कार्डिनल ग्रेक ने प्राधिधर्माध्यक्ष बरथोलोमियो से मुलाकात की
वाटिकन न्यूज
फनार, बृहस्पतिवार, 19 जून 25 (रेई) : 17 जून की दोपहर को फनार में कुस्तुनतुनिया के ख्रीस्तीय एकता प्राधिधर्माध्यक्ष बरथोलोमियो प्रथम और सिनॉड के महासचिव कार्डिनल मारियो ग्रेक के बीच एक भ्रातृत्वपूर्ण मुलाकात हुई - जो पोप फ्राँसिस के साथ अक्सर किए जानेवाले आलिंगन की याद दिलाती है। कार्डिनल ग्रेक इस समय यूरोप के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीसीईई) के महासचिवों की बैठक के लिए इस्तांबुल में हैं।
सभा के दौरान, कार्डिनल ग्रेक ने सभी प्रतिभागियों को सिनॉड के कार्यान्वयन चरण के साथ-साथ होनेवाली प्रक्रिया प्रस्तुत की। उनकी यात्रा में प्रथम महासभा निकेया (वर्तमान इज़निक) में एक पड़ाव भी शामिल था, जिसकी 1700वीं वर्षगांठ निकट आ रही है, और जहाँ पोप लियो 14वें के आने की उम्मीद है, जो अपने पूर्वाधिकारी पोप फ्राँसिस के इरादे को जारी रख रहे हैं।
पोप फ्राँसिस को याद करते हुए
सीसीईई बैठक के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए, प्राधिधर्माध्यक्ष बरथोलोमियो ने पोप फ्राँसिस को याद किया और पोप लियो 14वें की संभावित यात्रा के लिए अपनी "बड़ी उम्मीद" व्यक्त की। सबसे पहले, प्राधिधर्माध्यक्ष ने "पोप फ्राँसिस की व्यक्तिगत मित्रता और अटूट प्रतिबद्धता के लिए" (जिन्हें उन्होंने "ऑर्थोडॉक्स कलीसिया का सच्चा मित्र" बताया) अपना आभार व्यक्त किया, और कहा कि उनका परमाध्यक्षीय काल "गर्मजोशी और आपसी प्रोत्साहन का समय रहा है।"
फिर उन्होंने उनके उत्तराधिकारी रॉबर्ट फ्राँसिस प्रीवोस्ट के चुनाव पर खुशी व्यक्त की, जिनसे वे पहले ही दो बार मिल चुके हैं। प्राधिधर्माध्यक्ष ने कहा, "हमें विश्वास है कि उनके नेतृत्व में, हमारी दोनों कलीसियाओं के बीच संबंध सच्चाई एवं प्रेम में और भी गहरे होते रहेंगे। हम प्रार्थना करते हैं कि उनका परमाध्यक्षीय काल आध्यात्मिक आत्मपरख और नबी के समान साहस से चिह्नित होगा, क्योंकि कलीसिया दिशा और एकता की लालसा रखने वाली दुनिया में गवाही दे रही है।"
वार्ता का महत्व
प्राधिधर्माध्यक्ष बरथोलोमियो ने वार्ता विषय पर ध्यान दिया – ख्रीस्तीय एकतावर्धक वार्ता और अंतरधार्मिक वार्ता - विशेष रूप से "विभाजन, भय और हिंसा से चिह्नित समय" में जब "हमें दीवारों का नहीं, बल्कि पुलों का निर्माण करने के लिए कहा जा रहा है।" विशेष रूप से, उन्होंने रोमन काथलिक कलीसिया के साथ संबंधों के महत्व को रेखांकित किया, और धार्मिक संवाद जो 1965 में आपसी अभिशापों के निर्वासन के बाद लगभग आधी सदी पहले फिर से शुरू हुआ था।
यह संबंध "एक स्थिर और गंभीर मुलाकात के पथ" को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है - एक ऐसी यात्रा जो चुनौतियों से रहित नहीं है, साथ ही "अनुग्रह के क्षणों, गहन समझ और ख्रीस्त की इच्छा के अनुसार एकता की ईमानदार इच्छा से भी चिह्नित है।" शांति मूल में प्राधिधर्माध्यक्ष ने अन्य प्राचीन पूर्वी कलीसियाओं, प्रोटेस्टेंट परंपराओं और कई अंतर-ख्रीस्तीय निकायों के साथ संवाद पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि ये "औपचारिक प्रक्रियाएँ" नहीं हैं, बल्कि "आध्यात्मिक मुलाकात है" और "सुसमाचार के लिए नई प्रतिबद्धता" के अवसर हैं। उन्होंने कहा कि ऑर्थोडॉक्स कलीसिया के रूप में, "हम भी अंतरधार्मिक संवाद को बहुत महत्व देते हैं", यह समझाते हुए कि यहूदी, मुस्लिम और अन्य धार्मिक नेताओं के साथ संबंधों को लंबे समय से इस विश्वास के साथ विकसित किया गया है कि "शांति, आपसी समझ और हर इंसान की गरिमा के लिए सम्मान सभी धार्मिक परंपराओं के लिए मुख्य प्रतिबद्धताएँ होनी चाहिए।"
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