पोप फ्राँसिस की अन्य धर्मानुयायियों के साथ मित्रता ने शांति के मार्ग को बढ़ावा दिया
देबोरा कस्तेलानो दुबोव-वाटिकन सिटी
अरब प्रायद्वीप और इराक में पोप की पहली यात्रा; अर्जेंटीना में रब्बी अब्राहम स्कोर्का और अल-अजहर के ग्रैंड इमाम अहमद अल-तैयब के साथ उनकी गहरी मित्रता; सभागृहों में बार-बार जाना; शोआ और यहूदी-विरोध की निंदा; शांति, सद्भाव और धार्मिक उग्रवाद का विरोध करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करनेवाले अंतर-धार्मिक नेताओं के साथ संयुक्त घोषणाएँ।
ये कुछ उदाहरण हैं जो पोप फ्राँसिस के परमाध्यक्षीय काल के दौरान और उससे भी कई दशक पहले अंतरधार्मिक मित्रता और संवाद के अविस्मरणीय क्षणों के बारे में सोचते समय याद आते हैं।
फरवरी 2019 में संयुक्त अरब अमीरात की अपनी यात्रा के दौरान, जो अरब प्रायद्वीप में पोप की पहली यात्रा थी, पोप फ्राँसिस ने कलीसिया की एक ऐसी छवि पेश की जो अन्य धर्मों के साथ सेतु बनाने और संबंधों को गहरा करने की कोशिश कर रही है।
उल्लेखनीय रूप से, 'विश्व शांति और सहअस्तित्व के लिए मानव बंधुत्व पर दस्तावेज', जिसे अबू धाबी घोषणा के रूप में भी जाना जाता है, पर पोप फ्राँसिस और सुन्नी मुसलमानों के बीच सर्वोच्च अधिकारी, अल-अजहर के ग्रैंड इमाम अहमद अल-तैयब ने उस अंतर-धार्मिक मुलाकात में हस्ताक्षर किए थे, जिससे काथलिक और मुसलमानों के बीच संबंधों के एक नए युग की शुरुआत हुई।
इसने घोषणापत्र को “हर ईमानदार विवेकशील व्यक्ति के लिए एक अपील के रूप में प्रस्तुत किया जो निंदनीय हिंसा और अंध उग्रवाद को अस्वीकार करता है; उन लोगों के लिए एक अपील है जो सहिष्णुता और भाईचारे के मूल्यों को संजोते हैं जिन्हें धर्मों द्वारा बढ़ावा दिया जाता और प्रोत्साहित किया जाता है।”
वहाँ से, पोप ने भाईचारे के विषय पर केंद्रित एक विश्वपत्र, फ्रातेल्ली तूत्ती लिखी, जिसे शेख अल-तैयब को समर्पित किया।
दस्तावेज के आरंभ में, संत पापा ने याद किया कि पर्यावरण पर अपने 2015 के विश्वपत्र ‘लौदातो सी’ की तैयारी में, “मेरे प्रेरणा स्रोत मेरे भाई बार्थोलोम्यू, ऑर्थोडोक्स प्राधिधर्माध्यक्ष थे, जिन्होंने सृष्टि की देखभाल करने की हमारी आवश्यकता के बारे में जोरदार ढंग से बात की थी।”
उन्होंने आगे कहा, "इस मामले में, मुझे ग्रैंड इमाम अहमद अल-तैयब से विशेष रूप से प्रोत्साहन मिला है, जिनसे मैं अबू धाबी में मिला था, जहाँ हमने घोषणा की थी कि 'ईश्वर ने सभी मनुष्यों को अधिकारों, कर्तव्यों और सम्मान में समान बनाया है, और उन्हें भाई-बहनों के रूप में एक साथ रहने के लिए बुलाया है।'"
यहाँ पोप ने इस बात पर प्रकाश डाला कि "यह मात्र कूटनीतिक संकेत नहीं, बल्कि संवाद और आम प्रतिबद्धता से पैदा हुआ चिंतन था।"
इसके अलावा, पोप फ्राँसिस सुरक्षा चुनौतियों और कोविड-19 महामारी के बावजूद इराक की यात्रा पूरी करनेवाले पहले पोप बन जाएंगे, जिसके दौरान उन्होंने इराक के शिया मुसलमानों के बीच सर्वोच्च अधिकारी, ग्रैंड अयातुल्ला अली अल-सिस्तानी से भी मुलाकात की।
वह अवसर पोप पर एक अमिट छाप छोड़ा, जो बार-बार अन्य धर्मों के अपने भाइयों और बहनों को "धर्मों की प्रेरणा के अनुसार" "सर्वोच्च नैतिक गुणों का प्रसार करने" के लिए आमंत्रित करते रहे।
उन्होंने अपनी प्रार्थनाओं को भी दोहराया कि ईसाई और मुसलमान हमेशा "सत्य, प्रेम और आशा के साक्षी बनें, एक ऐसी दुनिया में जो कई संघर्षों से त्रस्त है और इसलिए करुणा और चंगाई की आवश्यकता है।"
अपने पूरे कार्यकाल के दौरान, पोप फ्राँसिस ने व्यक्तिगत रूप से कई अंतर-धार्मिक शिखर सम्मेलनों और अंतर-धार्मिक मुलाकातों में भाग लिया, तथा लगभग हर प्रेरितिक यात्रा पर अन्य धर्मों के नेताओं से मिलने के लिए समय निकाला।
हमेशा सच्ची मित्रता, सम्मान और दुनियाभर में शांति को बढ़ावा देने से प्रेरित होकर, पोप ने 2022 में अस्ताना में आयोजित विश्व और पारंपरिक धर्मों के नेताओं के सातवें कांग्रेस के लिए कजाकिस्तान की यात्रा की, जिसका उद्देश्य अंतर-धार्मिक संवाद था, लेकिन विशेष रूप से रूस के यूक्रेन पर बड़े पैमाने पर आक्रमण के महीनों बाद शांति प्रयासों को बढ़ावा देने की इच्छा थी।
