वेस्ट बैंक की एक माँ का साक्ष्य
वाटिकन न्यूज
पवित्र भूमि, बुधवार, 27 अगस्त 2025 (सिनेवा): शाहिंदा नासर वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों के संघर्ष के तमाम कारण गिना सकती हैं: अवसरों की कमी, अधिकारों का अभाव, उच्च बेरोजगारी और सैन्य नाकेबंदी।
लेकिन उनके लिए, इसका सार एक ही है: "हम आजाद नहीं हैं। हम पर कब्ज़ा है। और यह एक ऐसी बात है जिसके बारे में लोग सोचते ही नहीं।"
"हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हम फिलिस्तीन के हालात और परिस्थिति को नियंत्रित नहीं कर सकते," वेस्ट बैंक में रहनेवाली तीन बच्चों की माँ और बेथलेहम विश्वविद्यालय की प्रशासक कहती हैं।
"क्या मैं अपने बच्चों की रक्षा कर सकती हूँ? नहीं, मैं नहीं कर सकती। तो, अगर मैं एक माँ, एक अभिभावक के तौर पर उन्हें सुरक्षा नहीं दे सकती, तो मैं उन्हें और क्या दे सकती हूँ?" वह कहती हैं। "यह मेरे लिए वाकई बहुत मुश्किल है, और हम सचमुच नहीं जानते कि इस पवित्र भूमि में, जिसे पवित्र माना जाता है, बस रोज़मर्रा की ज़िंदगी जीने, इस अस्थिरता और अनिश्चितता को सहने के अलावा और क्या करें।"
लगभग दो साल से चल रहे इस्राएल-हमास युद्ध ने सिर्फ गज़ा में फिलिस्तीनियों को ही प्रभावित नहीं किया है।
संयुक्त राष्ट्र के आँकड़े पश्चिमी तट पर एक "विस्थापन रणनीति" की ओर इशारा करते हैं जिसमें सैन्य बल और आर्थिक घुटन का मिश्रण है, जिससे रोज़मर्रा का जीवन असहनीय हो गया है।
सड़क अवरोधों के कारण दस मिनट की ड्राइव तीन घंटे की यातना में बदल जाती है, बसने वाले गिरोह बेख़ौफ़ होकर हमला करते हैं, पूरे मोहल्ले पर तोड़फोड़ के आदेश मंडराते रहते हैं, और पिताओं को आधी रात को उनके बिस्तर से उठाकर गिरफ़्तार कर लिया जाता है।
श्रीमती नासर यह भी जानती हैं कि अगर उनका परिवार चला गया, तो बेथलहम न केवल अपनी ख्रीस्तीय उपस्थिति को और कम कर देगा, बल्कि शहर में ख्रीस्तीयों के स्वामित्व वाली संपत्तियाँ भी बेची और फिर से बेची जाएँगी, "और समय के साथ, वह संपत्ति किसी ख्रीस्तीय परिवार की नहीं रह जाएगी।"
साथ ही, वह समझती हैं कि युवाओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
वे कहती हैं, “मैं पवित्र सप्ताह के दौरान येरूसालेम क्यों नहीं जा सकती? मुझे अनुमति (परमिट) मांगने की जरूरत क्यों है? मुझे यह समझ नहीं आता। इससे यहाँ हमारा जीवन वाकई बहुत मुश्किल हो जाता है। और मैं सचमुच उस दर्द को महसूस कर सकती हूँ जो मेरे बच्चों, सैली जैसे युवाओं को हो रहा है, कि यहाँ रहना मुश्किल है और वे और ज़्यादा अवसर चाहते हैं।”
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