पोप लियो 14वें : एकता एवं भाईचारापूर्ण उदारता के रास्ते पर चलने की कृपा मांगें
वाटिकन न्यूज
कास्तेल गंदोल्फो, बृहस्पतिवार, 17 जुलाई 25 (रेई) : रोम, कुस्तुनतुनिया और निकेया की संयुक्त ऑर्थोडॉक्स-काथलिक तीर्थयात्रा "प्रभु येसु के सभी शिष्यों के बीच पूर्ण एकता बहाल करने के उद्देश्य से किए गए ख्रीस्तीय एकता आंदोलन के प्रचुर फलों में से एक है," पोप लियो 14वें ने गुरुवार को तीर्थयात्रा में भाग लेनेवालों का कास्तेल गंदोल्फो स्थित पोप ग्रीष्मकालीन निवास में स्वागत करते हुए कहा।
"रोम से नए रोम तक" तीर्थयात्रा में संयुक्त राज्य अमेरिका से पचास ग्रीक ऑर्थोडॉक्स, बीजेन्टिन काथलिक और लैटिन काथलिक तीर्थयात्री शामिल हैं, और इसका नेतृत्व अमेरिका के ग्रीक ऑर्थोडॉक्स महाधर्माध्यक्ष एल्पिडोफोरोस और न्यू जर्सी के नेवार्क के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल जोसेफ टोबिन कर रहे हैं।
उनका अभिवादन करते हुए पोप लियो ने याद किया कि तीर्थयात्रा का उद्देश्य “स्रोत की ओर लौटना है” रोम जहाँ संत पेत्रुस एवं पौलुस, शहीद हुए थे; कुस्तुनतुनिया - नया इस्तांबुल – जहाँ से संत अंद्रेयस जुड़े हैं और निकेया जहाँ 1700 वर्षों पहले पहली ख्रीस्तीय एकता महासभा सम्पन्न हुई थी।
पोप ने 2025 में एक साथ पास्का महापर्व मनाने पर प्रकाश डाला, जिसे ग्रेगोरियन और जूलियन दोनों कैलेंडरों को माननेवालों ने एक ही तिथि पर मनाया। इस उत्सव में सभी ख्रीस्तीय एक साथ पास्का अल्लेलुया, "मसीह जी उठे हैं! वे सचमुच जी उठे हैं’ का उद्घोष किया।"
पोप लियो 14वें ने कहा कि ये शब्द येसु के दुःखभोग और पुनरुत्थान का उद्घोष करते हैं, "एक मेमना जो हमें "पाप और मृत्यु के अंधकार" से मुक्ति दिलाने के लिए मारा गया।" मसीह द्वारा प्राप्त मुक्ति "हमें अपार आशा से प्रेरित करती है" और साथ ही हमें "आशा के साक्षी और वाहक बनने" का आह्वान भी करती है, जो जयंती वर्ष के आदर्श वाक्य, आशा के तीर्थयात्री की याद दिलाती है।
पोप लियो ने कहा, "मुझे आशा है कि आपकी तीर्थयात्रा, पुनर्जीवित प्रभु में हमारे विश्वास से उत्पन्न आशा में आप सभी की पुष्टि करेगी!"
इस पर गौर करते हुए कि इसके बाद कुस्तुनतुनिया की यात्रा होगी, पोप लियो ने तीर्थयात्रियों से प्राधिधर्माध्यक्ष बरथोलोमियो को अपनी शुभकामनाएँ देने का आग्रह किया एवं निकेया की महासभा के वर्षगाँठ समारोह में पुनः मुलाकात करने की उम्मीद जतायी।
संत पापा ने ख्रीस्तीय एकता दल की तीर्थयात्रा को उन अनेक चिन्हों में से एक बताया जो "हाल के दशकों की ईशशास्त्रीय प्रगति और उदारता के संवाद को पहले से ही प्रकट करते हैं", विशेषकर पोप पॉल छठवें और प्राधिधर्माध्यक्ष अथनागोरस का संयुक्त घोषणापत्र, जिसमें 1054 में रोम और कुस्तुनतुनिया के बीच हुए संबंध विच्छेद को हटा दिया गया था।
पोप ने कहा, "अपनी ओर से, हमें भी एकता और भ्रातृत्वपूर्ण उदारता के मार्ग पर चलने के लिए ईश्वर, सांत्वनादाता से अनुग्रह की याचना करते रहना चाहिए।" मुक्ति की दो हज़ारवीं वर्षगांठ को देखते हुए, पोप लियो ने कहा, "आध्यात्मिक रूप से, हम सभी को शांति के शहर, येरुशलम लौटना चाहिए," जहाँ प्रेरितों ने "पृथ्वी के छोर तक" मसीह की गवाही देने से पहले पवित्र आत्मा प्राप्त किया था।
संत पापा लियो ने अपने सम्बोधन का समापन एक प्रार्थना से की, "हमारे विश्वास की जड़ों की ओर लौटने से हम सभी को ईश्वर की सांत्वना का उपहार अनुभव करने में मदद मिलेगी और हम उस भले समारी की तरह आज की मानवता पर सांत्वना का तेल और खुशी की मदिरा उंडेलने में सक्षम बनेंगे।"
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