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पुण्य शुक्रवार-  प्रभु के दुःखभोग की धर्मविधि पुण्य शुक्रवार- प्रभु के दुःखभोग की धर्मविधि   (ANSA)

ख्रीस्त हमारे जीवन की आशा हैं

पुण्य शुरूवार को वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर में धर्मविधि की अगुवाई कार्डिनल क्लाउडियो गुगेरोत्ती ने की, वहीं परमधर्मपीठ के उपदेशक मान्यवार फादर रोबेर्तो पासोलीनी ने येसु के दुःखभोज पर अपने चिंतन व्यक्त किये।

वाटिकन सिटी

पास्का तृदिवसीय समारोह के पुण्य शुक्रवार में हम एक हृदय को धड़कता हुआ पाते हैं। यह येसु के अंतिम भोज और उसके पुनरूत्थान के मध्य का समय, जहाँ हम सफेद से लाल परिधानों, अपने विचारों की गहनता में महान प्रेम पर चिंतन करने को आमंत्रित किये जाते हैं।

क्रूस की बुद्धिमत्ता

आज की प्रार्थनामय धर्मविधि हमें मौन रहने और स्मरण करने हेतु निमंत्रण देती है, क्योंकि यह वह दिन है जिस दिन दुल्हे को हमसे दूर ले जाया जाएगा। पुण्य शुक्रवार के दिन कलीसिया आराधना में ठहर जाती और ईश्वर की असफलता पर नहीं, बल्कि उसके रहस्यमयी स्वभाव पर विचार करती है। जैसे कि धर्मग्रंथ हमें इसके बारे में घोषित करता है, “देखो, मेरे सेवक फलेगा-फूलेगा। वह महिमान्वित किया जायेगा और अत्यन्त महान होगा।” 

आज की धर्मविधि अत्यंत शांति और पीड़ादायक गंभीरता में शुरू हुई: हम ज़मीन पर लेटे हुए थे और विश्वासी भक्तों की मंडली प्रार्थना में एकत्रित थी। हमारे ये मनोभाव जरुरी हैं जहाँ हम मसीह के प्रेम की उस बुद्धि को पहचान प्रदान करते हैं जिसमें दुनिया का उद्धार निहित है। अपने सांसारिक जीवन के दिनों में उन्होंने प्रार्थनाएँ और अनुनय विनय की, उन्होंने ऊंचे स्वर से और आंसू बहाकर अपने पिता को पुकारा जो उन्हें मृत्यु से बचा सकते थे।

इन शब्दों को सुनकर कोई भी केवल आश्चर्यचकित और निराश हो सकता है। लेकिन इसकी "पूर्णता" कैसे होगी? क्या ईश्वर दुःख से पीड़ित और हताश व्यक्ति की प्रार्थनाएँ सुनता है? यदि पिता ने स्वयं अपने पुत्र को मृत्यु से नहीं बचाया, तो वे आँसूओं में, हमारे संग कैसा व्यवहार करेंगे?

वास्तव में, हम इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि पिता ने पुत्र की प्रार्थना का उत्तर कैसे दिया- उन्होंने क्रूस को  उससे दूर नहीं किया, बल्कि क्रूस को वेदी बना दिया जिससे वह संसार का उद्धारकर्ता बनें। ईश्वर ने अपने बेटे को घोर पीड़ा से नहीं बचाया, बल्कि उसके हृदय को सहारा दिया, जिससे वह स्वयं को समर्पित करने के योग्य बनें। प्रेम की मांग उन्हें शत्रुओं के सामने भी रोकने में असमर्थ रहा।

मैं ही हूँ

गेथसेमानी बारी में जब सैनिक और पहरेदार यूदस के साथ येसु को गिरफ्तार करने आये, येसु यह जानते हुए कि उसके साथ क्या होने वाला है, उनके पास आते और उनसे पूछा, “तुम किसे ढूँढ़ रहे हो?” उन्होंने उत्तर दिया, “येसु नासरी को।” येसु ने उनसे कहा, “मैं ही हूँ!” वे जैसे ही उनसे कहते हैं कि मैं ही हूँ, वे पीछे हटे और ज़मीन पर गिर पड़ते हैं।

