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खेल की जयन्ती के अवसर पर समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा लियो 14वें खेल की जयन्ती के अवसर पर समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा लियो 14वें  (ANSA)

खेल की जयन्ती पर पोप लियो : कोई भी व्यक्ति जन्म से विजेता या संत नहीं होता

पवित्रतम त्रिएक ईश्वर के महापर्व के अवसर पर, पोप लियो 14वें ने खेल जयंती को एक समारोही ख्रीस्तयाग के साथ समाप्त किया, तथा सभी को याद दिलाया कि खेल "मेल-मिलाप और मुलाकात का साधन" हो सकते हैं।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, रविवार, 15 जून 2025 (रेई) : संत पापा लियो 14वें ने पवित्र तृत्वमय ईश्वर के महापर्व के अवसर पर रविवार 15 जून को वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर में समारोही ख्रीस्तयाग के साथ खेल की जयन्ती का समापन किया।

संत पापा ने कहा, “प्रिय भाइयो और बहनो,  हम खेल की जयंती के साथ-साथ परम पावन त्रिएक ईश्वर का महापर्व मना रहे हैं। त्रिएक ईश्वर और खेल का यह संयोजन कुछ हद तक असामान्य है, फिर भी यह एक-दूसरे से मेल खाता है। हर अच्छी और सार्थक मानवीय गतिविधि किसी न किसी तरह से ईश्वर की असीम सुंदरता का प्रतिबिंब है, और खेल निश्चित रूप से इनमें से एक है। क्योंकि ईश्वर स्थिर और बंद नहीं हैं, बल्कि सक्रियता, समन्वय एवं पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के बीच एक गतिशील संबंध है, जो मानवजाति और दुनिया के लिए खुले हैं। ईशशास्त्री पेरिकोरेसिस की बात करते हैं: ईश्वर का जीवन एक तरह का "नृत्य" है: आपसी प्रेम का नृत्य।

ईश्वर के आंतरिक जीवन की यह गतिशीलता जीवन को जन्म देती है। हमें एक ऐसे ईश्वर ने बनाया है जो अपने प्राणियों को जीवन देने में आनंद महसूस करते, जो हमारी दुनिया से “खुश” होते हैं, जैसा कि हमने पहले पाठ में सुना (सूक्तिग्रंथ 8:30-31)। कलीसिया के कुछ धर्माचार्य ​​कहते हैं कि वे एक ऐसे ईश्वर हैं जो खेलते हैं, देऊस लुदेन्स। इस प्रकार खेल हमें त्रिएक ईश्वर से मिलने में मदद कर सकता है, क्योंकि यह हमें दूसरों से और दूसरों के साथ, न केवल बाहरी रूप से बल्कि, और सबसे बढ़कर, आंतरिक रूप से भी संबंध बनाने की चुनौती देता है। अन्यथा, खेल केवल अहंकार की एक खोखली प्रतिस्पर्धा से ज्यादा कुछ नहीं रह जायेगी।

देख में देने की माँग

यहाँ इटली में, खेल आयोजनों में दर्शक अक्सर खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन करते हुए चिल्लाते हैं, "दाई!" (जोर लगाओ!)। हालाँकि, इतालवी शब्द का शाब्दिक अर्थ है, "देना!" जो हमें सोचने पर मजबूर करता है। खेल केवल शारीरिक उपलब्धियों के बारे में नहीं है, चाहे वे कितनी भी असाधारण क्यों न हों, बल्कि खुद को देना, खुद को "खेल में शामिल करना" है। यह दूसरों के लिए खुद को देना है - हमारे व्यक्तिगत सुधार के लिए, हमारे एथलेटिक समर्थकों के लिए, हमारे प्रियजनों, हमारे कोचों और सहकर्मियों के लिए, आम जनता के लिए और यहाँ तक कि हमारे विपक्षियों के लिए भी।

"अच्छा खिलाड़ी" होना जीतने या न जीतने से अधिक महत्वपूर्ण है। संत जॉन पॉल द्वितीय - जैसा कि हम जानते हैं, खुद एक खिलाड़ी थे – कहा करते थे, "खेल जीवन का आनंद है, एक क्रीड़ा है, एक उत्सव है। इस तरह, इसकी विशुद्ध नि:शुल्कता को पुनः प्राप्त करके, दोस्ती के बंधन बनाने की इसकी क्षमता, दूसरों के प्रति संवाद और खुलेपन को प्रोत्साहित करके...... उत्पादन और उपभोग के कठोर नियमों और जीवन के अन्य सभी विशुद्ध उपयोगितावादी और सुखवादी दृष्टिकोणों से बिल्कुल अलग" इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए।(खेल की जयंती के लिए धर्मोपदेश, 12 अप्रैल 1984)।

इस दृष्टिकोण से, आइए हम तीन विशेष बातों पर विचार करें जो खेल को आजकल मानवीय और ख्रीस्तीय सदगुणों के विकास के लिए एक अनमोल साधन बनाती हैं।

सबसे पहले, एकाकीपन से प्रभावित समाज में, जहाँ चरमपंथी व्यक्तिवाद ने “हम” से “मुझे” पर जोर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप दूसरों के लिए वास्तविक चिंता की कमी हुई है, खेल - विशेष रूप से टीम के खेल - सहयोग करने, एक साथ काम करने और साझा करने का मूल्य सिखाते हैं। जैसा कि हमने कहा, ये ईश्वर के अपने जीवन के मूल में हैं (यो. 16:14-15)। इस प्रकार खेल लोगों के बीच और समुदायों, स्कूलों, कार्यस्थलों और परिवारों के भीतर मेल-मिलाप और मुलाकात का एक महत्वपूर्ण साधन बन सकता है।

