संत पापाः येसु हमें खोजने आते हैं
वाटकिन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला के शुरू में सभों का अभिवादन करते हुए कहा कि सुसमाचार में हम येसु का कुछ लोगों से मिलन पर अपनी चिंतन जारी रखते हैं। इस बार हम जयेकुस के व्यक्तित्व पर चिंतन करेंगे जिसे मैं विशेष रुप से अपने हृदय के करीब पाता हूँ, क्योंकि वे मेरी आध्यात्मिक जीवन यात्रा में एक विशेष स्थान रखते हैं। संत लूका के सुसमाचार में जकेयुस को हम एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत पाते हैं जो अपने में एक तरह से खोया हुआ दिखाई देता है। शायद कभी-कभी हम भी अपने जीवन में ऐसा ही- आशाहीन अनुभव करते हैं। हमें कोई आशा नहीं दिखाई पड़ती है। जकेयुस को इस बात का पता चलता है कि येसु उसे खोज रहे होते हैं।
येसु हमारे जीवन में आते हैं
येसु, वास्तव में, जेरीखो के लिए निकल पड़ते हैं, उस शहर की ओर जो समुद्र तल से नीचे था, जिसे नरक स्वरुप देखा जाता था, वे वहाँ जाने की चाह रखते हैं जिससे वे उन्हें खोज सकें जो अपने में खोये हुए होने का अनुभव करते हैं। और वास्तव में, पुनर्जीवित येसु आज की विकट परिस्थिति में, युद्द के स्थानों में, निर्दोषों के दुःखों, माताओं के दिलों में जो अपनी संतानों को मरता हुआ देखती हैं और गरीबों की भूख में भी निरंतर उनके पास नीचे उतरते हैं।
जकेयुस एक निश्चित अर्थ में खोया हुआ था, शायद उसने कुछ गलत चुनाव किया था या शायद जीवन ने उसे उन परिस्थितियों में ला छोड़ा था जहाँ से वह निकलने को संघर्ष करता है। संत लूकस इस व्यक्ति की विशेषताओं पर जोर देते हैं- वह केवल नाकेदार नहीं था अर्थात एक व्यक्ति जो अपने ही लोगों से रोमी आक्रमणकारियों के लिए कर उगाही करता था, बल्कि वह उन कर वसूलने वालों का प्रधान भी है, मानो यह उसके पापों को दूगुणा कर देता था।
इसके उपरांत संत लूकस हमारे लिए इस बात का जिक्र करते हैं कि वह अपने में एक धनी व्यक्ति था, इसका तत्पर्य यह था कि उसने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए ऐसा किया था। इन सारी चीजों का परिणाम यह था कि वह सभों से अलग कर दिये जाने का अनुभव करता, हर कोई उससे घृणा करता था।
जकेयुस की चाह
संत पापा ने कहा कि जब उस यह पता चलता है कि येसु उसके शहर में आ रहे हैं, उसे येसु को देखने की इच्छा होती है। उसे येसु से मिलने की कोई हिम्मत नहीं थी वह तो उन्हें केवल दूर से देखने की चाह रखता था। हमारी इच्छाओं को बाधाओं का सामना करना होता है और वे स्वतः ही पूरी नहीं होती हैं। जकेयुस अपने में नाटा था। यह हमारे जीवन की सच्चाई है, कि हम अपनी कमजोरियों में होते हैं जिनका हमें स्वयं सामना करने की जरुरत है। इसके साथ ही दूसरे हैं जो कभी-कभी हमारी सहायता नहीं करते हैं- भीड़ जकेयुस को देखने में बाधा बनी है। शायद हम उनमें एक तरह से प्रतिकार की भावना को पाते हैं।
