संत पापाः ज्ञानियों का विश्वास और आशा हमारे लिए उदाहरण
वाटिकन सिटी
संत पापा अपने स्वस्थ्य में गिरावट के कारण रोम के जेम्मेली अस्पताल में दाखिल है। अपनी बीमारी के कारण विगत सप्ताह के कुछ कार्यक्रम और आने वाले दिनों के भी उनके कुछ कार्यक्रम स्थागित रहेंगे। इस क्रम में संत पापा फ्रांसिस का बुधवारीय आमदर्शन समारोह भी स्थागित रहा यद्यपि संत पापा की धर्मशिक्षा माला के संदेश को प्रकाशित किया।
चारवाहे और ज्ञानी
संत पापा फ्रांसिस ने येसु हमारी आशा, अपने बुधवारीय धर्मशिक्षा माला के अपने संदेश में लिखा कि येसु के बल्यावस्था का दृश्य जिसकी चर्चा हम संत मत्ती के अनुसार सुसमाचार में पाते हैं- ज्ञानियों की भेंट है। एक तारे के उदय होने से आकर्षित, जो हमारे लिए बहुत सारे संस्कृतियों में किसी अद्वितीय व्यक्ति के जन्म की ओर इंगित करता है, कुछ ज्ञानी व्यक्ति पूर्व की ओर से निकल पड़ते हैं, उन्हें यह निश्चितता नहीं होती है कि वे किस ओर बढ़ रहे होते हैं। ये ज्ञानी व्यक्ति होते हैं उनका संहिता से कोई संबंध नहीं होता है। हमने अपने बिगत धर्मशिक्षा माला में चारवाहों के बारे में जिक्र किया था, जो यहूदी समाज में हाशिये में रहने वाले थे क्योंकि उन्हें अशुद्ध समझा जाता था। आज हम एक दूसरे दल, परदेशिय़ों को देखते हैं जो बिना देर ईश्वर के पुत्र की आराधना करने को निकल पड़ते हैं, जो इतिहास में पूरी तरह से एक नये राज्यकीय अंदाज में प्रवेश करते हैं। सुसमाचार हमें इस भांति स्पष्ट रुप से बतलाता है कि गरीब और परदेशी अपने में सबसे पहले हैं जो ईश्वर के बेटे, दुनिया के मुक्तिदाता से भेंट करने हेतु आमंत्रित किये जाते हैं।
ज्ञानियों का प्रतिनिधित्व
संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा में आगे लिखा कि ज्ञानियों को हम नूह के तीन पुत्रों द्वारा उत्पन्न प्रमुख जातियों, प्राचीन काल में ज्ञात तीन महाद्वीपों: एशिया, अफ्रीका और यूरोप, तथा मानव जीवन की तीन अवस्थाओं: युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था का प्रतिनिधि करते हुए पाते हैं। किसी भी संभावित व्याख्या से परे, वे ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने में यू हीं नहीं रहते, बल्कि धर्मग्रंथ के इतिहास में बड़े बुलावे की तरह, आगे बढ़ने, यात्रा पर निकलने हेतु अपने को दिये गये निमंत्रण का अनुभव करते हैं। वे ऐसे व्यक्ति हैं जो स्वयं से परे देखना जानते हैं, जो ऊपर आसमान की चीजों को देखना जानते हैं।
आकाश में उदित हुए तारे को देखते हुए वे यहूदा की भूमि यूरूसालेम की ओर चल पड़ते हैं, जहां उनकी मुलाकात राजा हेरोदे से होती है। अपने भोलेपन और विश्वास में, यहूदियों के नवजात राजा के बारे में जानकारी हासिल करने की चाह, हेरोदे की चतुराई को द्विधा में डाला देती है, जो अपने सिंहासन खोने के डर से घबरा जाता और शास्त्रियों से जांच-पड़ताल करते हुए तुरंत खोज-बीन करने लगता और उन्हें उसका सही रुप में पता करने का आदेश देता है।
ईश्वर का चुनाव
