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संत पापा फ्रांसिस रोगियों का अभिवादन करते हुए संत पापा फ्रांसिस रोगियों का अभिवादन करते हुए 

संत पापाः रोग शय्या पवित्र स्थल बनता है

संत पापा फ्रांसिस ने, 06 अप्रैल को रोगियों की जयंती के मिस्सा बलिदान, अपने प्रवचन में कहा कि बीमारी और मुसीबतें हमारे जीवन को कठिन बना देती हैं लेकिन हम उन्हें ईश्वर के हाथों में समर्पित करें वे हमें कभी नहीं भूलते और कभी नहीं छोड़ते हैं।

वाटिकन सिटी

चालीसा के 5वें रविवार को कार्डिनल रीनो फिसीकेल्ला ने रोगियों की जयंती का ख्रीस्तयाग अर्पित किया और संत पापा के प्रवचन को घोषित किया।

संत पापा ने अपने प्रवचन के शुरू में नबी इसायस के वचनों को उद्घोषित करते हुए कहा, मैं एक नई चीज करने वाला हूँ, यह अभी होने वाला है, क्या तुम इसे नहीं देखते हो? के इन शब्दों के द्वारा ईश्वर अपने लोगों से बातें करते हैं जो बाबीलोन निर्वासन में जीवनयापन कर रहें होते हैं। यह इस्ररालियों के लिए एक कठिन दौर था, क्योंकि उन्होंने सारी चीजों को खो दिया था। येरुसालेम पर जीत हासिल करते हुए राजा नबूकेदनोजोर ने उसे अपने अधिकार में कर लिया था और उसके सिपाहियों ने उसे उजाड़ दिया। लोगों को निर्वासन का शिकार होना पड़ा और उनके पास अपना कुछ भी नहीं रह गया। उनका भविष्य उजड़ गया और हर आशा निराशा में बदल गई। सारी बातों में चुनी हुई प्रजा अपने को निराश और कटुता से भरी पड़ती है, उन्हें ऐसा लगता है कि वे ईश्वर के द्वारा चुने हुए नहीं रह गये थे।

यद्यपि इस परस्थिति में ईश्वर उन्हें नयी चीजों का आलिंगन करने को निमंत्रण देते हैं जो उनके लिए आने वाला थीं। वे बातें जो भविष्य में होना वाली थी बल्कि वे उनके लिए पहले ही शुरू हो चुकी थी, कुछ चीजें मानो प्रस्फुटित होकर निकल गई हों। यह क्या था? एक ऐसी निराशजनक उदासी की स्थिति में वे कौन-सी चीजें थी जो पहले से प्रस्फुटित हुई?

ईश प्रजा का नया जन्म

संत पापा ने कहा कि हम एक नये लोगों का जन्म होता हुआ पाते हैं। एक प्रजा जिन्होंने अतीत में झूठी सुरक्षाओं के कारण असफलता का अनुभव किया, अब उन बातों की खोज करते हैं जो उनके लिए महत्वपूर्ण है- ईश्वर में संयुक्त रहते हुए उनकी ज्योति में एक साथ चलना। एक प्रजा जो येरूसालेम का पुननिर्माण करने में सफल होती, उस पवित्र शहर से दूर जो मिट्टी में मिला दिया गयी और जहाँ समारोही धर्मविधि का अनुष्ठान अब नहीं किया जा सकता था, वे ईश्वर से एक दूसरी तरह मिलन को सीखते हैं- जहाँ हम उनके हृदय परिवर्तन को पाते हैं, हम उनमें न्याय और संहिता के पालन को पाते हैं, गरीबों और जरुरतमंदों की चिंता तथा करूणा के कार्यों को पूरा होता पाते हैं।

ईश्वर का प्रवेश

हम आज उसी संदेश को दूसरे रूप में आज के सुसमाचार में पाते हैं। यहाँ भी हम एक नारी को पाते हैं जिसका जीवन नष्ट कर दिया गया है, शारीरिक निर्वासन के द्वारा नहीं बल्कि नौतिक दोषारोपण के द्वारा। वह एक पापिनी है जिसे संहिता के दूर करते हुए मृत्युदंड दिया जाता है। उसके लिए हम कोई आशा को नहीं पाते हैं। यद्पयि ईश्वर उसका परित्याग नहीं करते हैं। वास्तव में, उस समय जब उसपर दोषारोपित करने वाले उसे पत्थरों से मारने की चाह रखते हैं, ठीक उसी समय येसु का प्रवेश उसके जीवन में होता है, जो उसे हिंसा से बचाते, और उसे नये जीवन शुरू करने का अवसर प्रदान करते हैं। “तुम अपने मार्ग में जाओ,” वह उसे कहते हैं “तुम स्वतंत्र हो, तुम्हें मुक्ति मिलती है।”

इन नाटकीय और मर्माहत करने वाली घटनाओ में, हम अपने लिए एक निमंत्रण को पाते हैं जो हमें ईश्वर के संग अपने विश्वास को सुदृढ़ करने को प्रेरित करता है, जो सदैव हमारे निकट और हमें बचाने के लिए तैयार रहते हैं। निर्वासन की कोई भी स्थिति, न हिंसा, न कोई पाप, न ही जीवन की कोई भी स्थिति उन्हें हमारे द्वार के निकट आने और खटखटाने से रोक सकती है, जहाँ वे द्वार खोलने पर हमारे जीवन में तुंरत प्रवेश करते हैं। वास्तव में, जब हमारे जीवन की कठिनाइयाँ हमारे लिए मुश्किल हो जाती हैं वैसे परिस्थितियों में हम अपने को उनकी कृपा और प्रेम से आलिंगन होता पाते हैं जिससे हम ऊपर उठ सकें।

