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युवाओं के साथ जयन्ती क्रूस ढोते पोप लियो 14वें युवाओं के साथ जयन्ती क्रूस ढोते पोप लियो 14वें  (ANSA)

युवाओं की जयंती पर पोप ने तीर्थयात्रियों के प्रश्नों के उत्तर दिए

विश्वभर के लगभग दस लाख युवा रोम के बाहरी इलाके तोर वेरगाता में शनिवार को युवा जयंती प्रार्थना सभा के लिए इकट्ठा हुए। इस अवसर पर युवाओं ने पोप लियो से दोस्ती, जीवन के चुनाव और येसु से मुलाकात पर तीन सवाल पूछे।

वाटिकन न्यूज

पहला सवाल : दोस्ती

संत पिता, हम हमारे समय के बेटे बेटियाँ हैं। हम एक ऐसी संस्कृति में रहते हैं जो हमारी है और अनजाने में ही हमें आकार देती है; यह तकनीक से प्रभावित है, खासकर, सामाजिक नेटवर्क के क्षेत्र में। हम अक्सर खुद को यह सोचकर धोखा देते हैं कि हमारे कई दोस्त हैं और हम उनसे घनिष्ठता रखते हैं, जबकि हम लगातार विभिन्न प्रकार के अकेलेपन का अनुभव करते हैं। हम कई लोगों के करीब और जुड़े हुए हैं, फिर भी ये बंधन सच्चे और स्थायी नहीं होते, बल्कि क्षणिक और अक्सर भ्रामक होते हैं।

संत पिता, मेरा प्रश्न यह है: हम सच्ची मित्रता और सच्चा प्रेम कैसे पा सकते हैं जो हमें सच्ची आशा की ओर ले जाए? विश्वास हमें अपना भविष्य बनाने में कैसे मदद कर सकता है?

संत पिता : प्रिय युवाओ, दूसरों के साथ रिश्ते हममें से हर एक के लिए जरूरी हैं, और इसकी शुरुआत इस बात से होती है कि दुनिया के सभी पुरुष और महिलाएँ किसी न किसी की संतान के रूप में जन्म लेते हैं। हमारा जीवन एक बंधन से शुरू होता है, और बंधनों के जरिए ही हम बढ़ते हैं। इस प्रक्रिया में, संस्कृति एक बुनियादी भूमिका निभाती है: यह वह नियम है जिसके जरिए हम खुद को और दुनिया को समझते हैं। एक शब्दकोश की तरह, हर संस्कृति में अच्छे और बुरे, दोनों तरह के शब्द, मूल्य और गलतियाँ, दोनों होते हैं, जिन्हें हमें पहचानना सीखना चाहिए। सच्चाई की खोज में लगन से, हम न केवल एक संस्कृति प्राप्त करते हैं, बल्कि जीवन के विकल्पों के माध्यम से उसे बदल भी देते हैं। सच, दरअसल, एक बंधन है जो शब्दों को चीज़ों से, नामों को चेहरों से जोड़ता है। दूसरी ओर, झूठ इन पहलुओं को अलग कर देता है, जिससे भ्रम और गलतफहमी पैदा होती है।

हमारे जीवन के अनेक सांस्कृतिक संबंधों में, इंटरनेट और मीडिया "लोगों के बीच संवाद, मुलाक़ात और आदान-प्रदान के साथ-साथ सूचना और ज्ञान तक पहुँच के असाधारण अवसर" बन गए हैं। हालाँकि, ये उपकरण तब अस्पष्ट हो जाते हैं जब व्यावसायिक तर्क और हित हमारे रिश्तों को बाधित करनेवाले हितों के अधीन हो जाते हैं। इस संबंध में, पोप फ्राँसिस ने याद दिलाते हैं कि कभी-कभी "संचार, विज्ञापन और सामाजिक नेटवर्क के तंत्रों का इस्तेमाल हमें सुस्त और उपभोग का आदी बनाने के लिए किया जा सकता है" (क्रिस्तुस विवित, 105)। तब हमारे रिश्ते भ्रमित, लटके हुए या अस्थिर हो जाते हैं। जब उपकरण लोगों पर हावी होते हैं, तो लोग साधन बन जाते हैं: बाजार की चीज। केवल सच्चे रिश्ते और स्थिर बंधन ही अच्छे जीवन की कहानियों को बढ़ावा देते हैं।

