संत पापा लियोः आशा खुशी का उद्गम, उम्र चाहे कुछ भी हो
वाटिकन सिटी
दादा-दादी और बुजुर्गों के लिए विश्व दिवस की जयंती समारोह से पहले - जो इस वर्ष 27 जुलाई को मनायी जायेगी- संत पापा लियो लिखते हैं कि “आशा खुशी का एक निरंतर स्रोत है, चाहे हमारी उम्र कुछ भी हो,” वे कहते हैं, "जब उस आशा को लंबे जीवन के दौरान आग में तपाया जाता है, तो यह गहरी खुशी का स्रोत साबित होती है।"
अपने संदेश में संत पापा ने धर्मग्रँथ पर आधारित अपने चिंतन में विभिन्न व्यक्तित्वों का उदाहरण प्रस्तुत किया जैसे आब्रहम और सारा, जाकरियस और एलिजबेथ के अलावे मूसा, ईश्वर ने उन्हें बढ़ती उम्र में भी मुक्ति इतिहास में अपनी योजना का अंग बनाया।
बुजुर्ग आशा की निशानी
धर्मग्रंथ का मुक्ति इतिहास हमें दर्शाता है कि, ईश्वर की दृष्टि में, "बुढ़ापा आशीर्वाद और अनुग्रह का समय है, और बुज़ुर्ग... आशा के प्रथम साक्षी हैं।” कलीसिया और विश्व के जीवन को पीढ़ियों के लिए जीने की बात को देखते हुए संत पापा लियो कहते हैं कि बुज़ुर्ग, भले ही उन्हें युवाओं के सहारे की आवश्यकता हो, वे युवाओं की अनुभवहीनता के साक्षी बन सकते हैं और उन्हें “बुद्धिमत्ता से भविष्य का निर्माण करने” में मदद कर सकते हैं।
संत पापा कहते हैं कि हम बुजुर्गों में “अनमोल विरासत” जैसे विश्वास, भक्ति, नागरिक सद्गुण, सामाजिक प्रतिबद्धता आदि को पाते हैं जो हमेशा हमारे लिए "कृतज्ञता और दृढ़ता का आह्वान" करती है।
“ईश्वर इस भांति हमें यह शिक्षा देते हैं कि बुढ़ापे की अवसथा कृपा और आशीष का एक समय होता है, और बुजुर्ग उनके लिए आशा के प्रथम साक्षी है।”
बुजुर्गों के लिए आशा
संत पापा कहते हैं कि बुजुर्गों को आशा की जरूरत है। उन्होंने जयंती को पारंपरिक रूप से मुक्ति का समय मानते हुए कहा कि हम सभी बुजुर्गों को “मुक्ति की अनुभूति दिलाने हेतु बुलाये गये हैं विशेष रूप से अकेलेपन और छोड़ दिये जाने की भावना से” मदद करने को कहे जाते हैं।
संत पापा कहते हैं कि आधुनिक समाज में अक्सर बुज़ुर्ग हाशिए पर चले जाते और भुला दिए जाते हैं। वे कहते हैं, “इस स्थिति को देखते हुए, हमें गति में परिवर्तन लाने की ज़रूरत है जो पूरे कलीसिया की ज़िम्मेदारी संभालने में सहजता की अनुभूति लाती है।
उन्होंने कहा कि हर पल्ली को बुज़ुर्गों का समर्थन करने, "ऐसे रिश्ते बनाने" का आहृवान किया जाता है जो उन लोगों के लिए आशा और सम्मान उत्पन्न करें जो खुद को भुला हुआ महसूस करते हैं। ख़ास तौर पर बुज़ुर्गों के संबंध में, ख्रीस्तीय आशा "हमें एक ऐसे बदलाव के लिए काम करने को निमंत्रण देती है जहाँ वे अपने में सम्मान और स्नेह का अनुभव करते हों जिसके वे हक़दार हैं।"
संत पापा लियो ने विशेष रूप से, संत पापा फ़्रांसिस की उस इच्छा को याद करते हैं कि अकेले रहने वाले बुज़ुर्गों की तलाश की जाए और उन लोगों के लिए अवसर उत्पन्न किया जो जयंती वर्ष के दौरान दंडमोचन प्राप्त करने हेतु रोम नहीं आ सकते हैं।
आशा के कारण
संत पापा लियो ने बुजुर्गों में प्रोत्साहन की भावना का संचार करते हुए कहते है कि यहाँ तक की बुढ़ापे की अवस्था में भी हर कोई प्रेम और प्रार्थना करने के योग्य होता है। “हमारे प्रियजनों के प्रति हमारा स्नेह... हमारी शक्ति के कम होने पर भी कम नहीं होता” बल्कि यह "हमारी ऊर्जा को पुनर्जीवित करता है और हमें आशा और सांत्वना प्रदान करता है।”
“हमारे पास एक ऐसी स्वतंत्रता है जिसे कोई भी कठिनाई हमसे छीन नहीं सकती: यह प्रेम करने और प्रार्थना करने की स्वतंत्रता है। हर कोई, हमेशा, प्रेम और प्रार्थना कर सकता है।” आशा की ये निशानियाँ हमारे लिए साहस का कारण बनती है और हम यह याद दिलाती है कि अपने उम्र के बावजूद हमारा आंतरिक रूप निरंतर नवीन होता रहता है।
संत पापा लियो कहते हैं,“खासकर जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, आइए हम प्रभु में विश्वास के साथ आगे बढ़ें,” प्रार्थना और दैनिक मिस्सा के माध्यम से नवीनीकृत होते रहें; और “हम इतने वर्षों से जिस विश्वास को जी रहे हैं, उसे प्रेमपूर्वक दूसरों तक पहुँचाएँ”, साथ ही निरंतर ईश्वर की स्तुति करें और लोगों के बीच एकता को बढ़ावा दें।
“इस तरह," उन्होंने कहा कि "हम आशा के प्रतीक बनेंगे, चाहे हमारी उम्र कुछ भी हो।”
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here