संत पापाः प्रेम हमें प्रेरित करता है
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में मरियम की भेंट पर चिंता करते हुए आशा का संदेश प्रस्तुत किया।
आज हम येसु ख्रीस्त हमारी आशा की सुन्दरता को भेंट के रहस्य में चिंतन करेंगे। कुंवारी मरियम एलिजबेथ की भेंट करती है, लेकिन यह उससे बढ़कर येसु की भेंट हैं जो अपनी माता की गर्भ में आते हुए अपने लोगों से भेंट करते हैं जैसे की जकरियस अपने भजन में गाते हैं।
प्रेम हमें प्रेरित करता है
स्वर्गदूत के आश्चर्यजनक और विस्मयकारी घोषणा के उपरांत मरियम उठती और अपनी एक यात्रा में निकल पड़ती है, जैसे कि वे सभी जिन्हें हम धर्मग्रंथ की बुलाहट में पाते हैं, क्योंकि वे अपने बुलावे के माध्यम ही ईश्वर का अनुसरण कर सकते हैं। इस्रराएल की वह युवा पुत्री अपने लिए दुनिया में बचाये जाने का चुनाव नहीं करती है, वह भय और दूसरे के द्वारा कहे जाने वाली बातों की परवाह नहीं करती है, बल्कि वह दूसरे लोगों के पास जाती है। जब हम प्रेम का अनुभव करते हैं, तो हम एक शक्ति का अनुभव करते जो हमें आगे की ओर ले चलती है,जैसे कि संत पौलुस कहते हैं, “ख्रीस्त का प्रेम हमें उत्प्रेरित करता हूँ”, यह हमें आगे ले चलता है। मरियम इस प्रेम से प्रेरित हैं और वह एक नारी जो अपनी संबंधी है की सेवा हेतु जाती है, वह अपने में एक बुजुर्ग नारी है जो एक लम्बी प्रतीक्षा के उपरांत आशातीत गर्भवती होती है, जो इस उम्र में उसके लिए कठिनाई का कारण बनती है। कुवांरी मरियम एलिजबेद के साथ असंभव को संभव करने वाले ईश्वर पर अपना विश्वास और अपनी आशा को साझा करने जाती है जहाँ ईश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करते हैं।
दो नारियाँ
दो नारियों के मध्य मिलन में हम एक आश्चर्यजनक प्रभाव कि उत्पत्ति को पाते हैं- मरियम की आवाज में, “कृपा से पूर्ण” जो एलिजबेथ का अभिवादन करती है जो उस भविष्यवाणी की ओर इंगित कराता है जो वृद्ध नारी अपने गर्भ में वहन करती है, यह उसमें दोहरी आशीष को प्रकट करता है। “धन्य है तू सभी नारियों में और धन्य है तेरे गर्भ का फल” और एक धन्य वचन जो इस बात की ओर इंगित करता है कि धन्य है तू जिसने उन बातों पर विश्वास किया जो ईश्वर के द्वार कहा गया जो तुझ में पूरा होगा।
मरियम ईश्वरीय महिमा की घोषिका
अपने पुत्र के मुक्तिदायी पहचान और एक माँ के रूप में अपने प्रेरिताई को स्वीकार करते हुए, मरियम अपने बारे में नहीं बल्कि ईश्वर के बारे में घोषित करती हैं, और विश्वास, आशा और खुशी से भरा एक स्तुति गीत गाती हैं, जो हर रोज संध्या वंदना के दौरान कलीसिया में “मरियम का भजन” स्वरूप गूंजता है।
मुक्तिदाता ईश्वर की यह स्तुति, जो एक नम्र हृदय सेविका से फुहारे की भांति फूट कर निकलती है, अपने में इस्रराएल के प्रार्थना की परिपूर्ण की महान यादगारी को संक्षेपित करती है। यह धर्मग्रंथ की प्रतिध्वनि के साथ जुड़ी हुई है, यह एक संकेत है कि मरियम “गायकदल से अलग” गाना नहीं चाहती, बल्कि पूर्वजों के साथ अपने स्वर मिलाना चाहती हैं, वह नम्र लोगों के प्रति अपनी करुणा को प्रकट करना चाहती हैं, उन छोटे बच्चों के प्रति जिन्हें येसु अपनी शिक्षा में “धन्य” घोषित करेंगे।
मरियम का भजन
मुक्ति इतिहास के सार की प्रमुख उपस्थिति मरियम के भजन को मुक्ति का एक भजन बनाता है, जिसकी पृष्ठभूमि में मिस्र से इजरायल की मुक्तिप्रद यादें हैं। यहाँ हम क्रियाओं को भूलकाल में पाते हैं, उस प्रेम की स्मृति से ओतप्रोत, जो वर्तमान को विश्वास से रोशन करती है और भविष्य में आशा के दीप प्रज्वलित करती है: मरियम अतीत की कृपा का गान करती हैं, लेकिन वह वर्तमान की नारी हैं जो अपने गर्भ में भविष्य को वहन करती हैं।
मरियम के भजन का पहला भाग ईश्वर के कार्यों का बखान करता है ईश प्रजा द्वारा संहिता का पूर्णतः पालन करना (46-50); दूसरा, पिता के कार्य से लेकर पुत्र के इतिहास तक (51-55), जहाँ हम तीन प्रमुख शब्दों: स्मृति, दया, प्रतिज्ञा को पाते हैं।
हमारी निष्ठा
ईश्वर, मरियम के माध्यम से जो अपनी नम्रता में नतमस्तक होती हैं अपने लोगों को निर्गमन से बचाना शुरू करते हैं, वे अब्रहाम को की गई अपनी प्रतिज्ञा की याद करते हैं। ईश्वर हमारे लिए सत्यप्रतिज्ञा हैं जो अपने लोगों के ऊपर प्रेमरूपी करूणा की आशीष पीढ़ी-दर-पीढ़ी बरसाते हैं। उन पर जो उनकी संहिता के प्रति निष्ठावान बने रहते हैं और अब वे अपने पुत्र के माध्यम मुक्ति को प्रकट करते हुए उन्हें पापों से बचाने हेतु भेजते हैं। अब्रहाम से लेकर येसु ख्रीस्तीय और विश्वासियों का समुदाय, पास्का इस भांति व्याख्यात्मक रूप में प्रकट होता है, प्रत्येक मुक्ति को समझने के लिए जो समय की परिपूर्णता में मसीहा द्वारा आती है।
हम ईश्वर से प्रतिक्षा करने की कृपा मांगें जिससे हम उनके द्वारा की गई हर प्रतिज्ञा की पूर्णतः में बने रहें, हम मरियम की उपस्थिति का अपने जीवन में स्वागत करें। उनके उदाहरण का अनुसरण करते हुए हम इस बात को पता लगा सकें कि हर व्यक्ति जो विश्वास और आशा में बना रहता है ईश वचन से अपने को पोषित पाता है।
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