प्यारो, हर व्यक्ति स्वाभाविक रूप से इस अच्छे जीवन की चाह रखता है, जैसे फेफड़े हवा के लिए तरसते हैं, लेकिन इसे पाना कितना कठिन है! सदियों पहले, संत अगुस्टीन ने आज की तकनीकी प्रगति को जाने बिना ही हमारे हृदय की गहरी लालसा को समझ लिया था। वे भी एक अशांत युवावस्था से गुजरे: लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने अपने हृदय की पुकार को शांत नहीं किया। उन्होंने उस सत्य की खोज की जो धोखा नहीं देता, उस सौंदर्य की जो कभी लुप्त नहीं होता। उन्होंने इसे कैसे पाया? उन्होंने एक सच्ची मित्रता, एक ऐसा प्रेम जो आशा दे सकता है उसे कैसे पाया? उनसे मुलाकात कर जो पहले से ही इसकी तलाश में था: येसु मसीह। संत अगस्टीन ने अपना भविष्य अपने आजीवन मित्र, ईसा मसीह का अनुसरण करके बनाया। उनके शब्द इस प्रकार हैं: "मसीह के अलावा कोई भी मित्रता विश्वसनीय नहीं है। "केवल उसी में सुख और अनन्त शांति संभव है। "वे अपने मित्र से सच्चा प्रेम करते हैं क्योंकि अपने मित्र में ईश्वर से प्रेम करते हैं।" मसीह के साथ मित्रता, जो विश्वास के आधार हैं, भविष्य के निर्माण के लिए अनेकों सहायताओं में से सिर्फ एक नहीं है: यह हमारा मार्गदर्शक तारा है। जैसा कि धन्य पियर जोर्जो फ्रैसाती ने लिखा है, "विश्वास के बिना, विरासत की देखभाल के बिना, सत्य के लिए संघर्ष किए बिना जीना, जीना नहीं, बल्कि बस गुज़ारा करना है" (पत्र, 27 फरवरी, 1925)। जब हमारे रिश्ते येसु के साथ इस गहन बंधन को प्रतिबिम्बित करते हैं, तो वे निश्चित रूप से निष्कपट, उदार और सच्चे बन जाते हैं।

प्रश्न : चुनाव का साहस

संत पिता, हमारे जीवन के वर्ष उन महत्वपूर्ण निर्णयों से चिन्हित होते हैं जिन्हें हमें अपने भविष्य के जीवन को आकार देने के लिए लेना होता है। हालाँकि, हमारे चारों ओर अनिश्चितता का वातावरण हमें टालमटोल करने के लिए प्रेरित करता है, और अज्ञात भविष्य का भय हमें पंगु बना देता है। हम जानते हैं कि चुनाव करना किसी चीज़ को त्यागने के समान है, और यही हमें पीछे धकेलता है। फिर भी, हम समझते हैं कि आशा प्राप्त करने योग्य लक्ष्यों की ओर इशारा करती है, भले ही वे वर्तमान क्षण की अनिश्चितताओं से चिह्नित हों।

संत पिता, हम आपसे पूछते हैं: हमें चुनाव करने का साहस कहाँ से मिल सकता है? हम साहसी कैसे बन सकते हैं और मौलिक एवं सार्थक चुनाव करते हुए सच्ची स्वतंत्रता के रोमांच को कैसे जी सकते हैं?

पोप : चुनाव एक मौलिक मानवीय क्रिया है। इसे ध्यान से देखने पर, हम समझते हैं कि यह केवल कुछ चीजों को चुनने के बारे में नहीं है, बल्कि किसी व्यक्ति को चुनने के बारे में है। जब हम चुनाव करते हैं, तो एक गहन अर्थ में, हम तय करते हैं कि हम क्या बनना चाहते हैं। वास्तव में, अंतिम चुनाव हमारे जीवन का निर्णय है: आप किस तरह के पुरुष बनना चाहते हैं? आप किस तरह की महिला बनना चाहती हैं? प्रिय युवाओं, हम जीवन की परीक्षाओं के माध्यम से चुनाव करना सीखें, और सबसे पहले यह याद करें कि हमें चुना गया था। इस स्मृति को तलाशना और संजोना होगा। हमें जीवन मुफ्त में बिना चुने मिला है! हमारे अस्तित्व के मूल में हमारा निर्णय नहीं, बल्कि वह प्रेम है जो हमें चाहता है। हमारे जीवन में, एक सच्चा मित्र वह होता है जो हमें उन चुनावों में इस कृपा को पहचानने और नवीनीकृत करने में मदद करता है जिन्हें हमें करने के लिए कहा जाता है।

प्रिय युवाओं, आपने बिलकुल सही कहा: "चुनने का अर्थ किसी और चीज का त्याग करना भी है, और यही बात कभी-कभी हमें पीछे खींच लेती है।" मुक्त होने के लिए, हमें एक स्थिर नींव से, उस चट्टान से शुरुआत करनी होगी जो हमारे कदमों को सहारा देती है। यह चट्टान एक ऐसा प्रेम है जो हमसे आगे है, हमें आश्चर्यचकित करता है, और हमसे असीम रूप से श्रेष्ठ है: ईश्वर का प्रेम। इसलिए, ईश्वर के सामने, चुनाव एक ऐसा निर्णय बन जाता है जो किसी भी अच्छाई को नहीं छीनता, बल्कि हमेशा बेहतरी की ओर ले जाता है।

