संत पापा लियोः मरियम- सजीव आशा की सिरमौर
वाटिकन सिटी
संत पापा ने सभों का अभिवादन करते हुए कहा प्रिय भाइयो और बहनों, पर्व की शुभकामनाएं।
द्वितीय वाटिकन महासभा के पुरोहितों ने हमारे लिए कुंवारी मरियम के संदर्भ में एक आश्चर्यजनक लेख छोड़ा है, उसके एक अंश को मैं आज मरियम के महिमामय स्वर्ग में आरोहित किये जाने के महापर्व के अवसर पर पढ़ना चाहूँगा। कलीसियाई दस्तावेज के अंत में धर्मसभा कहती है, “येसु की माता, महिमामय, सशरीर और आत्मा स्वर्ग में उठा ली गई कलीसिया की निशानी और शुरूआत है जिसे संसार में परिपूर्ण किया जाना है। उसी भांति, वह पृथ्वी में प्रदीप्त होती है, उस दिन तक जब ईश्वर का आगमन होगा, जो निश्चित रुप में कलीसियाई तीर्थयात्री ईशप्रजा के लिए एक आशा और सांत्वना है।” (ल्यूमेन जेनसियुम 68)
स्वर्ग में मरियम
संत पापा ने कहा कि मरियम जिसे पुनर्जीवित ख्रीस्त ने सशरीर और आत्मा सहित अपनी महिमा में सहभागी होने हेतु उठा लिया, उनके तीर्थयात्री संतानों के पूरे इतिहास में आशा की एक निशानी स्वरूप चमकती है।
इस संदर्भ में हम दांत्ते के पदों पर कैसे विचार नहीं कर सकते हैं जिसे वे स्वर्ग का अंतिम गान में प्रस्तुत करते हैं। यह संत बेरनार्डो के ओठों से उच्चरित प्रार्थना, “कुंवारी माता, तेरे पुत्र की पुत्री” से शुरू होती है, कवि हम नश्वरों के मध्य मरियम की महिमा करते हैं, “वह सजीव आशा की सिरमौर है” अर्थात जीवन झरना जो आशा में फूटकर निकलाती है।
तीर्थयात्रियों का लक्ष्य
प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा लियो ने कहा कि विश्वास की हमारी यह सच्चाई पूरी तरह से जयंती की हमारी विषयवस्तु से मेल खाती है, “आशा के तीर्थयात्री”। तीर्थयात्री को एक उद्देश्य की आवश्यकता होती है जो उसे दिशा प्रदान करे- एक सुन्दर और आकर्षित करने वाला लक्ष्य जो उनके कदमों को दिशा-निर्देशित करे और थकान होने से उसमें नवस्फूर्ति का संचार करे, जो सदैव उसके हृदय में, एक चाह और आशा को आलोकित करती है। जीवन के डगर में, ईश्वर हमारे लक्ष्य हैं, अनंत और असीमित प्रेम, जीवन की पूर्णतः, शांति, खुशी और हर अच्छी चीजें। मानव का हृदय इन सुन्दर चीजों की ओर आकर्षित होता है और वह तब तक खुश नहीं होता जबतब वह उन्हें प्राप्त नहीं करता है, और वास्तव में, यदि वह बुराई और पाप के “अंधेरे जंगल” में खो जाए तो वह उसे नहीं पाने के खतरे में पड़ा जाता है।
हम येसु-मरियम की तरह हाँ कहें
संत पापा ने कहा कि आइए हम कृपा के बारे में विचार करें, ईश्वर हमसे भेंट करने आते हैं, उन्होंने हमारी तरह शरीरधारण किया, और वे हमारे बीच में आते हुए ईश्वर की उपस्थिति को लाते हैं या जैसे हम साधारण रूप में कहते हैं, वे “स्वर्ग में हैं।” यह येसु ख्रीस्त का रहस्य है जो शरीरधारण कर मनुष्य बनें, मरे और हमारी मुक्ति हेतु जी उठे। उनमें अविभाजित हम मरियम के रहस्य को भी पाते हैं, नारी जिसके द्वारा ईश्वर के पुत्र ने मानव और कलीसिया का रुप, ख्रीस्त का रहस्यत्मक शरीरधारण किया। यह हमारे लिए एक अद्वितीय प्रेम के रहस्य को प्रकट करता है और इस भांति स्वतंत्रता को। जैसे कि येसु ने “हाँ” कहा, उसी भांति मरियम ने “हाँ” कहा, उन्होंने ईश्वर के वचनों में विश्वास किया। अपने बेटे, ईश्वर के पुत्र संग उनका सम्पूर्ण जीवन हमारे लिए आशा का एक तीर्थ रहा, जो क्रूस और पुनरूत्थान के द्वारा स्वर्गीय निवास में पहुंचा है जहाँ हम ईश्वर के आलिंगन को पाते हैं।
यही कारण है, जब हम अपनी यात्रा करते हैं, चाहे हम व्यक्तिगत, परिवारों और समुदायों के रुप में क्यों न हों, विशेषकर जब हम बदलों को देखते जो हमारे मार्ग में कठिनाईयाँ और अनिश्चित उत्पन्न करते हैं, हम अपने निगाहें उनकी ओर फेरें, वे हमारी माँ हैं जिनमें हम आशा को पायेंगे जो हमें कभी निराश नहीं करती है।
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