लासालियन ब्रदरों से पोप : पवित्रता के आनंदमय और फलदायी पथ की प्रेरणा बनें
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 15 मई 2025 (रेई) : "मैं आशा करता हूँ कि लासालियन धर्मसंघी समर्पण के लिए बुलाहट बढ़ेगी, उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा और बढ़ावा दिया जाएगा - आपके स्कूलों में और उसके बाहर - और अन्य सभी रचनात्मक घटकों के साथ तालमेल में, वे उन युवाओं के बीच पवित्रता के आनंदमय और फलदायी पथ की प्रेरित बनने में योगदान देंगे जो उनमें भाग लेते हैं।"
पोप लियो 14वें ने गुरुवार को वाटिकन में दे ला साले ब्रदरों (ख्रीस्तीय स्कूलों के भाइयों का संस्थान) का स्वागत करते हुए उन्हें यह प्रोत्साहन दिया।
लासालियन ब्रदरों का नाम उनके संस्थापक, संत जॉन बैपटिस्ट दे ला साले के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने युवाओं, विशेष रूप से गरीबों को मानवीय और ख्रीस्तीय शिक्षा प्रदान करने के लिए मिशन की स्थापना की थी। ब्रदरगण, शिक्षा के लिए विशेष रूप से समर्पित, अपने वैश्विक शिक्षा प्रयासों के लिए जाने जाते हैं।
पोप लियो 14वें ने अपने भाषण में कहा, "तीन शताब्दियों के बाद, यह देखना अद्भुत है कि किस प्रकार आपकी उपस्थिति एक समृद्ध और दूरगामी शैक्षिक वास्तविकता की ताजगी को लेकर चल रही है, जिसके माध्यम से, आज भी और विश्व के विभिन्न भागों में, आप उत्साह, निष्ठा और त्याग की भावना के साथ युवाओं के निर्माण के लिए स्वयं को समर्पित करते हैं।"
इस बात को ध्यान में रखते हुए, संत पिता ने ब्रादरों के इतिहास के दो पहलुओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया, "वर्तमान समय पर उनका ध्यान" और "समुदाय में शिक्षण की प्रेरिताई एवं मिशनरी आयाम।"
संस्थापक ने काम शुरू की और आगे बढ़े
पोप ने गौर किया कि उनके संस्थापक ने कैसे चुनौतियों को ईश्वर के संकेत के रूप में स्वीकार किया और काम करना शुरू कर दिया।
पोप लियो ने कहा कि अपने स्वयं के इरादों और अपेक्षाओं से परे, दे ला साले ने "शिक्षा की एक नई प्रणाली को जीवन दिया।"
जब समस्याएँ उत्पन्न हुईं, तो निराश होने के बजाय, संत ने उन्हें रचनात्मक प्रतिक्रियाओं की तलाश करने और नए एवं अक्सर अनदेखे रास्तों पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
संत पापा ने कहा कि यह, "हमारे लिए भी" उपयोगी प्रश्न उठाता है, जैसे, "युवाओं की दुनिया में आज सबसे जरूरी चुनौतियाँ क्या हैं? किन मूल्यों को बढ़ावा देने की जरूरत है? हम किन संसाधनों पर भरोसा कर सकते हैं?"
गंभीर चुनौतियों को बदलना
कई विशेष कठिनाइयों पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने कहा, "व्यापक संबंधपरक प्रतिमान के कारण होनेवाले अलगाव के बारे में सोचें, जो सतहीपन, व्यक्तिवाद और भावनात्मक अस्थिरता से चिह्नित होते हैं; सापेक्षवाद द्वारा कमजोर किए गए विचार पद्धति के प्रसार के बारे में; जीवन शैली और लय के प्रभुत्व के बारे में, जिसमें सुनने, चिंतन और संवाद करने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है - स्कूल में, परिवार में और कभी-कभी साथियों के बीच भी - जिसके परिणामस्वरूप अकेलापन होता है।"
संत पापा ने कहा कि ये वास्तविकताएँ डरावनी हो सकती हैं लेकिन संत जॉन बपतिस्त दे ला साले के समान हम भी बदलाव लायें ... "नए रास्ते तलाशने, नए उपकरण विकसित करने, और नई भाषाओं को अपनाने के लिए, जिसके माध्यम से छात्रों के दिलों को छूना जारी रखा जा सके, उन्हें साहस के साथ हर बाधा का सामना करने में मदद और प्रोत्साहन दिया जा सके, ताकि वे ईश्वर की योजना के अनुसार जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकें।"
इस अर्थ में, पोप ने इस बात की सराहना की कि वे अपने स्कूलों में शिक्षकों के निर्माण और शैक्षिक समुदायों के निर्माण पर कितना ध्यान देते हैं।
शिक्षा देने के कार्य को एक प्रेरिताई के रूप में जीना
पोप लियो 14वें ने लासालियन के एक अन्य पहलू पर भी प्रकाश डाला, अर्थात् "शिक्षा देने के कार्य को मिशन और प्रेरिताई के रूप में जीना," "कलीसिया में समर्पण स्वरूप।"
उन्होंने जोर देकर कहा, "संत जॉन बपटिस्ट दे ला साले ख्रीस्तीय स्कूलों के शिक्षकों में पुरोहित नहीं चाहते थे, बल्कि केवल "ब्रदर" चाहते थे, ताकि आपके सभी प्रयास, ईश्वर की मदद से, आपके छात्रों की शिक्षा की ओर निर्देशित हों। उन्हें यह कहना बहुत पसंद था: 'आपकी वेदी ही कक्षा है।'"
पोप लियो ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसा करने में वे "अपने समय की कलीसिया में एक ऐसी सच्चाई को बढ़ावा दे रहे थे जो तब तक अज्ञात थी : शिक्षा के माध्यम से सुसमाचार प्रचार और सुसमाचार प्रचार के माध्यम से शिक्षा देने के सिद्धांत के अनुसार, लोकधर्मी और प्रचारकों की समुदाय के भीतर सच्ची प्रेरिताई।"
पोप ने स्पष्ट किया, "विद्यालय का करिश्मा, जिसे आप शिक्षण की अपनी चौथी प्रतिज्ञा के साथ अपनाते हैं, समाज की सेवा और उदारता का एक बहुमूल्य कार्य होने के अलावा, आज भी उस पुरोहिताई, भविष्यवक्ता और राजत्व के काम की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति है, जिसे हम सभी ने बपतिस्मा में प्राप्त किया है, जैसा कि द्वितीय वाटिकन महासभा के दस्तावेजों द्वारा जोर दिया गया है।"
पोप ने इस बात की प्रशंसा की कि किस तरह धर्मसंघी अपने शैक्षणिक संस्थानों में "अपने समर्पण के माध्यम से एक नबी के रूप में बपतिस्मा देनेवाली सेवा को दृश्यमान बनाते हैं, जो सभी को उनकी स्थिति और भूमिका के अनुसार, बिना किसी भेदभाव के, जीवित सदस्यों के रूप में, कलीसिया के विकास और इसके निरंतर पवित्रीकरण में योगदान करने के लिए प्रेरित करती है।"
पोप लियो 14वें ने अंत में ख्रीस्तीय स्कूलों के ब्रदरों को उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों के लिए धन्यवाद दिया। "मैं आपके लिए प्रार्थना करता हूँ और पूरे लासालियन परिवार को खुशी-खुशी अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान करता हूँ।"
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here