संत पापाः हम दूसरों के लिए सिरिनी सिमोन बनें
वाटिकन सिटी
अर्जेटीनाई कार्डिनल लियोनार्डो सैंड्री ने खजूर रविवार का समारोही मिस्सा अर्पित करते हुए संत पापा फ्रांसिस के प्रवचन को घोषित किया।
“धन्य है वह राजा जो ईश्वर के नाम पर आता है।“ भीड़ यह घोषित करते हुए येरुसालेम में प्रवेश करती और येसु का स्वागत करती है। मसीह पवित्र शहर के प्रवेश द्वार से होकर प्रवेश करते हैं, जो उनके स्वागत हेतु खुला था, लेकिन कुछ दिन के बाद, वे उसी द्वार से बाहर निकलेंगे, शापित, निंदित, क्रूस को ढ़ोते हुए।
आज हमने भी येसु का अनुसरण किया है, पहले एक समारोही जुलूस में और उसके बाद दुःख और उदासी में, जैसे हम इस पवित्र सप्ताह में प्रवेश करते हुए अपने को उनके दुःखभोग, मृत्यु और पुनरूत्थान की यादगारी मनाने हेतु तैयार करते हैं।
सिरिनी सिमोन की व्यथा
सिपाहियों ने चेहरे और भीड़ में नारियों के आंसू भरे चेहरे को देखा, यहाँ हमारा ध्यान अनायास ही सुसमाचार में उस अज्ञात व्यक्ति-सिरिनी के सिमोन की ओर खींच आता है जो अचानक प्रकट होते हैं। वह व्यक्ति सिपाहियों के द्वारा पकड़ा जाता है जो बाद में उसके कंधे पर क्रूस लाद देते हैं, जो उसे येसु के पीछे क्रूस ढ़ोने को कहते हैं। उस समय वह देहात की ओर से आ रहा होता है। वह वहां से गुजर रहा था, तभी उसने अप्रत्याशित ढ़ंग से खुद को एक नाटक में, अपने को फंसता पाता जहाँ वह अपने को दुःख से अभिभूत पाता है, जैसे कि उसके कंधों पर लकड़ी का भारी क्रूस रखा जाता है।
अपनी यात्रा कलवारी की ओर करते हुए आइए हम कुछ क्षण सिमोन के कार्य पर चिंतन करें, उसके हृदय की ओर देखें, और येसु की बगल में उनके कदमों का अनुसरण करें।
येसु का क्रूस सिमोन का क्रूस
सर्वप्रथम सिमोन के कार्य अपने में अज्ञात हैं। दूसरी ओर हम उन्हें जबरदस्ती से क्रूस ढ़ोने के लिए बाध्य पाते हैं। उन्होंने विश्वास के साथ येसु की मदद नहीं की, लेकिन दबाव में ऐसा किया। वहीं, वे येसु के दुःखभोग में व्यक्तिगत रुप से शामिल होते हैं। येसु का क्रूस सिमोन का क्रूस बनता है। वह सिमोन नहीं है जो पेत्रुस कहलाता है जिसने अपने स्वामी को हर परिस्थिति में अनुसरण करने की प्रतिज्ञा की थी। वह सिमोन उन्हें धोखा देकर भाग गया था जो भी कि उसने यह कहा था, “प्रभु, मैं आप के संग जेल जाने और मरने के लिए भी तैयार हूँ।” वह जो अभी येसु का अनुसरण करता है वह शिष्य नहीं है, लेकिन वह सिरिनी का निवासी है। यद्यपि स्वामी ने अपनी शिक्षा में स्पष्ट रुप से कहा, “यदि कोई मेरा अनुसरण करना चाहे तो वह आत्म त्याग करे और अपना क्रूस उठाकर मेरे पीछे हो ले। गलीलिया के सिमोन ने कहा लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। सिरिनी के सिमोन ने कुछ नहीं कहा लेकिन वह कार्य करता है। येसु और उसके बीच कोई वार्ता नहीं होती है, कोई एक शब्द भी नहीं कहता जाता है। येसु और उसके बीच हम लकड़ी के क्रूस को पाते हैं।
येसु का क्रूस प्रेम की निशानी
