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सन्त पापा लियो 14 वें विलानोेवा के सनत् थॉमस को समर्पित गिरजाघर  में, तस्वीरः 15.08.2025 सन्त पापा लियो 14 वें विलानोेवा के सनत् थॉमस को समर्पित गिरजाघर में, तस्वीरः 15.08.2025  (ANSA)

सन्त पापा ने विलानोवा अगस्टीनियन प्रान्त को भेजा सन्देश

सन्त पापा लियो 14 वें ने अमरीका के विलानोवा के सन्त थॉमस को समर्पित अगस्टीनियन प्रान्त को एक विडियो सन्देश प्रेषित कर स्मरण दिलाया कि अगस्टीनियन धर्मसमाजी होने के नाते सभी को हमारे आध्यात्मिक गुरु सन्त अगस्टीन के पथ चिन्हों पर चलने का प्रतिदिन प्रयास करना चाहिये।

वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 29 अगस्त 2025 (रेई, वाटिकन रेडियो): सन्त पापा लियो 14 वें ने अमरीका के विलानोवा के सन्त थॉमस को समर्पित अगस्टीनियन प्रान्त को एक विडियो सन्देश प्रेषित कर स्मरण दिलाया कि अगस्टीनियन धर्मसमाजी होने के नाते सभी को हमारे आध्यात्मिक गुरु सन्त अगस्टीन के पथ चिन्हों पर चलने का प्रतिदिन प्रयास करना चाहिये।  

सत्य, एकता एवं उदारता

धर्मसमाजियों को सन्त अगस्टीन के पर्व की बधाइयाँ देते हुए सन्त पापा ने कहा कि जो कुछ मैं आज हूँ उसका कारण सन्त अगस्टीन की शिक्षा है जो वेरितास, ऊनितास एवं कारितास अर्थात् सत्य, एकता एवं उदारता पर आधारित है।

सन्त पापा ने स्मरण दिलाया कि सन्त अगस्टीन मठवाद के महान संस्थापकों में से एक थे; एक धर्माध्यक्ष, धर्मशास्त्री, उपदेशक, लेखक और कलीसिया के आचार्य। हालांकि उनका जीवन भी सरल नहीं रहा, वह परीक्षणों और त्रुटियों से भरा था, लेकिन ईश्वर की कृपा से, अपनी माँ मोनिका की प्रार्थनाओं और अपने इर्द-गिर्द रहनेवाले भले लोगों के समुदाय के माध्यम से, अगस्टीन अपने बेचैन हृदय के लिए शांति का मार्ग खोजने में सक्षम हुए।

पूर्णता और आनंद

सन्त पापा ने कहा कि सन्त अगस्टीन का जीवन हमें याद दिलाता है कि हम सभी के पास ईश्वर प्रदत्त उपहार और प्रतिभाएं हैं, और हमारी पूर्णता और आनंद उन्हें ईश्वर और पड़ोसी की प्रेमपूर्ण सेवा में वापस अर्पित करने से आता है।

अमरीका के फिलाडेलफिया स्थित सन्त अगस्टीन धर्मसमाजी आश्रम के सदस्यों को सन्त पापा ने 1700 शताब्दी के धर्मसमाजी मिशनरियों का स्मरण दिलाया जो अमरीका पहुँचे जर्मन एवं आयरी आप्रवासियों की प्रेरिताई हेतु सुसमाचारी सन्देश सुनाने पहुँचे थे। उसी प्रकार सन्त पापा ने कहा कि आज के अगस्टीनियन धर्मसमाजियों का भी दायित्व है कि वे ख्रीस्त के सुसमाचार का जन-जन में प्रसार करें तथा मैत्री, संवाद और परस्पर सम्मान की भावना को बढ़ावा दें। वे विभाजनों को पाटनेवाले शान्ति निर्माता बनें, क्योंकि, उन्होंने कहा, शांति की शुरुआत इस बात से होती है कि हम क्या कहते हैं और क्या करते हैं तथा हम इसे किस प्रकार कहते और करते हैं। जैसा कि सन्त अगस्टीन ने अपने पहले उपदेश में कहा थाः “अपने हृदय को अपने कानों में मत रखो, बल्कि अपने कानों को अपने हृदय में रखो।”  

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29 अगस्त 2025, 11:11