पुरोहितों से सन्त पापा: 'कोई भी अकेला नहीं है'
वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 27 जून 2025 (रेई, वाटिकन रेडियो): सन्त पापा लियो 14 वें ने गुरुवार को पुरोहितों के साथ अंतर्राष्ट्रीय बैठक के प्रतिभागियों को दिये सन्देश में पुरोहितीय प्रशिक्षण और जीवन में भ्रातृत्व के महत्व पर बल दिया तथा पुरोहितों को स्मरण दिलाया कि वे कभी अकेले नहीं होते हैं।
जयन्ती वर्ष 2025 के उपलक्ष्य में रोम के कॉनचिलियात्सियोने रंगभवन में 25 से 27 तक “आनन्दित याजकों - मैंने तुम्हें मित्र कहा है”, शीर्षक से आयोजित याजकवर्ग की अन्तरराष्ट्रीय बैठक में लगभग 1,700 पुरोहितों, प्रशिक्षकों एवं गुरुकुल छात्रों ने भाग लिया।
तीन अंतर्दृष्टियाँ
अन्तरराष्ट्रीय बैठक में उपस्थित लोगों को दिए अपने संदेश में सन्त पापा लियो ने इस बात पर ज़ोर दिया कि येसु के शब्द, “मैंने तुम्हें मित्र कहा है” सिर्फ़ एक अच्छा कथन नहीं है, बल्कि वे “पुरोहितिक प्रेरिताई को समझने की एक सच्ची कुंजी हैं।”
पौरोहित्य प्रशिक्षण पर विचार करते हुए सन्त पापा लियो ने तीन अंतर्दृष्टियाँ प्रस्तुत कीं। सर्वप्रथम, उन्होंने कहा कि पुरोहितीय प्रशिक्षण संबंधों का मार्ग है, और इसका अर्थ "केवल कौशल में नहीं, बल्कि संबंधों में परिलक्षित होना है।" अस्तु, सन्त पापा ने कहा कि पुरोहितीय प्रशिक्षण को केवल ज्ञान प्राप्त करने पर केंद्रित न रखा जाये, बल्कि इसे ईश्वर के साथ परिचितता बढ़ाने पर केंद्रित किया जाये।
दूसरी अंतर्दृष्टि साझा करते हुए सन्त पापा लियो ने भ्रातृत्व भाव को रेखांकित किया और कहा कि भाईचारा पुरोहितीय जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने पुरोहितों और गुरुकुल छात्रों से आग्रह किया कि वे प्रतिद्वंद्वी या अलग-थलग व्यक्तियों की तरह नहीं अपितु प्रेम और भाईचारे के भाव से एक दूसरे के संग रहें तथा रह स्थिति में भाई की मदद को तैयार रहें। उन्होंने भाईचारे को अनिवार्य बताते हुए यह प्रश्न किया: "यदि हमारे बीच कोई वास्तविक और ईमानदार भाईचारा नहीं है, तो हम, पुरोहितों के रूप में, जीवंत समुदायों का निर्माण कैसे कर सकते हैं?"
तृतीय, सन्त पापा लियो ने तर्क दिया कि पुरोहितों के प्रशिक्षण का मतलब है ऐसे लोगों का प्रशिक्षण जो प्रेमपूर्वक जीवन यापन करने, एक दूसरे को सुनने, प्रार्थना करने और सेवा करने में सक्षम हों। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि "हमें प्रशिक्षकों को तैयार करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए।" सन्त पापा ने कहा कि काथलिक गुरुकुल अपने आप में एक महान अनुस्मारक है कि पुरोहितों का प्रशिक्षण अकेले नहीं बल्कि समुदाय में रहकर ही हो सकता है।
कभी न डरें
"पुरोहितों के जीवन और मिशन को प्रभावित करने वाले संकट के संकेतों" और बुलाहटों में कमी के बारे में बोलते हुए सन्त पापा लियो ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पुरुषों को पुरोहिताई लिए बुलाया जाता है और वे अपने मिशन को ईमानदारी से जीने का प्रयास करते हैं। यह सिलसिला, उन्होंने कहा, अनवरत जारी रहा करता है।
उन्होंने सभी पुरोहितों को प्रोत्साहित किया कि वे "साहसिक प्रस्ताव करने से न डरें" जो युवा लोगों को उनके आह्वान को सुनने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
पुरोहितों की उक्त अंतर्राष्ट्रीय बैठक और सन्त पापा से पुरोहितों की मुलाकात प्रभु येसु मसीह के पवित्र हृदय महापर्व की पूर्व सन्ध्या सम्पन्न हुई। इस अवसर पर सन्त पापा ने दिवंगत सन्त पापा फ्रांसिस के विश्व पत्र, दिलेक्सित नोस का स्मरण किया जो इस तथ्य का अनुस्मारक है कि प्रत्येक व्यक्ति का सृजन ईश्वर के लिए किया गया है।
आशा की आवाज़ बनें
उन्होंने पुरोहितों से मिशन के उत्साह को पुनः खोजने का आग्रह किया, क्योंकि "जब कोई सचमुच विश्वास करता है, तो आप कह सकते हैं कि पुरोहित का आनंद येसु मसीह के साथ उसकी मुलाकात को दर्शाता है।"
सन्त पापा ने पुरोहितों को प्रोत्साहन देते हुए कहा कि वे स्वतः को कभी भी अकेला न समझें क्योंकि ईश्वर सदैव उनके साथ हैं और अपनी प्रार्थनाओं द्वारा कलीसिया के परमाध्यक्ष भी निरन्तर उनके समीप रहते हैं। उन्होंने कहा, "हमेशा ईश्वर की कृपा और मेरी निकटता पर भरोसा रखें, और साथ मिलकर हम वास्तव में दुनिया में आशा की आवाज़ बन सकते हैं।"
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