अफ्रीका, कार्डिनल परोलिन : मेल-मिलाप को बढ़ावा देने हेतु एक यात्रा
मस्सीमिलियानो मनिकेत्ती -वाटिकन सिटी
अफ्रीका पोप की प्रतीक्षा कर रहा है जिन्होंने संघर्ष और शोषणा से चकनाचूर डीआर कोंगो एवं दक्षिणी सूडान की भूमि में यात्रा करने और मुलाकात करने की इच्छा को कभी कम होने नहीं दिया। 31 जनवरी से 5 फरवरी तक पोप फ्राँसिस की 40वीं प्रेरितिक यात्रा, लोगों के बीच ईश वचन, शांति एवं संवाद की आशा लायेगी। यात्रा जिसका दक्षिण सूडान में एक मजबूत व्यापक अर्थ होगा, वास्तव में, पेत्रुस के उत्तराधिकारी के साथ कैंटरबरी के महाधर्माध्यक्ष, जस्टिन वेल्बे और चर्च ऑफ स्कॉटलैंड के मॉडरेटर, इयान ग्रीनशील्ड्स भी होंगे। कार्डिनल परोलिन ने जोर दिया कि यह “ख्रीस्तीय एकता" का साक्ष्य होगा, विशेष रूप से यह यात्रा विभिन्न कलॶसियाओं और स्थानीय समुदायों के तर्ज पर चलेगी, जो सजीव एवं सक्रिय है, जो "सामाजिक-राजनीतिक" है जो मेल-मिलाप की उम्मीद करता है, जो विभिन्न कारणों से लाखों शरणार्थियों, गुरिल्ला युद्ध, जातीय और राजनीतिक तनावों की दुखद परिस्थिति का सामना कर रहा है।
मान्यवर, पोपडी आर कोंगो एवं दक्षिणी सूडान जाने की तैयारी कर रहे हैं। जिनकी यात्रा करने की उनकी तीव्र अभिलाषा थी, लेकिन घुटने में दर्द के कारण इसे पिछले साल जुलाई में स्थगित करना पड़ा था। पोप फ्राँसिस की क्या अभिलाषा है?
हर प्रेरितिक यात्रा की तरह संत पापा फ्राँसिस सबसे बढ़कर लोगों के निकट आना चाहते हैं, वहाँ की कलॶसिया और स्थानीय लोगों से मिलना चाहते हैं। कहा जा सकता है कि इस यात्रा में उनका एक खास मकसद है क्योंकि यह काफी इंतजार के बाद होनेवाली है जिसको उन्हें अपने घुटने की समस्या के कारण स्थगित करना पड़ा था, और हम दो ऐसे देशों की बात कर रहे हैं जो खुद को जारी संघर्षों के कारण अत्यन्त कठिन परिस्थिति में पाते हैं, अतः पोप वहाँ एक चरवाहे के रूप में ईश्वर की प्रजा से मुलाकात करने एवं वे शांति और मेल-मिलाप के एक तार्थयात्री के रूप में जा रहे हैं।
दो देश असाधारण रूप से संसाधनों के धनी किन्तु संघर्ष एवं हिंसा से कुचले गये हैं जिसका कोई अंत नहीं, वहाँ यात्रा के क्या मायने हैं?
मैं कह सकता हूँ कि इसके दो आयाम हैं : प्रेरितिक आयाम, स्थानीय कलॶसिया एवं वहाँ रहनेवाले सक्रिय समुदायों के प्रति सामीप्य और सामाजिक – राजनीतिक आयाम; और इस दृष्टिकोण से उम्मीद की जा रही है कि पोप फ्राँसिस की उपस्थिति, उनके शब्द, उनके साक्ष्य चल रही हिंसा के अंत को बढ़ावा देने और शांति और मेल-मिलाप प्रक्रियाओं को मजबूत करने में मदद कर सकते हैं।
पहला पड़ाव डीआर कोंगो होगा जहाँ वे देश के पूर्व में पीड़ित लोगों से मिलेंगे। क्या यह मुलाकात मानव हृदय में घावों को चंगा करने में मदद कर सकती है?
हम ऐसा उम्मीद करते हैं, क्योंकि बहुत गहरे घाव हैं। यह एक ऐसी परिस्थिति है जो लम्बे समय से जारी है : हिंसा, विरोध और संघर्ष। इसलिए संत पापा ऐसे पीड़ितों से मुलाकात कर रहे हैं जिसका एक बड़ा महत्वपूर्ण भाव है जो निश्चय ही लोगों को सांत्वना देगा। मैं मानता हूँ कि पहला आयाम एवं मुलाकात की यह क्रिया, खासकर, उन लोगों को सांत्वना एवं दिलासा देने के लिए हैं जो मौत और शरणार्थी होने का दुःख झेल रहे है। दूसरा आयाम है प्रोत्साहन देना, भरोसा और उम्मीद नहीं खोने एवं बदले की भावना, निहित विभाजन को स्थान नहीं देने और शांति को एक लक्ष्य बनाने के लिए। अतः इन पीड़ितों से मिलने का पोप का मकसद है उनके साथ सामीप्य एवं भाईचारा व्यक्त करना।
कोंगो से संत पापा दक्षिणी सूडान की ओर बढ़ेंगे। 2019 में हम याद करते हैं उन्होंने शांति के लिए दक्षिणी सूडान के नेताओं के पैर चूम लिये थे। देश में स्थिरता लाने के लिए धर्म क्या भूमिका निभा सकता है?
