संत पापा फ्राँसिस की कमजोर आवाज और नाजुकता की शिक्षा
अंद्रेया तोर्निएली – प्रधान संपादक
रोम, बुधवार 12 मार्च 2025 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस के लिए उनके परमाध्यक्ष बनने की बारहवीं वर्षगांठ इस साल एक खास समय पर पड़ रही है, जो लगभग एक महीने से जेमेली अस्पताल की दसवीं मंजिल पर अपने कमरे में रह रहे हैं। नवीनतम मेडिकल बुलेटिन से आने वाली खबरें उत्साहजनक हैं, रोग का निदान हो गया है, उम्मीद है कि वे जल्द ही वाटिकन लौट सकेंगे। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि संत पापा इन दिनों जो अनुभव कर रहे हैं, वह उनके परमाध्यक्ष बनने की एक बहुत ही अनोखी वर्षगांठ है। सबसे लंबी अंतरमहाद्वीपीय यात्रा (इंडोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, तिमोर लेस्ते और सिंगापुर), सिनॉडालिटी पर धर्मसभा के समापन और जयंती की शुरुआत करने वाले पवित्र द्वार के खुलने से चिह्नित यह वर्ष अब इस नाजुक यात्रा को दर्ज करता है। संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी, बीमारों के बीच बीमार, दुनिया भर के इतने सारे लोगों की सामूहिक प्रार्थना के साथ, शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। वे इन बारह वर्षों में कभी भी किसी सभा, आमदर्शन समारोह या देवदूत प्रार्थना का पाठ इन शब्दों के बिना समाप्त नहीं किया है "और कृपया, मेरे लिए प्रार्थना करना न भूलें", आज इतने सारे विश्वासियों और गैर-विश्वासियों के आलिंगन का अनुभव करते हैं जो उससे प्यार करते हैं।
यह एक ऐसा समय है जो दिलों को प्रकट करता है। यह एक ऐसा समय है जिसमें कलीसिया की प्रकृति और रोम के धर्माध्यक्ष के मिशन पर सवाल उठाना बेकार नहीं है, जो एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के महाप्रबंधक से बहुत अलग है। बारह साल पहले, तत्कालीन कार्डिनल बेर्गोग्लियो ने आम सभाओं में हेनरी डी लुबैक के अनुसार "सबसे बुरी बुराई" का हवाला देते हुए कहा था कि कलीसिया "आध्यात्मिक सांसारिकता" में गिर सकता है। एक कलीसिया का जोखिम जो "अपनी खुद की ताकत, अपनी खुद की रणनीतियों, अपनी खुद की दक्षता पर भरोसा करके" विश्वास करती है कि उसके पास अपना स्वयं का प्रकाश है, इस प्रकार "मिस्टेरियम लूनाये" ("चंद्रमा का रहस्य") बनना बंद कर देता है, अर्थात, दूसरे के प्रकाश को प्रतिबिंबित करना, केवल उसी की कृपा से समर्थित और संचालित होकर जीना और काम करना, जिसने कहा था : "मेरे बिना तुम कुछ नहीं कर सकते।"
आज एक बार फिर उन शब्दों को याद करते हुए, हम जेमेली की दसवीं मंजिल की खिड़कियों की ओर स्नेह और आशा के साथ देखते हैं। हम संत पापा फ्राँसिस को नाजुकता की इस शिक्षा के लिए धन्यवाद देते हैं, उनकी अभी भी कमजोर आवाज के लिए जो हाल के दिनों में संत पेत्रुस महागिरजाघऱ के प्रांगण में रोजरी में शामिल हुई। एक नाजुक आवाज जो युद्ध नहीं बल्कि शांति, उत्पीड़न नहीं बल्कि संवाद, उदासीनता नहीं बल्कि करुणा की याचना करती है। परमाध्यक्षीय चुनाव का सालगिरह मुबारक हो, हमें अभी भी आपकी आवाज की बहुत जरूरत है।
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