संत पापा लियोः येसु की प्यास मानवता की प्यास
वाटिकन सिटी
संत पापा लियो ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों।
दुःखभोग के केंद्र बिन्दु में, जो येसु के जीवन का सबसे उज्जवल और साथ ही एक अत्यधिक अंधकार क्षण है, संत योहन का सुसमाचार हमारे लिए दो शब्दों को प्रस्तुत करता है जिनमें हम घोर रहस्य को पाते हैं- “मैं प्यास हूँ” और उसके तुरंत बाद “सब कुछ पूरा हो चुका” है। ये अंतिम शब्द हैं लेकिन वे जीवन भर के लिए, ईशपुत्र के सम्पूर्ण जीवन अस्तित्वव के अर्थ को प्रकट करते हैं। क्रूस में, येसु हमारे लिए एक विजयी नायक के रूप में दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन वे प्रेम के याचक स्वरुप प्रकट होते हैं। वे घोषणा नहीं करते, निंदा नहीं करते, वे अपना बचाव नहीं करते हैं। वे नम्रतापूर्ण ढ़ंग से उस बात की मांग करते हैं जिसे वे स्वयं के लिए नहीं दे सकते हैं।
येसु की प्यास का अर्थ
क्रूसित येसु की प्यास अपने में केवल प्रताड़ित शरीर की मनोवैज्ञानिक जरुरत नहीं है। यह अपने में और सारी चीजों से बढ़कर चाह की एक अति गहरी अभिव्यक्ति भी है-जहाँ हम प्रेम, मित्रता और एकता की बातों को पाते हैं। यह उस ईश्वर की एक गुप्त रुदन है, जहाँ वे हमारे मानवीय स्थिति में हर चीज को साझा करना चाहते हैं, और अपने को इस प्यास पर विजय होने देते हैं। ईश्वर जो एक घूंट की मांग करने हेतु लज्जा का अनुभव नहीं करते हैं, क्योंकि उस निशानी के द्वारा वे हमें इस बात को बतलाते हैं कि प्रेम को अपने में सच्चा होने हेतु मांगने के लिए सीखने की जरुरत है, न कि सिर्फ देने के लिए।
पाने के लिए सीखना
संत पापा लियो ने कहा, “मैं प्यास हूँ”, येसु कहते हैं, और इस भांति वे अपनी मानवता के साथ हमारी मानवता को भी प्रकट करते हैं। हममें से कोई भी अपने में आत्म-निर्भर नहीं हो सकता है। कोई स्वयं को बचा नहीं सकता है। जीवन अपने में परिपूर्ण तब नहीं है जब हम अपने में मजबूत हैं, लेकिन उस समय जब हम इस बात को सीखते हैं कि हमें कैसे ग्रहण करना है। और उस विशिष्ट परिस्थिति में, अज्ञात हाथों से खट्टे सिरके को प्राप्त करने के बाद येसु कहते हैं- “सबकुछ पूरा हो चुका” है। प्रेम अपने में जरुरतमंद बन जाता है और खास कर इसी कारण से वह अपने कार्य को पूरा करता है।
मुक्ति स्वतंत्रता में नहीं बल्कि नम्रता में
यह ख्रीस्तीय विरोधाभाव है- ईश्वर कार्य करते हुए नहीं बचाते हैं लेकिन वे स्वयं को ऐसे करने देते हैं। वे बुराई को शक्ति से नहीं हराते हैं लेकिन आखरी क्षण तक प्रेम की कमजोरी को स्वीकारते हुए करते हैं। क्रूस में येसु हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि मानव शक्ति की स्थिति में होने पर अपने बारे अनुभव नहीं करता बल्कि विश्वास में दूसरों के लिए अपने को खोलने के द्वारा करता है, यहाँ तक कि उस परिस्थिति तक जहाँ उसे बैर और शत्रुता का सामना करना पड़ता है। मुक्ति को हम स्वतंत्रता में नहीं, लेकिन नम्रता में अपनी जरूरत को पहचानने और उसे खुले रूप में प्रकट करने में प्राप्त करते है।
