एसइसीएएम की 20वीं आमसभा किगाली में शुरू
वाटिकन न्यूज
अफ्रीका की काथलिक कलॶसिया के 250 से अधिक प्रतिनिधि इस सप्ताह (30 जुलाई से 4 अगस्त तक) अफ्रीका और मेडागास्कर के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों की 20वीं आमसभा के लिए रवांडा के किगाली में एकत्रित हो रहे हैं।
एसइसीएएम अफ्रीका के सभी काथलिक धर्माध्यक्षों का संघ है और इसका उद्देश्य "अफ्रीका और उसके द्वीपों के सभी धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के बीच मेलजोल, सहयोग और संयुक्त कार्रवाई को बढ़ावा देकर मुक्ति के साधन के रूप में कलॶसिया की भूमिका को बढ़ावा देना और अफ्रीका में कलॶसिया को ईश्वर के परिवार के रूप में निर्मित करना" है, ऐसा एसइसीएएम के अध्यक्ष फ्रिडोलिन कार्डिनल अम्बोंगो, किंशासा के महाधर्माध्यक्ष ने कही।
इस वर्ष की आमसभा में पूरे अफ्रीका से कार्डिनल, धर्माध्यक्ष, पुरोहित, लोकधर्मी पुरुष और महिलाएँ, एवं धर्मगुरु, साथ ही अन्य महाद्वीपों के सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं। इस वर्ष की आमसभा की विषयवस्तु है: "ख्रीस्त, आशा, मेल-मिलाप और शांति के स्रोत।"
आमसभा के दौरान, प्रतिभागी पिछली सभा, जो 2022 में घाना के अकरा में आयोजित हुई थी, उसके बाद से हुई प्रगति का मूल्यांकन करेंगे।
2025 की सभा के एजेंडा मदों में एसइसीएएम के 2025 के लिए दीर्घकालिक विजन दस्तावेज की प्रस्तुति शामिल है, जो सुसमाचार प्रचार, पारिवारिक नेतृत्व, युवा जुड़ाव, सृष्टि की देखभाल, डिजिटल मिशन और राजनीतिक उत्तरदायित्व सहित बारह "आधारभूत स्तंभों" पर आधारित है।
सभा में बहुविवाह जैसी "जटिल सांस्कृतिक वास्तविकताओं" में काथलिकों का साथ देने पर एक धर्माध्यक्षीय चिंतन भी शामिल होगा; साथ ही शासन, न्याय, शांति, अंतर्धार्मिक संवाद, जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा पर भी चर्चा होगी।
20वीं पूर्ण सभा का एक मुख्य आकर्षण 2025-2028 के लिए त्रिवार्षिक रणनीतिक योजना का अनावरण और अफ्रीकी एवं मेडागास्कर के धर्माध्यक्षों के संविधान के अनुसार नेतृत्व के नवीनीकरण की शुरुआत होगी।
ऐतिहासिक टिप्पणी
एसइसीएएम के वेबसाइट से: अफ्रीका और मेडागास्कर के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों की संगोष्ठी की शुरूआत द्वितीय वाटिकन परिषद (1962-1965) के दौरान युवा अफ्रीकी धर्माध्यक्षों की इच्छा से हुआ था। वे एक स्वर में बोलना चाहते थे। इसलिए एसइसीएएम की स्थापना, पूरी कलॶसिया के लिए अफ्रीकी दृष्टिकोण को सामने लाने हेतु एक महाद्वीपीय संरचना बनाने के धर्माध्यक्षों के संकल्प का परिणाम है।
अफ्रीका के लिए इस तरह के संघ के महत्व को देखते हुए, लोकधर्मियों के सुसमाचार प्रचार के लिए स्थापित धर्मसंघ ने 1968 में क्षेत्रीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के अध्यक्षों को परामर्श के लिए आमंत्रित किया। एक वर्ष बाद, अफ्रीका में किसी पोप की पहली यात्रा को अफ्रीका और मेडागास्कर के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों की सभा के शुभारंभ के लिए एक अत्यंत उपयुक्त अवसर के रूप में देखा गया। वास्तव में, अफ्रीका और मेडागास्कर के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों की संगोष्ठी के आधिकारिक शुभारंभ के लिए पोप पॉल छटवें का कंपाला (युगांडा) में स्वागत किया गया था।
सम्मेलन के बजाय "संगोष्ठी" शब्द का प्रयोग करके, धर्माध्यक्ष अपनी संगति और भाईचारे की इच्छा पर ज़ोर देना चाहते थे। ग्रीक में "सिम्पोज़ियम" शब्द का अर्थ भोजन, भोज होता है। अपने उद्घाटन भाषण में, कार्डिनल पॉल ज़ौंगराना ने यूखरिस्टिक टेबल की छवि का उपयोग करके "सिम्पोज़ियम" की अवधारणा की व्याख्या की, जो भाइयों के समुदाय को एक साथ लाती है। उस व्याख्या में पहले से ही कलॶसिया को ईश्वर के परिवार के रूप में स्थापित करने की भावना निहित थी, जिसे 1995 में घोषित किया गया था "कलॶसिया की प्रकृति की अभिव्यक्ति है, जो अफ्रीका के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है।"
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