यदि हम सिरिनी सिमोन के बारे में जानना चाहें कि क्या उसने येसु के दुःखभोग में उनकी सहायता की या उनसे घृणा की, क्या उसने सही अर्थ में येसु का क्रूस ढ़ोया या सिर्फ साधारण मदद मात्र की, तो हमें उसके हृदय के अंदर देखने की जरूरत है। जहाँ हम ईश्वर के हृदय को खुला पाते जो भाले से छेदित है जहाँ से हमारे लिए करूणा प्रकट होती है, वहीं हम मनुष्य के हृदय को अपने में बंद पाते हैं। हम यह नहीं जानते कि सिमोन के हृदय में क्या बीती होगी। हम अपने को उसके स्थान में रख कर देखें- क्या हम अपने में क्रोध या दया, करूणा या प्रताड़ित किये जाने का अनुभव करते हैं। जब हम येसु के लिए सिमोन के कार्य के बारे में सोचते हैं तो हमें येसु के बारे में भी सोचना चाहिए कि उन्होंने उसके लिए क्या किया- उन्होंने हमारे लिए क्या किया है, हममें से प्रत्येक जन के लिए- उन्होंने दुनिया को मुक्ति दिलाई है। लकड़ी का क्रूस जिसे सिरिनी सिमोन ने ढ़ोया वह येसु का क्रूस था जिसमें उन्होंने स्वयं दुनिया के पापों को ढ़ोया। उन्होंने प्रेम के खातिर ऐसा किया, अपने पिता के प्रति आज्ञाकारिता में, उन्होंने हमारे लिए और हमारे संग दुःख उठाया। इस प्रकार अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक रूप में सिमोन मुक्ति इतिहास का अंग बनता है, जहाँ कोई अपरिचित और परदेशी नहीं है।
सिरिनी सिमोन का अनुसरण करें
संत पापा ने कहा कि आइए हम सिमोन के पदचिन्हों का अनुसरण करें, क्योंकि वे हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि वे हर किसी के संग, हर परिस्थिति में मिलने आते हैं। जब हम पुरुषों और महिलाओं की बड़ी भीड़ को देखते हैं जिन्हें घृणा और हिंसा कलवारी के मार्ग पर चलने के लिए मजबूर करती है, तो हमें याद रखना चाहिए कि ईश्वर ने इस मार्ग को मुक्ति का स्थल बनाया है, क्योंकि वे स्वयं इस पर चले, हमारे लिए अपना जीवन दे दिया। आज भी कितनी ही सिरिनी सिमोन हैं जो अपने कंधों पर ख्रीस्त के क्रूस को ढ़ोते हैं। क्या हम उन्हें पहचान सकते हैं? क्या हम उनके चेहरे में ईश्वर को देखते हैं, जो युद्ध के बोझ और बहुत सारी चीजों से वंचित हैं। बुराई के भयावह, अन्याय का सामना करते हुए, हम कभी भी मसीह के क्रूस को व्यर्थ नहीं ढोते; इसके विपरीत, यह हमारे लिए उसके मुक्तिदायी प्रेम में सहभागी होने का सबसे ठोस तरीका है।
क्रूस ढ़ोना की आवश्यकता
जब भी हम उन लोगों की ओर अपना हाथ बढ़ाते हैं जो अपने में आगे नहीं बढ़ सकते, उन्हें उठाते जो गिर हैं, निराश लोगों को गले लगाते हैं, तो येसु का दुःखभोग करुणा में बदल जाता है। प्रिय भाइयो एवं बहनों, इस महान करूणा के चमत्कार को अनुभव करने के लिए हमें यह विचार करने की जरुरत है कि इस पुण्य सप्ताह में हमें कैसे येसु के क्रूस को ढ़ोने की जरुरत है, यदि अपने कंधों पर नहीं तो अपने हृदय में। और न केवल हमारे क्रूस को बल्कि उन क्रूसों को भी जो हमारे अगल-बगल दुःख से पीड़ित हैं- उन अनजान लोगों के जिसे उन्होंने हमारे लिए दिया है। आइये हम प्रभु के पास्का रहस्य के लिए तैयारी करते हुए एक दूसरे के लिए सिरिनी सिमोन बनें।
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