ईश्वर की योजना में हमारी मानवता की पूर्णता शक्ति का कार्य नहीं बल्कि विश्वास की एक निशानी है। येसु हमें नाटकीय मोढ़ से नहीं बचाते हैं लेकिन उस बात की मांग करते हुए जिसे वे स्वयं अपने को नहीं दे सकते हैं। और यहाँ हम सच्ची आशा के द्वार को खुला पाते हैं- यद्यपि ईशपुत्र अपने में आत्म-निर्भर होने का चुनाव नहीं करते हैं, तो हमारे लिए प्रेम की प्यास, जीवन का अर्थ, न्याय की चाह- असफलता की निशानी नहीं बल्कि सच्चाई है।
यह सच्चाई, जो अति साधारण जान पड़ती है, अपने में स्वीकारना कठिन है। हम उस समय में जीवनयापन करते हैं जहाँ आत्म-निर्भरता, प्रभावकारिता, कार्य की क्षमता को पुरस्कृत किया जाता है। और फिर भी सुसमाचार हमें दिखलाता है कि मानवता का मापदंड उस चीजों में नहीं है कि हम अपने लिए क्या हासिल कर सकते हैं वरन् अपने को प्रेम करने देने की योग्यता में, उस परिस्थिति तक जब हम जरुरत का अनुभव करते हुए, अपने लिए सहायता की मांग भी करते हैं।
मांग अयोग्यता नहीं बल्कि स्वतंत्रता
येसु हमें इस बात को दिखलाते हुए बचाते हैं कि मांग अपनी में अयोग्यता नहीं बल्कि स्वतंत्रता है। यह पाप के छिपेपन से बाहर निकलने का रास्ता है, ताकि हम पुनः एकता के स्थल में प्रवेश कर सकें। शुरू से ही, हम पाप में अपमान की उत्पत्ति को पाते हैं। लेकिन क्षमा- सच्ची क्षमा उस समय उत्पन्न होती है जब हम अपनी जरुरतों का सामना करते हैं और नकारे जाने से भयभीत नहीं होते हैं।
येसु की प्यास हमारी प्यास
संत पापा ने कहा कि क्रूस में येसु की प्यास हम सभों की भी प्यास है। यह घायल मानवता की एक कराह है जो जीवन जल की खोज करती है। और यह प्यास हमें येसु से दूर नहीं करती है लेकिन हमें उनके संग संयुक्त करती है। यदि हम इसे स्वीकार करने का साहस करते हैं, तो हम अपनी क्षणभंगुरता को भी स्वर्ग के लिए सेतु स्वरूप पा सकते हैं। यह विशेष रुप से मांगने में, न की अपने में धारण करने में - स्वतंत्रता का एक मार्ग खोलती है क्योंकि हम अपने में आत्म-निर्भर होने के दिखावे से परे जाते हैं।
भातृत्व में, साधारण जीवन में, बिना शर्मिंदगी से मांगने की कला में और बिना तोल-मोल के अपने को देने में, हम एक खुशी को को पनपता पाते हैं जिसे दुनिया नहीं जानती है। एक ऐसा आनंद जो हमें हमारे अस्तित्व से असल सत्य की ओर वापस ले जाता है: हम प्रेम देने और प्राप्त करने के लिए बने प्राणी हैं।
संत पापा ने कहा प्रिय भाइयो एवं बहनों, येसु ख्रीस्त के प्यास में हम सब अपनी प्यास को पहचान सकते हैं। और इस बात को सीखना कि इससे अधिक मानवीय और दिव्य कुछ भी नहीं है कि हम कह सकें: मुझे चाहिए। हम मांगने से न डरें विशेष रुप से उन परिस्थितियों में जब हमें ऐसा लगता है कि हम इसके योग्य नहीं हैं। हम अपनी हाथों को बढ़ाने से शर्म का अनुभव न करें। वहाँ उस नम्रता के चिन्ह में हम मुक्ति को छिपा पाते हैं।
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