केवल दूसरी बार सवाल करने के बाद- येसु आत्मसमर्पण करते हैं और स्वयं को दूसरों के द्वारा दूर ले जाने देते हैं। इस प्रकार सुसमाचार लेखक हमें समझाते हैं, कि येसु को केवल गिरफ्तार नहीं किया गया था, बल्कि उन्होंने अपने को उन्हें स्वतंत्र रूप में अर्पित किया था, जैसा की संत योहन के सुसमाचार (10.18) में हम पाते हैं: " मेरा जीवन कोई मुझसे छीन नहीं सकता, परन्तु मैं इसे अपनी इच्छा से देता हूँ"।

हमारे जीवन के ऐसे क्षणों में जब हम कोई बाधा को पाते हैं- कोई दर्दनाक अप्रत्याशित घटना, कोई गंभीर बीमारी, रिश्तों में संकट - हम भी उसी भरोसे के साथ खुद को ईश्वर के हाथों में सौंपे, हमें जो बातें परेशान डराने वाली लगती हैं, हम उनका स्वागत कर सकते हैं।

मैं प्यास हूँ

क्रूस के काठ में अपने मरण के पूर्व, मानव पुत्र अपनी प्यास को व्यक्त करते हैं। तब ईसा ने यह जान कर कि अब सबकुछ पूरा हो चुका है, धर्मग्रंथ का लेख पूरा करने के उद्देश्य से कहा, “मैं प्यास सा हूँ।”

येसु अपनी इच्छा को प्रकट किए बिना नहीं मरते हैं। वे इतिहास में एक अति मानवीय और सबसे कठिन संकेतों में एक की मांग करते हैं, जिसे हम अपने में पूरा नहीं कर सकते हैं। वह मांगना जो हम अकेले नहीं कर सकते हैं। येसु का शरीर सब कुछ से वंचित सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता को प्रकट करता है, हम उसे प्रेम, स्वागत और सुने जाने की जरुरत में पाते हैं।

प्रभु के दुःखभोग की धर्मविधि

सब कुछ पूरा हो गया

येसु उस क्षण अपनी - और हमारी - मानवता की परिपूर्णता को स्वीकारते हैं,  जब सब कुछ त्यागकर, वे हमें अपना जीवन और अपनी आत्मा पूरी तरह से देते हैं। यह निष्क्रिय समर्पण नहीं है, बल्कि सर्वोच्च स्वतंत्रता का कार्य है, जो कमजोरी को उस रूप में स्वीकार करता है जहां प्रेम पूर्ण हो जाता है।

जीवन को स्वतंत्रता या महान उपलब्धियां अर्थपूर्ण नहीं बनाता है, बल्कि अपने जीवन की कमियों को अवसरों में बदलना हमारे जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है। इस अर्थ में येसु हमें यह बतलाते हैं कि यह ताकत दुनिया को नहीं बचाती है, बल्कि प्रेम जो किसी के द्वारा रोका नहीं जा सकता है। वर्तमान समय व्यक्तिवाद से ग्रस्ति है, जहाँ हम पराजय या निष्क्रियता के क्षणों को पूर्णता पहचानने के लिए संघर्ष करते हैं।

पूर्ण विश्वास

संत पापा इस जयंती वर्ष में हमें याद दिलाते हैं कि मसीह हमारे विश्वास के आधार हैं। आशा,  विश्वास की रस्सी को कसकर पकड़ना हमें उनसे संयुक्त रखती है। हालाँकि, हमें ईमानदारी से यह स्वीकारना होगा कि इसे बनाए रखना बिल्कुल भी आसान नहीं है। "अपने विश्वास में दृढ़ रहो", विशेषकर जब क्रूस हमारे जीवन में आता है।  जीवन के उन परिस्थितियों में जब हम बुरी चीजों का अनुभव करते हैं, जब हमें दुःख होता है, जब हम अकेले या परित्यक्त महसूस करते हैं, तो उन पंक्ति को दोहराएँ जो निश्चित रूप से हमारे लिए असंभव प्रतीत होते हैं।

"हम भरोसे के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जाये, जिससे हमें दया मिले और हम वह कृपा प्राप्त करें, जो हमारी आवश्यकताओं में हमारी सहायता करेगी।" ऐसे करने के द्वारा, हमें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास को नवीनीकृत करने का अवसर मिलेगा। यह दुनिया से भय को दूर नहीं करेगी या हमारे जीवन के मार्ग को अचानक सुरक्षित नहीं करेगा।  इसका अर्थ केवल यह है कि आज, इस जयंती के अवसर पर, हम ख्रीस्तीय क्रूस के मार्ग का चुनाव करते हैं।

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19 अप्रैल 2025, 17:43