चुनने का साहस प्रेम से आता है, जो ईश्वर हमें मसीह में दिखाते हैं। उन्होंने ही हमें अपने सम्पूर्ण हृदय से प्रेम किया, संसार को बचाया और इस प्रकार हमें दिखाया कि जीवन का उपहार ही हमारी व्यक्तिगत पूर्णता का मार्ग है। इसलिए, येसु से मुलाक़ात हमारे हृदय की गहनतम अभिलाषाओं के अनुरूप है, क्योंकि वे ईश्वर के प्रेम हैं जो मनुष्य बने।

इस संबंध में, पच्चीस वर्ष पूर्व, यहीं जहाँ हम हैं, संत जॉन पॉल द्वितीय ने कहा था: "जब आप सुख के स्वप्न देखते हैं तो येसु को ही खोजते हैं; जब कुछ भी आपको संतुष्ट नहीं करता तब भी वे ही आपकी प्रतीक्षा करते हैं; वे ही वह सौंदर्य हैं जो आपको इतना आकर्षित करते हैं; वे ही आपको मौलिकता की प्यास से भर देते हैं जो आपको समझौता करने की अनुमति नहीं देती; वे ही आपको जीवन को मिथ्या बनाने वाले मुखौटे उतारने के लिए प्रेरित करते हैं; वे ही आपके हृदय में उन सच्चे निर्णयों को पढ़ते हैं जिन्हें दूसरे दबा देते हैं" (15वें विश्व युवा दिवस के लिए प्रार्थना सभा, 19 अगस्त 2000)। तब भय आशा में बदल जाता है, क्योंकि हमें विश्वास है कि ईश्वर जो आरंभ करते हैं उसे पूरा करते हैं।

हम उनकी निष्ठा को उन लोगों के शब्दों में पहचानते हैं जो सच्चा प्रेम करते हैं, क्योंकि उन्हें सच्चा प्रेम किया गया है। "हे प्रभु, आप मेरे जीवन हैं": यही एक पुरोहित और एक समर्पित धर्मबहन आनंद और स्वतंत्रता से परिपूर्ण होकर कहते हैं। "मैं आपको अपनी पत्नी और आपको अपना पति मानती हूँ": यही वह वाक्यांश है जो एक पुरुष और एक स्त्री के प्रेम को ईश्वर के प्रेम के एक प्रभावशाली संकेत में बदल देता है। ये मौलिक और सार्थक विकल्प हैं: विवाह, धर्मसंघी और समर्पण जीवन, स्वयं के उस मुक्त और मुक्तिदायी उपहार को व्यक्त करते हैं जो हमें सच्चा सुख देता है। ये विकल्प हमारे जीवन को अर्थ देते हैं, उन्हें उस पूर्ण प्रेम की छवि में रूपांतरित करते हैं जिसने हमें रचा और हमें सभी बुराइयों से मुक्त किया।

3 प्रश्न : अच्छाई का आह्वान और मौन का मूल्य

संत पिता, हम आंतरिक जीवन की ओर आकर्षित होते हैं, भले ही पहली नजर में हमें सतही और लापरवाह समझा जाए। हम अपने भीतर सत्य के स्रोत के रूप में सुंदरता और अच्छाई की पुकार को गहराई से महसूस करते हैं। इस जागरण प्रार्थना में मौन का मूल्य हमें मोहित करता है, भले ही कभी-कभी यह शून्यता की भावना के कारण भय उत्पन्न करता हो।

संत पिता, मैं आपसे पूछता हूँ: हम अपने जीवन में पुनर्जीवित प्रभु से सच्ची मुलाकात कैसे कर सकते हैं और कठिनाइयों एवं अनिश्चितताओं के बीच भी उनकी उपस्थिति के प्रति आश्वस्त कैसे हो सकते हैं?

