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विश्वासी पवित्र मिस्सा में भाग लेते हुए विश्वासी पवित्र मिस्सा में भाग लेते हुए  (AFP or licensors)

पोप ने भारत में प्रथम लितुवानियाई पुरोहित की 400वीं वर्षगाँठ की याद की

पोप लियो 14वें ने लितवानियाई मूल के जेस्विट पुरोहित, फादर अंद्रियस रूदामिना के वर्षगाँठ की याद की जिन्होंने करीब 5000 किलोमीटर की दूरी तय कर 1625 में भारत आकर सुसमाचार का प्रचार की।

वाटिकन न्यूज 

भारत, मंगलवार, 26 अगस्त 2025 (रेई) : प्रथम लितुवानियाई जेसुइट पुरोहित, फादर अंद्रियस रुदामिना के भारत आगमन की 400वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में, पोप लियो 14वें ने सोमवार को गोवा और दमन महाधर्मप्रांत को एक तार संदेश भेजा।

वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन द्वारा हस्ताक्षरित संदेश में, पोप ने इस अवसर पर पुराने गोवा स्थित सी महागिरजाघर में एकत्रित सभी लोगों को अपनी शुभकामनाएँ भेजीं।

उन्होंने बताया कि पोप, फादर रुदामिना के लिए ईश्वर के प्रति उनके आभार में सहभागी होते हैं, “जिनके एक मिशनरी के रूप में दिए गए साक्ष्य और दृढ़ काथलिक विश्वास को आज भी लितुवानिया में देखा जा सकता है।"

कार्डिनल ने बतलाया कि पोप लियो प्रार्थना कर रहे हैं कि सुसमाचार को सभी तक पहुँचाने में पुरोहित की महान उदारता और साहस का उत्सव "हमारे समय में भी कई लोगों को सुसमाचार प्रचार के कार्य के प्रति समान धैर्य और सरलता से प्रत्युत्तर देने के लिए प्रोत्साहित करेगा।"

पोप लियो ने विश्वास व्यक्त किया कि फादर रुदामिना के "मिशनरी उत्साह और संवाद एवं सांस्कृतिक एकीकरण की प्रभावशाली विरासत" की नींव पर निर्माण करते हुए, महाधर्मप्रांत की स्थानीय कलॶसिया सार्वभौमिक और अंतर्धार्मिक संवाद को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहित महसूस करेंगे जो सभी के लिए भ्रातृत्वपूर्ण सद्भाव, मेल-मिलाप और सौहार्द का एक आदर्श बन सके।

इस तार संदेश के अंत में पोप ने इस वर्षगांठ को "हमारे प्रभु येसु मसीह में आनंद और शांति की प्रतिज्ञा" के रूप में मनाने वाले सभी लोगों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

एक नया पहला

1625 में, फादर रुदामिना ने 29 वर्ष की आयु में 11 पुर्तगाली साथियों के साथ दुनिया भर में 6,000 मील की खतरनाक यात्रा करके भारत की यात्रा की। यह पहली बार था जब संत इग्नासियुस लोयोला के किसी पुत्र (जेस्विट पुरोहित) ने विशाल भारतीय उपमहाद्वीप में कदम रखा।

पादर ने अपने जीवन के अगले एक साल देश में बिताए, इससे पहले कि उन्हें मलेरिया हो गया और 1626 में उन्हें चीन स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ केवल 5 साल बाद उनकी मृत्यु हो गई। लितुवानिया में, 2015 में उनके सम्मान में एक स्मारक पत्थर स्थापित किया गया।

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26 अगस्त 2025, 16:34