“निवारक” क्षमा
अंद्रेया तोरनियेली
"सच्ची क्षमा पश्चाताप की प्रतीक्षा नहीं करती, बल्कि स्वीकार किए जाने से पहले ही, एक मुफ्त उपहार के रूप में, स्वयं को प्रस्तुत कर देती है।" इन शब्दों के साथ, पोप लियो 14वें ने संत योहन रचित सुसमाचार के उस अंश पर टिप्पणी की जिसमें येसु यूदस को भी रोटी देते हैं जिसने उनके साथ विश्वासघात किया। यह ईश्वरीय तर्क है, जो "दो उत देस" (कुछ के बदले कुछ) के मानवीय तर्क से बहुत दूर है। पोप ने स्पष्ट किया कि येसु इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि क्या हो रहा है, बल्कि वे स्पष्ट रूप से देखते हैं, इसलिए जानते हैं कि "दूसरों की स्वतंत्रता, भले ही बुराई में खो गई हो, एक नम्र भाव के प्रकाश से उसे प्राप्त की जा सकती है।"
यह "निवारक" क्षमा का कलंक है—वह क्षमा जो पहले आती है, दया के आलिंगन के साथ, बिना किसी पूर्व शर्त के। यह ठीक वैसा ही है जैसा कर वसूलने वाले जकेयुस के साथ हुआ था, जिसने पश्चाताप किया क्योंकि येसु ने उसे बुलाया और उसका स्वागत किया, जकेयुस को उसी के घर में आमंत्रित किया, जहाँ परंपराओं एवं सामाजिक रीति-रिवाजों को इस तरह तोड़ते देखकर लोगों को गहरा सदमा लगा।
हमारे जीवन और रिश्तों को इस तरह की क्षमा की कितनी जरूरत है। हमारी दुनिया को इस क्षमा की कितनी आवश्यकता है — जो "न तो विस्मृति" है और न ही "कमज़ोरी"। सन् 2002 के विश्व शांति दिवस के संदेश से भविष्यसूचक शब्द याद आते हैं, जिसे पोप जॉन पॉल द्वितीय ने अमेरिका में 11 सितंबर के आतंकवादी हमलों के तुरंत बाद प्रकाशित किया था। जहाँ हर कोई "निवारक" युद्ध की बात कर रहा था, वहीं हमले की भयावहता को देखते हुए, पोप यह पुष्टि करना चाहते थे कि "न्याय के बिना शांति नहीं, क्षमा के बिना न्याय नहीं।"
पोप जॉन पॉल द्वितीय कहते हैं, "मैं अक्सर इस सख्त सवाल पर विचार करने के लिए रुकता हूँ: हम ऐसी भयावह हिंसा से ग्रस्त नैतिक और सामाजिक व्यवस्था को कैसे बहाल करें? मेरा तर्कपूर्ण विश्वास, जिसकी पुष्टि बाइबल की प्रकाशना से भी होती है, यह है कि न्याय और क्षमा के समन्वय के बिना बिखरी हुई व्यवस्था को पूरी तरह से बहाल नहीं किया जा सकता। सच्ची शांति के आधार न्याय और प्रेम का वह रूप है जो क्षमा है।"
न केवल व्यक्तियों, बल्कि "परिवारों, समूहों, समाजों, राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी क्षमा की आवश्यकता है ताकि टूटे हुए संबंधों को फिर से जोड़ा जा सके, परस्पर निंदा की निष्फल स्थितियों से आगे बढ़ा जा सके और बिना किसी अपील के दूसरों के साथ भेदभाव करने के प्रलोभन पर विजय प्राप्त की जा सके। क्षमा करने की क्षमता न्याय और एकजुटता से चिह्नित भविष्य के समाज की अवधारणा का मूल आधार है।"
दूसरी ओर, जैसा कि पोप जॉन पॉल द्वितीय ने भी समझाया था, क्षमा का अभाव, खासकर, जब यह निरंतर संघर्ष को बढ़ावा देता है, "मानव विकास के लिए बेहद महँगा पड़ता है। संसाधनों का उपयोग विकास, शांति और न्याय के बजाय हथियारों के लिए किया जाता है। सामंजस्य स्थापित न कर पाने के कारण मानवता को कितनी पीड़ाएँ झेलनी पड़ती हैं! क्षमा न कर पाने के कारण प्रगति में कितनी देरी होती है! विकास के लिए शांति आवश्यक है, लेकिन सच्ची शांति केवल क्षमा से ही संभव है।"
पोप लियो ने आमदर्शन समारोह के समापन पर यह स्पष्ट किया कि क्षमा के बिना शांति कभी नहीं आ सकती। उन्होंने शुक्रवार, 22 अगस्त को सभी को शांति के लिए प्रार्थना और उपवास करने हेतु आमंत्रित किया है, ताकि शांति की रानी मरियम से प्रार्थना की जा सके और युद्धों से त्रस्त विश्व के लिए ईश्वर से शांति और न्याय की प्रार्थना की जा सके, हमारे विश्व के लिए, जिसे "निवारक" क्षमा की अत्यंत आवश्यकता है।
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