पोप : जिस दस्तावेज़ के साथ जयंती की घोषणा की गई, उसके आरंभ में ही संत पापा फ्राँसिस ने लिखा है कि "प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में भलाई की इच्छा और अपेक्षा के रूप में आशा होती है" (स्पेस नॉन कन्फुंदित 1)। बाइबिल की भाषा में "हृदय" का अर्थ है "अंतःकरण", क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने हृदय में भलाई की इच्छा रखता है, इसलिए इसी स्रोत से उसके स्वागत की आशा उत्पन्न होती है। लेकिन "भलाई" क्या है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, हमें एक साक्षी की आवश्यकता है: जो भलाई करता है। इससे भी अधिक, हमें किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो हमारा भला करे, जो हमारे अंतःकरण में उठने वाली इच्छा को प्रेम से सुने। इन साक्षी के बिना, हम न तो जन्म लेते, न ही भलाई में विकसित होते: सच्चे मित्रों की तरह, वे भलाई की हमारी साझा इच्छा का समर्थन करते हैं, और हमें अपने दैनिक चुनावों में इसे साकार करने में मदद करते हैं।

प्रिय युवाओं, वह मित्र जो सदैव हमारे अंतःकरण में साथ रहता है, वे हैं येसु। क्या आप सचमुच पुनर्जीवित प्रभु से मिलना चाहते हैं? उनके वचन सुनें, जो मुक्ति का सुसमाचार है! न्याय की खोज करें, अपने जीवन के मार्ग को नवीनीकृत करें, ताकि एक अधिक मानवीय दुनिया का निर्माण हो! गरीबों की सेवा करें, उस भलाई का साक्ष्य दें जो हम सदैव अपने पड़ोसियों से प्राप्त करना चाहते हैं! यूखारिस्त की आराधना करें, जो अनन्त जीवन का स्रोत है! येसु के मार्ग पर अध्ययन करें, कार्य करें और प्रेम करें, जो अच्छे शिक्षक हैं और सदैव हमारे साथ चलते हैं।

हर कदम पर जब हम भलाई की खोज करते हैं, हम उन्हें पुकारें : हमारे साथ रह जाएये। (लूक. 24,29)

हमारे साथ रहिए, क्योंकि आपके बिना हम उस अच्छाई को पूरा नहीं कर सकते जो हम चाहते हैं। आप हमारी भलाई चाहते हैं; आप ही हमारी भलाई हैं। जो आपसे मिलते हैं वे चाहते हैं कि दूसरे भी आपसे मिलें, क्योंकि आपका वचन किसी भी तारे से अधिक प्रखर प्रकाश है, जो सबसे अंधेरी रात को भी प्रकाशित कर देता है। जैसा कि पोप बेनेडिक्ट सोलहवें बार-बार दोहराया करते थे, जो विश्वास करते हैं वे कभी अकेले नहीं होते। इसलिए, हम सचमुच कलीसिया में मसीह से मिलते हैं, अर्थात् उन लोगों की संगति में जिन्हें प्रभु स्वयं अपने आस-पास इकट्ठा करते हैं, पूरे इतिहास में, हर उस व्यक्ति से मिलने के लिए जो ईमानदारी से उनकी खोज करता है। दुनिया को सुसमाचार के मिशनरियों की कितनी जरूरत है जो न्याय और शांति के साक्षी हों! भविष्य को ऐसे स्त्री-पुरुषों की कितनी जरूरत है जो आशा के साक्षी हों! प्रिय युवाओ, यही वह कार्य है जो पुनर्जीवित प्रभु हमें सौंपते हैं।

इस निरंतर कोशिश में, जैसा कि संत अगुस्टीन लिखते हैं : हे ईश्वर, आपकी रचना का एक कण, मनुष्य आपकी स्तुति करना चाहता है। आप ही हैं जो उसे आपकी स्तुति में आनंदित होने के लिए प्रेरित करते हैं, क्योंकि आपने हमें अपने लिए बनाया है, और हमारा हृदय तब तक बेचैन रहता है जब तक वह आप में विश्राम नहीं कर लेता। हे प्रभु, मैं आपको पुकारते हुए आपकी खोज करूँ, और आप पर विश्वास करके आपका आह्वान करूँ” (कनफेशन, I)। इस आह्वान को आपके प्रश्नों के साथ जोड़ते हुए, प्रिय युवाओ, मैं आपके समक्ष एक प्रार्थना प्रस्तुत करता हूँ: “हे येसु, हमारे तक पहुँचने के लिए धन्यवाद: मेरी इच्छा आपके मित्रों के बीच रहना है, ताकि, आपको गले लगाकर, मैं उन सभी के लिए इस यात्रा में एक साथी बन सकूँ जो मुझसे मिलते हैं। हे प्रभु, यह कृपा दें कि जो लोग मुझसे मिलते हैं, वे मेरी सीमाओं, मेरी कमजोरियों के माध्यम से भी, आपसे मिल सकें।” इन शब्दों के साथ, जब भी हम क्रूस की ओर देखेंगे, हमारा संवाद जारी रहेगा: उनमें हमारे हृदय मिलेंगे। इसलिए, आनंद और साहस के साथ विश्वास में दृढ़ रहें। धन्यवाद!

युवाओं की जयंती पर पोप ने तीर्थयात्रियों के प्रश्नों के उत्तर दिए

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03 अगस्त 2025, 15:02