संत पापा लियो-निराशा हमें रोगग्रस्त न करे
वाटिकन सिटी
प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा लियो ने कहा कि आइए हम चंगाई पर अपनी धर्मशिक्षा माला को जारी रखें। मैं विशेष रूप से आप सभी को उन परिस्थितियों के बारे में सोचने हेतु निमंत्रण देता हूँ जहाँ आप बाधित अनुभव करते और अपने को एक मरण की स्थिति में पाते हैं। कभी-कभी, वास्तव में, हमारे लिए आशा में बने रहना व्यर्थ प्रतीत होता है, हम अपने में हारे लगते और आगे संघर्ष जारी रखने की रुचि नहीं रखते हैं। सुसमाचारों में इस परिस्थिति को कोढ़ग्रस्त रोगी के रुप में वर्णित किया गया है। यही कारण है आज मैं एक कोढ़ी की चंगाई पर चिंतन करना चाहूँगा, जिसका जिक्र हम संत योहन के सुसमाचार पांचवें अध्याय में पाते हैं।
जलकुंड का चमत्कार
संत पापा लियो ने कहा कि येसु यहूदियों के त्योहार हेतु येरूसालेम जाते हैं। वे तुरंत ईशमंदिर में नहीं जाते हैं, वे फाटक के पास रुकते हैं, जहाँ शायद भेड़ों को बलि चढ़ाये जाने के पूर्व धोकर शुद्ध किया जाता था। इस द्वार के निकट बहुत से बीमार लोगों की भीड़ थी, भेड़ों के विपरीत उन्हें ईशमंदिर में प्रवेश करने से रोका जाता था क्योंकि वे अपने में अशुद्ध समझे जाते थे। अतः येसु स्वयं उनके पास उनके दुःख में निकट आते हैं। वे लोग उनसे एक चंगाई की आशा करते हैं जो उनके भाग्य को बदल दे, वास्तव में, फाटक की बगल में एक जलकुंड था जहाँ का जल चमत्कारिक समझा जाता था अर्थ जिसमें चंगाई की शक्ति थी। कुछ समय में वहाँ के जल में हलचल होती थी, उस समय के विश्वासानुसार उस स्थिति में जो कोई पहले पानी में डूबकी लगता तो वह चंगाई प्राप्त करता था।
करुणा का निवास
ऐसा परिस्थिति में हम “द्ररिदों के बीच” में एक युद्ध उत्पन्न होने को पाते हैं। हम उस परिवेश के दयनीय दृश्य पर विचार कर सकते हैं जहाँ वे बीमार लोग अपने को जलकुंड में प्रवेश करने हेतु घसीटते हैं। उस जलकुंड का नाम था बेथेसेदा जिसका अर्थ है “करूणा का निवास”। हम इसे कलीसिया की निशानी स्वरुप देख सकते हैं जहाँ बीमार और गरीब जमा होते और जहाँ ईश्वर उन्हें चंगाई और आशा प्रदान करने को आते हैं।
निराशा का प्रभाव
संत पापा लियो ने कहा कि येसु विशेष रुप से एक व्यक्ति जो अड़तीस सालों से कोढ़ग्रस्त था बातें करते हैं। लेकिन अब वह अपने में थका हुआ है क्योंकि वह जल में हलचल की स्थिति में अपने को वहाँ ले जाने हेतु असमर्थ है। वास्तव में, यह निराशा है जो हमें बहुत बार अपने में पंगु बना देता है। हम अपने में निराशा का अनुभव करते और उदासीनता का शिकार हो जाते हैं।