येसु हमें नहीं छोड़ते हैं

प्रिय भाइयो एवं बहनों, हम बीमारी और स्वास्थ्य की देख-रेख करने वालों की जयंती मनाते हुए इन बातों को पाते हैं। बीमारी हमारे जीवन की एक अति कठोर और सबसे मुश्किल मुसीबत होती है जब हम अपने शरीर में मानवीय कमजोरी का अनुभव करते हैं। यह हममें निर्वासित लोगों के जीवन की अनुभूति लाती है या यह उस नारी की जिसे हम आज के सुसमाचार में पाते हैं, जो अपने भविष्य की आशा से वंचित जान पड़ती है। लेकिन उन परिस्थितियों में भी, ईश्वर हमें अकेला नहीं छोड़ते हैं, और यदि हम अपने जीवन को उनके लिए समर्पित करते हैं, खास कर उस समय जब हमारी शक्ति असफल होती है, तो हम उनकी उपस्थिति में सांत्वना का अनुभव करते हैं। मानव बनते हुए वे हमारे जीवन की हर कमजोरी में अपने को साझा करना चाहते हैं। वे जानते हैं कि दुःख उठाने का अर्थ क्या है। अतः हम उनकी ओर अभिमुख होते हुए अपने दुःखों को उन्हें चढ़ा दें, निश्चित रुप से हम उनकी करुणा, निकटता और कोमलता को प्राप्त करेंगे।

रोग शय्या, पवित्र स्थल

लेकिन केवल उतना ही नहीं। निष्ठामय प्रेम में, येसु हमें बदले में एक दूसरे के लिए दूत, उनकी उपस्थिति के संदेशवाहक बनने का आहृवान करते हैं, उन परिस्थितियों तक जब रोग शय्या “पवित्र स्थल” बन सकता है जहाँ रोगी और उनकी देख-रेख करने वालों, दोनों को मुक्ति मिलती और वे बचाये जाते हैं।

प्रिय चिकित्सकों, नर्सों और स्वास्थ्य कमियों भाइयो एवं बहनों, मरीजों की सेवा में, विशेषकर उनकी जो अति संवेदनशील हैं, ईश्वर निरंतर आप को कृतज्ञता, दया और आशा से भरते हुए आप के जीवन को नवीन बनाते हैं। वे मानवता में आप को इस बात का अनुभव करने के लिए बुलाते हैं कि हमें किसी भी चीज को सहज तरीके से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि हर चीज ईश्वर की ओर से हमारे लिए उपहार स्वरुप आती है, जिससे नम्रता में हमारा जीवन समृद्ध हो। आप बीमारों को अपने जीवन में एक उपहार की भांति प्रवेश करने दें, वे आप के हृदयों को चंगाई प्रदान करें, उन बातों से शुद्ध करें जो प्रेम के अनुरूप नहीं हैं, और उन्हें करूणा के दीन आग से प्रज्वलित करे।

येसु सारी चीजों को नया बनाते हैं

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि जीवन के इस क्षण में, प्रिय बीमार भाइयो एवं बहनों, हममें बहुत-सी बातें सामान्य हैं, बीमारी का अनुभव, कमजोरी, बहुत सारी चीजों के लिए दूसरों में निर्भर रहना और दूसरों की सहायता की आवश्यकता। यह सदैव सहज नहीं है लेकिन यह एक विद्‌यालय की भांति है जहाँ हम रोज दिन प्रेम करना सीखते और अपने को बिना किसी पर दबाव के, निराशा और हताशी के, बल्कि ईश्वर को और अपने भाई-बहनों को उनकी करूणा के लिए जिसे वे हमें प्रकट करते हैं धन्यवाद देते, और भविष्य को आशा की निगाहों से स्वीकारते हुए प्रेम करने देते हैं। अस्पताल और रोग शय्या भी हमारे लिए ईश्वर की आवाज को सुनने के स्थल हो सकते हैं जहाँ वे हमें कहते हैं, “देखो, मैं सारी चीजों को नया बना देना वाला हूँ, यह प्रस्फुटित होने वाला है, क्या तुम इसे नहीं देखते हो?” इस भांति हम अपने विश्वास को नया और मजबूत बनाते हैं।

दुःखों में सहभागिता, पवित्रता का मार्ग

संत पापा ने संत पापा बेनेदिक्त 16वें के बारे में कहा जिन्होंने अपने बीमारी के समय में शांतिमय जीवन का साक्ष्य दिया। उन्होंने लिखा, “सच्ची नम्रता की कसौटी कठिनाई के संबंध में झलकती है और एक समाज दुःख से पीड़ित व्यक्ति को स्वीकारने में असक्षम होता है...जो एक हृदयविहीनता और अमानवीय समाज है। यह सत्य है एक साथ मिलकर दुःखों का सामना करना हमें अधिक मानवीय बनाता है और दूसरों के दुःखों को अपने में साझा करना पवित्रता की यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

प्रिय भाइयो एवं बहनों संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम अपने जीवन से उन्हें अलग न करें जो कमजोर हैं, जैसे कि आज का समय, एक निश्चित मानसिकता ऐसा करती है। हम अपने चारों ओर से दुःखों को दूर न हटायें। इसके विपरीत, हम उन्हें एक अवसर के रुप में लेते हुए एक साथ बढ़ें और आशा उत्पन्न करें। हम ईश्वर के प्रेम के लिए उनका धन्यवाद करें जो हमारे हृदयों में सबसे पहले उढ़ेला गया, वह प्रेम जो सारी चीजों से बढ़कर सदैव हमारे लिए बना रहता है।  

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07 अप्रैल 2025, 14:33