एकांत, डिजिटल और प्रतिस्पर्धी समाज

दूसरा, तेजी से डिजिटल होते समाज में, जहाँ तकनीक दूर रहनेवाले लोगों को करीब लाती है, फिर भी अक्सर शारीरिक रूप से करीब रहनेवालों के बीच दूरियाँ पैदा करती है, खेल व्यक्तियों को एक साथ लाने का एक मूल्यवान और ठोस साधन साबित होता है, जो शरीर, स्थान, प्रयास और वास्तविक समय की एक स्वस्थ समझ प्रदान करता है। यह आभासी दुनिया में भागने के प्रलोभन का सामना करता है और यह प्रकृति और वास्तविक जीवन के साथ एक स्वस्थ संपर्क बनाए रखने में मदद करता है, जहाँ सच्चे प्रेम का अनुभव होता है (1 यो. 3:18)।

तीसरा, हमारे प्रतिस्पर्धी समाज में, जहाँ ऐसा लगता है कि केवल मजबूत व्यक्ति और विजेता ही जीने के हकदार हैं, खेल हमें हारना भी सिखाता है। यह हमें हारने की कला सीखने के लिए मजबूर करता है, ताकि हम अपनी मानवीय स्थिति की सबसे गहरी सच्चाई : हमारी कमजोरी, हमारी सीमाओं और हमारी खामियों का सामना कर सकें। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन सीमाओं को महसूस करके ही हम अपने दिलों को उम्मीद के लिए खोलते हैं। जो खिलाड़ी कभी गलती नहीं करते, जो कभी हारते नहीं, ऐसे खिलाड़ी हैं ही नहीं। चैंपियन पूरी तरह से काम करनेवाली मशीन नहीं हैं, बल्कि असली पुरुष और महिलाएँ हैं, जो गिरने पर अपने पैरों पर वापस खड़े होने का साहस पाते हैं। संत जॉन पॉल द्वितीय ने सही कहा था कि येसु "ईश्वर के सच्चे खिलाड़ी" हैं क्योंकि उन्होंने दुनिया को ताकत से नहीं, बल्कि प्रेम की निष्ठा से हराया ( खिलाड़ियों और खिलाड़ियों की जयंती के लिए ख्रीस्तयाग में धर्मोपदेश, 29 अक्टूबर 2000)।

“कोई भी व्यक्ति चैंपियन बनकर पैदा नहीं होता”

यह कोई संयोग नहीं है कि खेल ने हमारे समय में कई संतों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, दोनों, एक व्यक्तिगत अनुशासन के रूप में और सुसमाचार प्रचार के साधन के रूप में। हम एथलीटों के संरक्षक धन्य पियर जोर्जो फ्रसाती के बारे में सोच सकते हैं, जिन्हें इस साल के अंत में 7 सितंबर को संत घोषित किया जाएगा। उनका सीधा और उज्ज्वल जीवन हमें याद दिलाता है कि, जिस तरह कोई भी चैंपियन के रूप में पैदा नहीं होता, उसी तरह कोई भी संत के रूप में पैदा नहीं होता। यह प्रेम में दैनिक विकास है जो हमें अंतिम जीत के करीब लाता है (रोम 5: 3-5) और हमें एक नई दुनिया के निर्माण में योगदान करने में सक्षम बनाता है।

संत पौल छठवें ने भी द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बीस साल बाद इस पर गौर किया, जब उन्होंने एक काथलिक खेल संघ के सदस्यों को याद दिलाया कि युद्ध के परिणामों से तबाह हुए समाज में शांति और उम्मीद को बहाल करने में खेलों ने कितनी मदद की है (सी.एस.आई. के सदस्यों को संबोधन, 20 मार्च 1965)। उन्होंने आगे कहा, "आपके प्रयास एक नए समाज के निर्माण पर केंद्रित हैं..., इस मान्यता में कि खेल, अपने द्वारा बढ़ावा दिए जानेवाले ठोस शैक्षिक मूल्यों के कारण, मानव व्यक्ति के आध्यात्मिक उत्थान के लिए सबसे उपयोगी साधन हो सकता है, एक व्यवस्थित, शांतिपूर्ण और रचनात्मक समाज के लिए प्राथमिक और अपरिहार्य शर्त है।"

संत पापा ने कहा, “प्रिय खिलाड़ियों, कलीसिया आपको एक सुंदर मिशन सौंपती है : अपनी सभी गतिविधियों में त्रिएक ईश्वर के प्रेम को प्रतिबिंबित करें, अपने स्वयं की भलाई के लिए और अपने भाइयों और बहनों के लिए। इस मिशन को उत्साह के साथ पूरा करें: खिलाड़ियों के रूप में, प्रशिक्षकों के रूप में, संघों और दलों के रूप में, और अपने परिवारों के भीतर। संत पापा फ्राँसिस को यह बताना पसंद था कि सुसमाचार कुँवारी मरियम को हमेशा सक्रिय, गतिशील, यहाँ तक कि “दौड़ते हुए” ( लूका 1:39), हमेशा तैयार, माताओं की तरह, अपने बच्चों की मदद करने के लिए ईश्वर के संकेत पर आगे बढ़ते हुए प्रस्तुत करता है।( विश्व युवा दिवस के स्वयंसेवकों को संबोधन, 6 अगस्त 2023)। आइए, हम उनसे हमारे प्रयास और उत्साह में हमारा साथ देने और इसे हमेशा सबसे बड़ी जीत की ओर ले जाने के लिए याचना करें: अनन्त जीवन का पुरस्कार के उस खेल के मैदान पर, जहाँ खेल कभी समाप्त नहीं होंगे और हमारा आनंद पूर्ण होगा (1 कुरिं 9:24-25; 2 तीमथी 4:7-8)।

                 

                       

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15 जून 2025, 15:34