येसु उस कोढ़ग्रस्त व्यक्ति से एक सवाल करते हैं जो हमारे ले छिछला जान पड़ता है, “क्या तुम चंगा होना चाहते हो”ॽ इसके विपरीत, यह एक आवश्यक सवाल है क्योंकि जब कोई व्यक्ति इतने लम्बे वर्षों तक बाधित रहता तो ऐसी परिस्थिति में चंगाई की आशा भी धूमिल हो जाती है। कभी-कभी हम अपनी बीमार की स्थिति में ही रहने की चाह रखते हैं, हम दूसरों को अपनी देख-रेख करने हेतु विवश करते हैं। यह हमारे जीवन के लिए कभी-कभी एक बहाना बन जाती है जहाँ हमें क्या करना है उसके संबंध में कोई निर्णय नहीं लेते हैं। येसु उस व्यक्ति की सच्चाई और गहरी चाह की सुधि लेते हैं।
चंगाई हेतु ईश्वर की जरुरत
संत पापा ने कहा कि वह व्यक्ति येसु के सवाल का उत्तर देते हुए अपनी जीवन के वास्तविक विचारों को व्यक्त करता है। सर्वप्रथम वह कहता है कि उसका कोई भी नहीं है जो उसे जलकुंड में डूबकी लगाने हेतु ले चले। अतः इसमें उसकी कोई गलती नहीं, लेकिन यह दूसरों का दोष है जो उसकी चिंता नहीं करते हैं। यह मनोभाव हमारे लिए उत्तरदायित्व से अपने को दूर रखने का बहाना होता है। लेकिन क्या यह सचमुच में सही है कि उसका कोई था जो उसकी सहायता करेॽ यहाँ हम संत अगुस्टीन के आलोकित करने वाले उत्तर को पाते हैं-“उस सचमुच में, अपनी चंगाई हेतु एक व्यक्ति की जरुरत थी, लेकिन वह “व्यक्ति” अपने में ईश्वर भी हैं...वे आये, तब, एक व्यक्ति जिसकी आवश्यकता थीः चंगाई में देर क्योंॽ”
कोढ़ग्रस्त व्यक्ति ने आगे कहा कि जब वह अपने को जलकुंड में डूबोने की कोशिश करता, हमेशा कोई उसके पहले आ जाता है। वह व्यक्ति अपने में जीवन के अद्भुत विचार को व्यक्त करता है। हम सोचते हैं कि हमारे जीवन में चीजें नहीं होती क्योंकि हम अपने में भाग्यशाली नहीं हैं क्योंकि भाग्य हमारे विरूध जाती है। वह व्यक्ति अपने में निराश है। वह अपने जीवन में संघर्ष से हारा अनुभव करता है।
जीवन में उत्तरदायित्व लें
संत पापा लियो ने कहा, “येसु उसे अपने जीवन की पुनः खोज करने में मदद करते हैं जो उसे हाथों में है।” वह उसे उठने के लिए निमंत्रण देते हैं, वे उसे अपने जीवन की पुरानी स्थिति से उठने और अपनी चारपाई उठाने को कहते हैं। उस चारपाई को छोड़ना या फेंकना नहीं था, यह उसके अतीत की बीमारी को व्यक्त करती है, उसके इतिहास को बतलाती है। उस समय तक उसके अतीत ने उसे बंधक बनाये रखा था, वह अपने में मृत व्यक्ति की तरह लेटे रहने को वाध्य था। उसके चलने की जरुरत थी, उसे उत्तरदायित्व लेने की आवश्यकता थी कि वह किस मार्ग का चुनाव करे। और इसके लिए येसु का धन्यवाद करते हैं।
हम कहीं अटके तो नहींॽ
प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा कि हम ईश्वर से कृपा की मांग करें जिससे हम इस बात को समझ सकें कि हम अपने जीवन में कहाँ अटक गये हैं। हम अपनी चंगाई की चाह हेतु पुकारें। आइए हम उनके लिए प्रार्थना करें जो अपने जीवन में कोढ़ग्रस्त-सा अनुभव करते हैं, जिन्हें कोई समाधान नहीं दिखता है। हम येसु के हृदय में लौट आने हेतु विनय करें जो सच्चे अर्थ में करूणा का निवास है।
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