कुछ महीनों बाद पोप की बहरीन यात्रा के दौरान, उन्होंने और अन्य धर्मगुरूओं ने धर्मों के बीच शांति और सद्भाव के लिए अपनी अपील को फिर से दोहराया, खासकर, जब उन्होंने बहरीन घोषणापत्र पर अपने हस्ताक्षर किए, जिससे अंतरधार्मिक संवाद और शांति को बढ़ावा मिला।
कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों और अपने सपने के साकार होने के बारे में कुछ अनिश्चितताओं के बाद भी, पोप फ्राँसिस सितंबर 2024 में इंडोनेशिया की यात्रा पर गए, जो दुनिया भर में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादीवाला देश है, जिसकी आबादी 240 मिलियन से अधिक है। यह पापुआ न्यू गिनी, तिमोर-लेस्ते और सिंगापुर की यात्रा जारी रखने से पहले उनकी चार देशों की प्रेरितिक यात्रा का पहला चरण रहा।
पोप फ्राँसिस कई वर्षों से इस मुस्लिम बहुल राष्ट्र का दौरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित थे, जिसे अपनी विविधता और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर गर्व है, जैसा कि इसके संस्थापक "पंचशीला" सिद्धांतों की डिक्री है।
दुनिया की सबसे बड़ी जकार्ता की इस्तिकलाल मस्जिद में, पोप और ग्रैंड इमाम नसरुद्दीन उमर ने मानवता के लिए धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने पर इस्तिकलाल 2024 की संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किए, जिसमें धार्मिक नेताओं के बीच दो "गंभीर संकटों" अर्थात् अमानवीयकरण और जलवायु परिवर्तन पर प्रतिक्रिया करने के लिए सहयोग का आह्वान किया गया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि "दुनिया स्पष्ट रूप से उनका सामना कर रही है।"
निश्चित रूप से, अन्य धर्मों के साथ संत पापा के सार्थक क्षण हमारे दिमाग में बने हुए हैं। बौद्धों के साथ पोप की मुलाकातों की मार्मिक तस्वीरें कैद हैं, खास तौर पर थाईलैंड, श्रीलंका और मंगोलिया की उनकी यात्राओं के दौरान, जो ऐतिहासिक रूप से बौद्ध राष्ट्र रहा है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि यहूदी भाइयों और बहनों के साथ उनकी निकटता थी, जिसका उदाहरण कई यहूदी दोस्तों के साथ उनकी पुरानी दोस्ती है, जो कम से कम तब से है जब वे बोयनोस आयरेस के महाधर्माध्यक्ष थे।
संत पापा ने 2023 में बोयनोस आयरेस में अपने करीबी मित्र लैटिन अमेरिकी रब्बी सेमिनरी के सेवानिवृत रब्बी अब्राहम स्कोर्का को लिखा, "मैंने आपकी मित्रता और ज्ञान के उपहार का अनुभव किया है, जिसके लिए मैं प्रभु को धन्यवाद देता हूँ।"
वे दोनों मित्र बोयनोस आयरेस में एक साथ रेडियो शो होस्ट करते थे और साथ में एक किताब भी लिखी थी, जिसका नाम था "ऑन हेवन एंड अर्थ।"
पोप फ्राँसिस रोम, न्यूयॉर्क और अन्य जगहों के सभागृहों में गये और अक्सर अपने यहूदी भाइयों और बहनों के प्रति अपनी निकटता व्यक्त की। यहूदी-विरोधी भावना की भी वे अक्सर निंदा करते थे। उन्होंने अपने पूर्वाधिकारियों के पदचिन्हों पर चलते हुए यहूदी लोगों द्वारा झेली गई भयावहता को पहचाना और शोआ की निंदा की।
वर्ष 2016 में विश्व युवा दिवस के अवसर पर पोप फ्रांसिस की पोलैंड यात्रा ने उन्हें ऑशविट्ज़ मृत्यु शिविर में उन सभी निर्दोष लोगों के लिए मौन प्रार्थना करने का अवसर प्रदान किया, जो वहाँ मारे गए थे।
वर्ष 2014 में पवित्र भूमि की अपनी यात्रा के दौरान, संत पापा ने इस्राएल के दो मुख्य रब्बियों से मुलाकात की, येरुशलम में याद वाशेम स्मारक का दौरा किया, तथा येरुशलम के ग्रैंड मुफ़्ती से भी मुलाकात की।
7 अक्टूबर 2023 की घटनाओं के बाद, पवित्र पिता ने पवित्र भूमि में शांति के लिए धर्मों के नेताओं के साथ काम करने का दृढ़ निश्चय किया, यह एक ऐसी आकांक्षा थी जो उनके पोप बनने के बाद से ही उनके दिल में थी।
हालाँकि पोप की अन्य धर्मों के लोगों के साथ दोस्ती ने रातों-रात पहाड़ नहीं हिलाए, लेकिन वे अपने दिल की गहराई से जानते थे कि भाई-बहनों के रूप में एक साथ प्रार्थना करने से शांति और भलाई के बीज बोए जा सकते हैं, क्योंकि "ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।"
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