संत पापा ने कहा कि लेकिन जब हमारी एक इच्छा तीव्र होती है तो हम निराश नहीं होते हैं। हम अपने लिए एक विकल्प को पाते हैं। यद्यपि यह हमसे शर्म के बदल एक साहस की मांग करती है, इसके लिए हमें बच्चों- सा एक सरलता की जरुरत होती है जिसके संबंध में कोई अधिक सोच-विचार नहीं करते हैं। जकेयुस एक बच्चे की भांति एक पेड़ पर चढ़ जाता है। यह येसु को देखने की एक अच्छा जगह रही होगी, विशेषकर पेड़ की डालियों के पीछे छिपकर, बिना किसी के द्वारा देखे जाने के।
येसु के संग हमारी अनिश्चितता
लेकिन येसु के साथ सदैव अनिश्चित घटना होती है। येसु, जब वहाँ पहुंचते हैं, वे ऊपर की ओर देखते। जकेयुस को ऐसा लगता है मानो वे पकड़े गये और उसे खुलेआम गालियाँ मिलेंगी। जनता को इसकी चाह थी लेकिन उन्हें निराश होना पड़ा- येसु जकेयुस को पेड़ के ऊपर देखकर आश्चर्यचकित होते और उसे शीघ्र नीचे आने को कहते हैं, “आज मैं तुम्हारे घर में रहूँगा।” संत पापा ने कहा कि येसु खोये हुए को खोजे बिना आगे नहीं बढ़ते हैं।
संत लूकस जकेयुस के हृदय में व्याप्त खुशी के बारे में जिक्र करते हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी ओर देखे जाने से खुशी का अनुभव करता है, जहाँ हम उसे पहचान देते और उससे भी बढ़कर उसके पापों को क्षमा करते हैं। येसु की निगाहें गाली की नहीं अपितु करूणा की हैं। यह वह करूणा है जिसे हम कभी-कभी स्वीकारने में असहज महसूस करते हैं विशेषकर जब ईश्वर उन्हें क्षमा करते हैं जिन्हें हम क्षमा के योग्य नहीं समझते हैं। हम अपने में भुनभुनाने लगते हैं क्योंकि हम ईश्वर की प्रेममयी निगाहों को सीमित करने की चाह रखते हैं।
परिवर्तन हेतु चिंतन जरुरी
अपने घर के दृश्य में, जकेयुस येसु की क्षमाशील बातों को सुनने के बाद, खड़ा होता है, मानो वह मृत्यु से पुनर्जीवित हो गया हो। वह खड़ा होकर अपने में प्रतिज्ञा करता है कि जिस किसी से साथ उसने धोखाधड़ी की है उसे वह चार गुणा लौटा देगा। यह ईश्वरीय क्षमा का देय नहीं है क्योंकि ईश्वरीय क्षमा हमें मुफ्त में मिलती है बल्कि यह उस प्रेम का अनुसरण करना है जिसने उसे प्रेम किया है। जकेयुस वह प्रतिज्ञा करता है जिसके लिए वह वाध्य नहीं था, लेकिन वह ऐसा करता है क्योंकि वह सझता है कि यह प्रेम करने का एक तरीका है। ऐसा करने के द्वारा वह चोरी के संबंध में रोमी और मूसा की संहिता के बीच पश्चाताप की कड़ी स्थापित करता है। जकेयुस केवल चाह रखने वाला व्यक्ति नहीं है बल्कि वह यह जानता है कि अपने निर्णयों को पूरा करने हेतु ठोस कार्य कैसे करने की जरुरत है। उसका उद्देश्य साधारण या अमूर्त नहीं है अपितु यह उसके स्वयं के इतिहास से शुरू होती है, वह अपने जीवन पर चिंतन करता और उन चीजों को पहचानता है कि कहाँ से उसे अपने में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।
प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा कि हम जकेयुस से सीखें कि हमें निराश नहीं होना है, अपने जीवन की उन परिस्थितियों में भी जब हम छोड़ दिये जाने या बदलने की अयोग्यता का अनुभव करते हैं। आइए हम अपने में येसु को देखने की चाह उत्पन्न करें, और उससे भी बढ़कर अपने को ईश्वरीय करूणा में पाने दें जो सदैव हमें देखने आते हैं, चाहे हम अपने जीवन की किसी भी खोई हुई परिस्थिति में क्यों न हों।
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