सरकारों और प्रशासकों की जयन्ती के अवसर पर पोप लियो का संदेश
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, शनिवार, 21 जून 2025 (रेई) : सांसदों को सम्बोधित करते हुए पोप ने कहा, “मुझे सरकारों और प्रशासकों की जयंती के उपलक्ष्य में अंतर्राष्ट्रीय अंतर-संसदीय संघ के मिलन समारोह के अवसर पर आपका स्वागत करते हुए खुशी हो रही है। मैं 68 देशों से आए प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों का अभिवादन करता हूँ। विशेषकर, राष्ट्राध्यक्षों का।”
सरकारों एवं प्रशासकों की जयन्ती 20 से 22 जून तक वाटिकन में मनाया जा रहा है।
राजनीतिक गतिविधि को “उदारता का सर्वोत्तम रूप” के रूप में परिभाषित किया गया है और यदि समाज एवं सार्वजनिक कल्याण के लिए की जानेवाली सेवा पर विचार किया जए, तो यह वास्तव में उस ख्रीस्तीय प्रेम का कार्य प्रतीत होता है जो सिद्धांत मात्र नहीं, बल्कि मानव के पक्ष में हमेशा ईश्वर के कार्य का एक ठोस संकेत और गवाही होता है (फ्राँसिस, विश्व पत्र फ्रात्तेली तूत्ती, 176-192)।
सामुदायिक हित को बढ़ावा देना
अपने संदेश में पोप लियो 14वें ने वर्तमान की सांस्कृतिक पृष्टभूमि पर तीन बिन्दुओं पर विचार किया।
पोप ने कहा, पहला बिन्दु आपको सौंपे गए कार्य से संबंधित है, जिसमें किसी व्यक्तिगत हित से परे, सामुदायिक हित को बढ़ावा देना और उसकी रक्षा करना शामिल है, विशेषकर सबसे कमजोर और हाशिए पर पड़े लोगों की रक्षा करना। उदाहरण के लिए, सम्पति पर कुछ ही लोगों का कब्जा और बेहिसाब फैली गरीबी के बीच अस्वीकार्य असमानता को दूर करने के लिए काम करना। (पोप लियो XIII, विश्वपत्र पत्र रेरम नोवारम, 15 मई 1891, 1)।
पोप ने कहा, “जो लोग विषम परिस्थितियों में रहते हैं, वे अपनी आवाज बुलंद करने के लिए चिल्लाते हैं, लेकिन अक्सर कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं होता। यह असंतुलन स्थायी अन्याय की स्थिति पैदा करता है, जो आसानी से हिंसा और, धीरे धीरे युद्ध की त्रासदी की ओर ले जाता है। इसके बजाय, संसाधनों के उचित वितरण को बढ़ावा देकर एक अच्छी राजनीतिक कार्रवाई सामाजिक स्तर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सद्भाव और शांति के लिए एक प्रभावी सेवा प्रदान कर सकती है।”
धार्मिक स्वतंत्रता और अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देना
दूसरा बिन्दु धार्मिक स्वतंत्रता और अंतरधार्मिक संवाद से संबंधित है। इस क्षेत्र में भी, जो आज तेजी से प्रासंगिक होता जा रहा है, राजनीतिक कार्रवाई बहुत कुछ कर सकती है, ऐसी परिस्थितियों को बढ़ावा दे सकती है जिससे धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा मिले और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सम्मानजनक और रचनात्मक मुलाकात विकसित हो सके। ईश्वर में विश्वास करना, उससे प्राप्त होनेवाले सकारात्मक मूल्यों के साथ, व्यक्तियों और समुदायों के जीवन में अच्छाई और सच्चाई का एक विशाल स्रोत है। इस संबंध में, संत अगुस्टीन ने व्यक्ति के स्वार्थी प्रेम, बंद और विनाशकारी रूप से, बिना शर्त प्रेम, जिसकी जड़ें ईश्वर में हैं और जो खुद को दान करने हेतु प्रेरित करता है - उसके निर्माण में एक मौलिक तत्व के रूप में एक ऐसे समाज का निर्माण करना जिसमें मौलिक नियम उदारता है।
संत पापा ने राजनीतिक कार्य में उन बिन्दुओं को खोजना उपयोगी बताया जो सभी को एकजुट करता है। इसमें एक आवश्यक संदर्भ प्राकृतिक कानून का है, जो मानव हाथों से नहीं लिखा गया है, लेकिन सार्वभौमिक रूप से हर युग के लिए मान्य है, जो प्रकृति में ही अपना सबसे प्रशंसनीय और ठोस रूप पाता है। प्राचीन काल में ही सिसरो ने लिखा: “प्राकृतिक नियम सही कारण है, प्रकृति के अनुरूप, सार्वभौमिक, निरंतर और शाश्वत, जो अपने आदेशों के साथ कर्तव्यों को पूरा करने का निमंत्रण देता है, अपने निषेधों के साथ बुराई से विचलित करता है [...]। इस कानून में कोई संशोधन करने या इसके किसी हिस्से को घटाने की अनुमति नहीं है, न ही इसे पूरी तरह से समाप्त करना संभव है; न ही हम सीनेट या लोगों के माध्यम से खुद को इससे मुक्त कर सकते लेकिन एक शाश्वत और अपरिवर्तनीय कानून सभी लोगों को हर समय नियंत्रित करता है।" (सिसेरो, डी रे पब्लिका, III, 22)।
प्राकृतिक नियम के प्रति सम्मान
प्राकृतिक नियम, जो संदिग्ध प्रकृति की हर मान्यता से परे और ऊपर है, सार्वभौमिक रूप से मान्य है, वह दिशा-निर्देश है जिसके द्वारा व्यक्ति कानून बनाने और कार्य करने में स्वयं को उन्मुख कर सकता है, विशेष रूप से नाजुक नैतिक प्रश्नों पर, जो आज अतीत की तुलना में कहीं अधिक बाध्यकारी तरीके से प्रस्तुत किए जाते हैं, तथा व्यक्तिगत अंतरंगता के क्षेत्र को प्रभावित करते हैं।
