मी में, मैंने तंजानिया के कोंगवा ज़िले का दौरा किया ताकि हमारे सहयोगी म्सिचांग इनिशिएटिव के कार्य को देख सकूँ। उनका संगठन उन युवा माताओं की मदद करता है जिन्हें स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। मैंने कक्षाओं का दौरा किया, उनके दल से मुलाकात की और छात्राओं से उनकी सीखने में आने वाली बाधाओं और उन्हें आगे बढ़ने हेतु प्रेरित करने वाले दृढ़ संकल्प के बारे में सुना। म्सिचांग इनिशिएटिव ने अब तक 400 से ज़्यादा युवतियों को विद्यालय वापस लौटने में मदद की है। उनके प्रयासों ने मुझे इस बात की पुष्टि की कि यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है और लड़कियों को सफल बनाने में मदद करने वाले इच्छुक लोगों में नवीनता और निवेश करना कितना महत्वपूर्ण है।

संत पापा फ्रांसिस की तरह, संत पापा लियो 14वें ने भी शांति और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया है। क्या आप इस बात से सहमत हैं कि अंतर्धार्मिक संवाद शैक्षिक पहलों को बढ़ावा दे सकता हैॽ

निश्चिय ही। हम सदैव दूसरों से कुछ न कुछ सीखते हैं। जब मैंने महाविद्यालय की शुरूआत की, मेरी मुलाकात विश्व के बहुत सारे नये लोगों से हुई जिनके द्वारा मैंने विभिन्न धर्मों, गुणों और रूचियों के बारे में जानकारी प्राप्त की। इसके कारण मुझे चुनौती मिली और मेरे विचारों को बढ़ावा मिला। यह समय मेरे जीवन और आज मैं जो हूँ उसे आकार देने में इतना महत्वपूर्ण था कि मैंने अपने नए संस्मरण, “फाइंडिंग माई वे” में इसके बारे में बहुत कुछ लिखा है। मुझे उम्मीद है कि पाठक मेरी कहानी में देखेंगे कि कैसे दोस्ती और समुदाय हमें एक व्यक्ति के रूप में बदल सकते हैं और हमारे द्वारा बनाए गए संबंध हमारे आस-पास की दुनिया को बदल सकते हैं। जब विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ आते हैं, तो यह एक-दूसरे को बेहतर ढंग से समझने और हमें उन अनेक मूल्यों की याद दिलाने का अवसर प्रदान कर सकता है जिसे हम एक दूसरे के संग साझा करते हैं। मैं वास्तव में शिक्षा की उस शक्ति में विश्वास करती हूँ जो संस्कृतियों और धर्मों के बीच की दूरियों को पाट सकती है और सहानुभूति को बढ़ावा दे सकती है।

कुछ ही दिनों में हम संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस (8 सितंबर) मनाएँगे। आप हमारे दर्शकों के साथ क्या संदेश साझा करेंगे जिससे यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया जा सके कि हर बच्चा, खासकर लड़कियाँ, स्वतंत्र रूप से पढ़, लिख और सीख सकेंॽ

हर दिन अनगिनत लड़कियाँ मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई करती हैं, मीलों पैदल चलकर स्कूल जाती हैं या घर वालों के कहने पर घर में रहकर पढ़ाई करती हैं। सीखने का उनका साहस और दृढ़ संकल्प मुझे प्रेरित करता है। इस्लाम में, सेवा और ज्ञान की खोज आस्था के मूल सिद्धांत हैं। मुझे पता है कि काथलिक परंपरा में भी इनका महत्व है। अगर ऐसी लड़कियाँ हैं जो सीखने के अवसर के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा सकती हैं, तो मुझे लगता है कि हम सभी उनके साथ मिलकर अपनी आवाज़ उठाने में मदद कर सकते हैं। बदलाव अपने आप नहीं आएगा। हमें लड़कियों की बातें सुनने और अपने नेताओं से शिक्षा और दीर्घकालिक समाधानों में निवेश करने का आह्वान करने की जरुरत है।

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01 सितंबर 2025, 15:18