इस प्रकार हम सांसारिक शासक की शक्ति में उसकी सारी कमज़ोरियों को देखते हैं। शास्त्रों के विशेषज्ञ जानते हैं और राजा को उस स्थान के बारे में बतलाते हैं, जहाँ, नबी मीका की भविष्यवाणी के अनुसार, इस्राएल के लोगों का नेता और चरवाहा पैदा होगा, यह छोटा बेतलेहेम है, न कि बड़ा येरूसालेम। वास्तव में, जैसे कि संत पौलुस कुरिन्थि समुदाय को याद दिलाते हैं, “ईश्वर ने दुनिया में शक्तिहीनों को चुना, जिससे वे शक्तिशालियों को लज्जित करे”।
हमारी जरूरत
हालाँकि, शास्त्री, जो सही रुप में यह जानते हैं कि मसीह का जन्म कहाँ हुआ था, वे दूसरों को रास्ता दिखाते हैं लेकिन वे स्वयं आगे नहीं बढ़ते हैं। वास्तव में, ईश्वरीय मनोभानवों से संयुक्त होने के लिए ग्रँथों की भविष्यवाणी को जानना ही पर्याप्त नहीं है, हमें स्वयं को उसमें उतारने की जरुरत है हमारे लिए यह जरूरी है कि हम ईश्वर के वचन को अपने में शोध की लालसा से पुनर्जीवित होने दें, हम अपने को ईश्वर से मिलन की इच्छा से प्रज्वलित होने दें।
संत पापा ने लिखा कि ऐसी परिस्थिति में जैसे कि धोखेबाज और हिंसक लोग करते हैं, हेरोद गुप्त रूप में, ज्योतिषियों से तारे के उदय होने का सही समय पूछता है। वह उन्हें अपनी यात्रा जारी रखने और फिर वापस लौटकर उन्हें समाचार देने का आग्रह करता है, ताकि वह भी जाकर नवजात शिशु की पूजा-आराधना कर सके। वे लोग सत्ता से जुड़े हैं, उनके लिए येसु वह आशा नहीं हैं जिसका वे स्वागत करने की चाह रखते हैं बल्कि वे उसे अपने लिए खतरे की भांति देखते हैं।
ईश्वर की नम्रता
जब ज्ञानी आगे बढ़ते, तो तारा पुनः प्रकट होता है और उन्हें येसु के पास ले चलता है, यह इस बात कि निशानी है कि सृष्टि और भविष्यवाणी उस वर्णमाला का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके द्वारा ईश्वर हम से बातें करते और स्वयं को खोजने की अनुमति देते हैं। तारे को देखने से उन लोगों में अपार आनन्द की उत्पत्ति होती है क्योंकि पवित्र आत्मा, ईमानदारी से ईश्वर की खोज करने वाले किसी भी व्यक्ति के हृदय को प्रेरित करते हैं, इतना ही नहीं वे उसे आनन्द से भर देते हैं। बेतलेहेम के घर पहुँचने पर, ज्ञानियों ने दंडवत करते हुए येसु की पूजा- आराधना की और उन्हें राजा और ईश्वर के रूप में बहुमूल्य उपहार अर्पित किये। क्योंॽ वे क्या देखते हैंॽ एक प्राचीन लेखक लिखते हैं: वे "एक विनम्र छोटा बालक को देखते हैं, शब्द ने शरीरधारण किया है, परन्तु ईश्वर की महिमा उनसे छिपी नहीं रही। वे एक नवजात शिशु को देखते हैं, और वे ईश्वर की आराधना करते हैं”। इस प्रकार ज्ञानी सभी गैर-ख्रीस्तीयों में प्रथम विश्वासी बनें, यह कलीसिया की एक निशानी बनी जो विभिन्न भाषा-भाषियों का स्वरुप है।
ज्ञानियों का विद्यालय
प्रिय भाइयो एवं बहनों संत पापा ने लिखा, हम अपने को ज्ञानियों के स्थल में रखें, उन “आशा के तीर्थयात्रियों” के शिक्षण स्थल में, जिन्होंने बड़े साहस के साथ अपने कदम, अपने हृदय और अपनी सम्पत्ति को उनकी ओर अभिमुख किया जो न केवल इस्राएल की बल्कि सभी राष्ट्रों की आशा हैं। आइए हम ईश्वर की आराधना उनके छोटेपन में, उसकी राजसी गरिमा में करना सीखें जो हमें कुचलती नहीं बल्कि हमें स्वतंत्रता प्रदान करती है और सम्मान के साथ सेवा करने के योग्य बनाती है। आइए हम उन्हें अपना सबसे सुन्दर उपहार विश्वास और प्रेम अर्पित करें।
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