ख्रीस्तीय कलॶसियाएँ जैसा कि मैं भी देखता हूँ, सभी लोगों की सेवा हेतु काम करती हैं, जहाँ बहुधा देश और कभी-कभी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ भी नहीं पहुँच पातीं। इस तरह वे वहाँ के लोगों से भरोसा और समर्थन प्राप्त करती हैं और जिसने उन्हें जटिल अंतरराष्ट्रीय संवाद के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने दिया है। जब मैं दक्षिणी सूडान में था तब राष्ट्रपति ने स्वयं इस भाव की याद दिलायी जिसको संत पापा ने उनके लिए व्यक्त किया था जिसने उन्हें गहराई से छूआ और प्रभावित किया। हम इसे एक नबी के समान भाव कह सकते हैं। यह एक प्रतिबद्धता का भाव है जो निश्चय ही अधिकारियों को शांति के पथ पर एक ठोस कदम लेने के लिए प्रेरित करता है। हम उम्मीद करते हैं कि यह यात्रा उस विशेष क्षण को आगे बढ़ेंगी और ठोस चुनाव करने के लिए सार्थकता को प्रोत्साहन प्रदान करेगी। जिससे की शांति की यात्रा अपने लक्ष्य तक पहुँच सके।
संत पापा फ्राँसिस दक्षिणी सूडान की यात्रा कैंटरबरी के महाधर्माध्यक्ष और स्कॉटलैंड की कलॶसिया के मोडेरेटर के साथ करेंगे। अतः इस यात्रा में ख्रीस्तीय एकता का एक मजबूत भाव होगा...
जी हाँ, तीन धर्मगुरूओं – पोप, कैंटरबरी के महाधर्माध्यक्ष और स्कॉटलैंड की कलॶसिया के मोडेरेटर की उपस्थिति, ख्रीस्तीय एकता की एक मजबूत अभिव्यक्ति होगी। मैं इसे एक साक्ष्य कहता हूँ। इस बीच, यह तथ्य कि तीनों एक साथ चलते हैं, एक संकेत है कि मतभेदों से परे या मतभेदों के माध्यम से भी एकता के तरीके खोजना संभव है। और फिर, देश में मौजूद धार्मिक समुदायों की ओर से सुसमाचार के गवाह बनने, शांति के प्रवर्तक बनने की यह आम प्रतिबद्धता है। इसलिए, यह एक उपस्थिति होगी और यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण यात्रा होगी, क्योंकि तीन आवाजें होगीं।
इस प्रकार इन अफ्रीकी देशों में संत पापा की उपस्थिति से बड़ी उम्मीद है, जैसे आपने स्वयं हमें याद दिलाया कि हाल ही में आपने उन जगहों का दौरा किया, जहां पोप फ्राँसिस देखेंगे कि उम्मीद और गरीबी, दुःख और भविष्य एक साथ मिल जाते हैं। हम इस परिदृश्य को कैसे बदल सकते हैं?
यह एक धीमा परिवर्तन है जो प्रतिबद्धता की मांग करता है, एक साथ हरेक की प्रतिबद्धता की। इन देशों को ऐसी नीतियाँ बनानी होगी जो सचमुच न्याय और शांति पर आधारित होंगी। उसके बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस जटिल परिस्थिति में इनके राजनीतिक नेताओं का समर्थन करना चाहिए, ताकि वे अपना सामाजिक, आर्थिक और संस्थागत विकास कर सकें। इस संदर्भ में कलॶसिया की भी भूमिका है, विशेषकर, परोपकार, शैक्षणिक और स्वास्थ्य के क्षेत्र में।
इन लोगों के लिए आपकी व्यक्तिगत इच्छा क्या है जिनसे आपने मुलाकात की थी और आमतौर पर अफ्रीका के लिए?
मैं इस यात्रा में पोप का साथ देने के लिए बहुत खुश हूँ, खासकर, इसलिए कि जुलाई के महीने में मैंने वही यात्रा की लोगों को बतलाने के लिए कि वे निराश न हों, पोप जरूर आयेंगे, यद्यपि उस समय उन्हें अपनी यात्रा को स्थगित करना पड़ा। लोगों ने इस संदेश को समझा और वे अब पोप का स्वागत करने एवं उनके साथ होने के लिए खुशी से भर गये हैं। मैं मानता हूँ कि पोप के साथ यह मुलाकात, इन देशों के धार्मिक नेताओं के लिए एक मोड़ बिन्दु हो सकती है और वे सभी की भली इच्छा का समर्थन कर सकते हैं। मैं सचमुच मानता हूँ कि हम सभी को एक नवीकृत प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। यदि यह प्रतिबद्धता रहेगी तो वर्तमान के संघर्षपूर्ण स्थिति से बाहर निकालना संभव होगा और सभी लोगों के लिए उचित विकास सुनिश्चित करना एवं उन देशों को बेहतर भविष्य की ओर ले जाना संभव होगा।
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