महाधर्माध्यक्ष काच्चिया: शिशु मृत्यु की उच्च दर ‘अस्वीकार्य
वाटिकन सिटी
न्यूयॉर्क, शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025 (रेई, वाटिकन रेडियो): संयुक्त राष्ट्र संघ में परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष गाब्रियल काच्चिया ने बुधवार 09 अप्रैल को न्यूयॉर्क में जारी जनसंख्या और विकास आयोग के 58वें सत्र की आम बहस को संबोधित करते हुए विश्व के कई क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर के “अस्वीकार्य रूप से उच्च” होने पर दुःख व्यक्त किया, जिनमें से कई को रोका जा सकता था।
"सभी आयु वर्गों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना तथा कल्याण को बढ़ावा देना" विषय पर विचार करते हुए, उन्होंने कहा कि हाल के दशकों में जनसंख्या के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार लाने में महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, परमधर्मपीठ गंभीर चिंता के साथ उन स्वास्थ्य चुनौतियों पर ध्यान देता है जो अभी भी बनी हुई हैं, विशेष रूप से सबसे कमजोर आबादी के लिए।
लाखों शिशुओं की मौत
महाधर्माध्यक्ष काच्चिया ने खेद व्यक्त करते हुए कहा, "बाल मृत्यु दर कई क्षेत्रों में अस्वीकार्य रूप से उच्च बनी हुई है, जहां पांच वर्ष से कम आयु के लाखों बच्चे हर साल कुपोषण और संक्रामक रोगों जैसे रोकथाम योग्य कारणों से मर जाते हैं।"
इस क्षेत्र में 2015 से रुकी हुई प्रगति के प्रति ध्यान आकर्षित कराते हुए उन्होंने कहा कि मातृ मृत्यु दर भी बहुत अधिक बनी हुई है। महाधर्माध्यक्ष ने कहा, यह "अनिवार्य" है कि स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने और कल्याण को बढ़ावा देने की चुनौतियों को "केवल तकनीकी मुद्दों को संबोधित करने तक सीमित नहीं किया जाये" बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण को अपनाया जाये जो मानव विकास के सभी पहलुओं की परस्पर संबद्धता को पहचानता हो।
प्रत्येक की मानव गरिमा
वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक ने कहा कि इस दृष्टिकोण से मानव व्यक्ति की प्रधानता तथा जीवन के प्रत्येक चरण में उसकी ईश्वर प्रदत्त गरिमा को स्वीकार किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि मानव व्यक्ति के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करके, व्यक्तियों और समुदायों के लिए जीवन के सभी पहलुओं में फलने-फूलने के लिए परिस्थितियाँ बनाई जा सकती हैं।
परिवार को समाज की स्वाभाविक और मौलिक इकाई के रूप में याद करते हुए उन्होंने कहा कि यह स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने और कल्याण को बढ़ावा देने में "एक अपरिहार्य भूमिका" निभाता है।
तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता
विकासशील एवं निर्धन राष्ट्रों पर निरन्तर बने हुए ऋणबोझ के प्रति चिन्ता ज़ाहिर कर महाधर्माध्यक्ष काच्चिया ने कहा कि विकासशील देशों के भारी कर्ज के बोझ से देशों में असमानता और भी बढ़ गई है।
उन्होंने कहा, "यह चिंताजनक है कि कई विकासशील देश अपने लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवा, पोषण, स्वच्छ जल और अन्य बुनियादी जरूरतों पर महत्वपूर्ण निवेश करने की तुलना में अपने ऋण की सेवा पर अधिक पैसा खर्च करते हैं। यह न केवल एक आर्थिक अन्याय है, बल्कि एक नैतिक घोटाला भी है जिस पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।"
सन्त पापा फ्राँसिस की अपील को दुहराते हुए उन्होंने विकासशील एवं निर्धन देशों का ऋणों का माफ़ करने की धनी देशों से ज़ोरदार अपील की और कहा कि उन देशों के ऋणों को माफ़ कर दिया जाना चाहिये जो कभी भी उनका कर्ज़ चुका नहीं पायेंगे।
महाधर्माध्यक्ष ने सुझाव दिया कि सार्थक ऋण राहत विकासशील देशों को स्वास्थ्य सेवा में भी महत्वपूर्ण निवेश हेतु वित्तीय स्थान प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि परमधर्मपीठ इस तथ्य की पुष्टि करती है कि स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने की शुरुआत हमेशा हर व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ होनी चाहिए, जीवन के हर चरण में, गर्भाधान से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक।"
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