जो "अंतिम" हैं, वे अंतिम विदाई देंगे
वाटिकन सिटी
वे जो “अंतिम” हैं, वे संत पापा फ्रांसिस को मरिया मेजर के महागिरजाघर में, माता मरियम, सालुस रोमानी की प्रतिमा के आंचल तले अंतिम विदाई देंगे।
रोम के धर्माध्यक्ष की यात्रा का समापन जो इस पृथ्वी पर अंतिम चरण पर आ गई है, जो "पृथ्वी के अंतिम छोर" से आया थे, शक्तिशाली लोगों द्वारा नहीं, बल्कि उन गरीबों, प्रवासियों, बेघरों और हाशिए पर पड़े लोगों द्वारा पूरी की जायेगी, जिन्हें हम संक्षेप में, धर्मग्रंथ की हर पृष्ठ के केंद्र में पाते हैं, जिन्हें संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा का केंद्र बिन्दु बनाया।
पास्का सोमवार, को,कार्डिनल कैमरलेंगो केविन जोसेफ फैरेल ने संत फ्रांसिस की अप्रत्याशित मृत्यु की घोषणा करते हुए उनकी शिक्षा के इस आधार को रेखांकित किया था: “उन्होंने हमें सुसमाचार के मूल्यों को निष्ठा, साहस और सार्वभौमिक प्रेम के साथ जीना सिखाया, विशेष रूप से सबसे गरीब और सबसे हाशिए पर पड़े लोगों के पक्ष में।"
संत पापा ने 2013 में अपने परमाध्यक्षीय काल की शुरूआत करते हुए कहा था, “हम गरीबों को और एक गरीब कलीसिया को कैसे देखना चाहेंगे”, “कलीसिया के लिए, गरीबों हेतु विकल्प मुख्य रूप से सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय, राजनीतिक या दार्शनिक के बजाय एक धार्मिक श्रेणी है। ईश्वर गरीबों को 'अपनी पहली दया' दिखाते हैं। इस दिव्य विकल्प का प्रभाव सभी ख्रीस्तीयों की आस्थामय जीवन पर पड़ता है, क्योंकि हम अपने में “यह मनोभाव... जो येसु मसीह का था” अपने में धारण करने को बुलाये जाते हैं, उन्होंने विश्व प्रेरितिक पत्र इवांजेली गौदियुम में इसकी चर्चा की, एक ऐसा दस्तावेज जिसे हम अभी तक पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं और जो संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी के रूप में हमारे लिए उनकी प्रेरिताई को चिह्नित करता है।
संत पापा फ्रांसिस के शब्दों को हम हमेशा ठोस कार्य और विकल्प जुड़ा पाते हैं। असीसी के संत का नाम चुनने वाले पहले संत पापा ने अपने पूर्ववर्तियों की शिक्षाओं के बाद ऐसा किया, जैसे कि संत पापा योहन पौलुस 13वें, जिन्होंने द्वितीय वाटिकन विश्वव्यापी महासभा के उद्घाटन से एक महीने पहले कहा था, "कलीसिया खुद को वैसा ही प्रस्तुत करती है जैसा वह है और जैसा वह होना चाहती है, सभों की कलीसिया, और विशेष रूप से गरीबों का कलीसिया।”
प्रथम दक्षिण अमेरिकी संत पापा के लिए, उनके शब्दों और कार्यों की महानता का स्रोत सुसमाचार और शुरुआती कलीसियाई आचार्यों की शिक्षाएँ थीं - जैसे कि संत एम्ब्रोस, जिन्होंने कहा था, “आप अपनी संपत्ति से गरीब को उपहार नहीं देते हैं; आप उसे केवल वही देते हैं जो उसका है। क्योंकि यह वह है जो सभी के उपयोग के लिए आमतौर पर दिया जाता है, जिसे आप अपने साथ मिलाते हैं। पृथ्वी सभी को दी गयी है, न कि केवल अमीरों को।”
इन शब्दों के साथ, संत पापा, संत पौल 6वें अपने विश्वपत्र पोपुलोरम प्रोग्रेसियो में इस बात की पुष्टि करते हैं, कि निजी संपत्ति किसी के लिए बिना शर्त और पूर्ण अधिकार का गठन नहीं करती है, और किसी को भी स्वयं के विशेष उपयोग के लिए आरक्षित करने का अधिकार नहीं है, जब दूसरों के पास जरूरत के चीजों की कमी है।
उनकी शिक्षाओं में हम संत योहन क्रिससोस्तम की याद करते हैं, जिन्होंने एक प्रसिद्ध धर्मोपदेश में कहा था, "क्या आप मसीह के शरीर का सम्मान करना चाहते हैं? इसे अपने सदस्यों में तिरस्कार की वस्तु न बनने दें, अर्थात गरीब अपने को कपड़ों से ढ़कने हेतु वंचित न रहें। आप कलीसिया में रेशमी कपड़ों से मसीह का सम्मान न करें, जबकि बाहर आप उनकी उपेक्षा करते हैं जहाँ वे ठंड और नग्नता से पीड़ित होते हैं। जिन्होंने कहा: यह मेरा शरीर है, उन्होंने यह भी कहा: “तुमने मुझे भूखा देखा और मुझे खाना नहीं खिलाया”।
वैचारिक व्याख्याओं से दूर, कलीसिया के पास बचाव के लिए कोई राजनीतिक हित नहीं है, जब वह संत पापा फ्रांसिस द्वारा कहे गये “उदासीनता के वैश्वीकरण” पर काबू पाने का आह्वान करती है। केवल सुसमाचार के शब्दों से प्रेरित होकर, कलीसिया के आचार्यों की परंपरा द्वारा समर्थित, दिवंगत संत पापा ने हमें उन लोगों की ओर अपनी निगाहें मोड़ने के लिए आमंत्रित करते हैं जो “अंतिम” हैं, जो येसु के पक्षधर हैं - वे “अंतिम लोग” जो शनिवार को उनकी यात्रा के अंतिम चरण का आलिंगन अपने में करेंगे।
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here