संत पापा ने याद किया कि 10 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृत और घोषित मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा अब मानवता की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। यह दस्तावेज, जो हमेशा प्रासंगिक रहता है, मानव व्यक्ति को उसकी अनुल्लंघनीय अखंडता में, सत्य की खोज की नींव पर रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है, ताकि उन लोगों में सम्मान बहाल किया जा सके जो अपने अंतरतम में और अपनी अंतरात्मा की मांगों में सम्मान महसूस नहीं करते हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता की एक बड़ी चुनौती
तीसरे बिन्दु पर चिंतन करते हुए पोप ने कहा, “हमारी दुनिया में सभ्यता का जो स्तर हासिल हुआ है, और जिन उद्देश्यों का जवाब देने के लिए आप बुलाये गये हैं, उसमें आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता की एक बड़ी चुनौती है। यह एक ऐसा विकास है जो निश्चित रूप से समाज के लिए वैध मदद करेगा, हालांकि, इसका प्रयोग मानव व्यक्ति की पहचान और गरिमा एवं उसकी मौलिक स्वतंत्रता को कमजोर करने में नहीं किया जाना चाहिए।
खास तौर पर, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का काम मनुष्य की भलाई के लिए एक माध्यम बनना है, न कि उसे छोटा करना या उसकी पराजय को परिभाषित करना। इसलिए, जो उभर रहा है, वह एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए बहुत ध्यान देने और भविष्य की ओर दूरदर्शी नजर की ज़रूरत है, ताकि नए परिदृश्यों के संदर्भ में भी, स्वस्थ, निष्पक्ष और सुरक्षित जीवनशैली को बढ़ावा दिया जा सके, खासकर युवा पीढ़ियों के फायदे के लिए।
व्यक्तिगत जीवन निर्धारित नियमों के पालन से कहीं अधिक मूल्यवान है और सामाजिक संबंधों के लिए मानवीय स्थानों की आवश्यकता होती है जो किसी भी निष्प्राण मशीन द्वारा तैयार की जा सकनेवाली सीमित योजनाओं से कहीं बेहतर है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि, लाखों आंकड़े संग्रहीत करने और कुछ सेकंड में कई सवालों के जवाब देने में सक्षम होने के बावजूद, कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक स्थिर "मेमोरी" से निर्मित है, जिसको किसी भी तरह से पुरुष और महिला की स्मरणशक्ति के साथ तुलना नहीं की जा सकती। मानव की स्मरणशक्ति रचनात्मक, गतिशील, उत्पादक है जो अतीत, वर्तमान और भविष्य को अर्थ की जीवंत और फलदायी खोज में एकजुट करने में सक्षम है, जिसमें सभी नैतिक और अस्तित्वगत निहितार्थ हैं जो इससे उत्पन्न होते हैं।(फ्राँसिस, G7 में कृत्रिम बुद्धिमता सत्र में भाषण, 14 जून 2024)
राजनीति इस तरह के उकसावे को नजरअंदाज नहीं कर सकती। इसके विपरीत, उसे उन नागरिकों की बात का जवाब देना होगा जो नई डिजिटल संस्कृति की चुनौतियों को सही मायने में भरोसे और चिंता के साथ देखते हैं।
संत थॉमस मोर अपनी नागरिक जिम्मेदारियों के प्रति वफादार
संत जॉन पॉल द्वितीय ने 2000 की जयंती के अवसर पर राजनेताओं को एक ऐसे गवाह के रूप में इंगित किया था, जिसकी ओर वे देख सकते थे और एक मध्यस्थ जिसके संरक्षण में वे अपनी प्रतिबद्धता रख सकते थे, संत थॉमस मोर। वास्तव में, संत थॉमस मोर अपनी नागरिक जिम्मेदारियों के प्रति वफादार व्यक्ति थे, राज्य के एक आदर्श सेवक थे, उनके विश्वास ने उन्हें राजनीति को एक पेशे के रूप में नहीं, बल्कि सच्चाई और अच्छाई के विकास के लिए एक मिशन के रूप में व्याख्या करने हेतु प्रेरित किया।
उन्होंने "अपनी सार्वजनिक गतिविधियों को लोगों की सेवा में लगा दिया, विशेषकर कमजोर या गरीब लोगों के; उन्होंने सामाजिक विवादों को समानता की उत्कृष्ट भावना के साथ ठीक किया; परिवार की रक्षा की और कड़ी प्रतिबद्धता के साथ उसका बचाव किया; उन्होंने युवाओं की समग्र शिक्षा को बढ़ावा दिया।"
जिस साहस के साथ उन्होंने सत्य को धोखा देने के बजाय, उसके लिए अपने जीवन का बलिदान करने में संकोच नहीं किया, वे आज भी हमारे लिए स्वतंत्रता और अंतःकरण को प्राथमिकता देनेवाले आदर्श शहीद हैं। उनका उदाहरण आप सभी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने।
अंत में संत पापा ने उनकी तीर्थयात्रा के लिए सभी को धन्यवाद देते हुए उनकी प्रतिबद्धता के लिए अपनी शुभकामनाएँ दीं और उनके लिए आशीर्वाद की कामना की।
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